Saturday 17 October 2015

क्षणिकाएँ

रेत पर मेरी कुछ क्षणिकाएँ

1.

उस दिन रेत

इंतज़ार में थी

ढेर बनी गुमसुम

उदास

उसे सीमेंट गिट्टी ईंट का इंतज़ार रहा होगा

ताकि रेत

एक मुकम्मल घर बन सके

2.

रेत

इंतज़ार में थी

कुछ बच्चों के

ताकि

रेत बन सके एक घरौंदा

3

रेत

एक साजिश है

जो गिरे हुए पुल में उतनी ही मिली है

जितना

ठीकेदार ने बजट से निकाल कर अफसर को दिया है


4


रेत

चाहे किउल नदी की हो

दुर्गावती की

सोन की हो

उड़ेलती रहती है

अपनी ही नदी में रक्त

रेत

गवाह है

लालची और हत्यारी पूरी एक कौम की


5


रेत

चांदनी रात में

अलसायी नदी का प्रेमी है


6.


रेत

को देखो

चांदनी रात में

चांदनी रात में रेत

बिखरा हुआ ताजमहल है


7.


रेत

शिव है

नश्वरता का शाश्वत इष्ट है

बनता है

बिखर जाता है

माथे के फूल उसे ढूंढते इधर उधर भटकते हैं इसी रेत पर


8.


रेत

आखिरी पड़ाव है

इस दुनिया को अलविदा कहने के पहले का

क्षणिका

दिमाग के आनंद कानन में
जैसे किसी शानदार केले के वन में
आता है एक हाथी
आता है
आता है
आता है
सब तहस नहस कर के चला जाता है

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