मनोज कुमार झा |
Monday 25 November 2019
समय सत्ता और कवि : एक (मनोज कुमार झा की कविताएं)
Sunday 17 November 2019
कविता : कम्बखत ये गरीब
Saturday 16 November 2019
कविता: प्रेम जो कभी बासी नहीं होता
Thursday 14 November 2019
एक विक्षिप्त वैज्ञानिक का अवसान : प्रेमकुमार मणि
Monday 11 November 2019
सवाल :कविता
सवाल
सवाल
महफ़िल में किसी बच्चे की तरह
बार बार
उठ खड़ा होता है
लोग नाच के नशे में चिल्लाते हैं
बैठ जाओ
बैठ जाओ
अरमान
Friday 1 November 2019
तिब्बत की स्वाधीनता का स्वप्न है मेरा भविष्य - तेन्ज़िन च़ुन्डू
तिब्बती कवि एक्टिविस्ट तेन्ज़िन च़ुन्डू और हिन्दी के कवि अग्निशेखर |
तेन्ज़िन च़ुन्डू एक अत्यंत संवेदनशील, प्रश्नाकुल कवि तो हैं हीं जो निर्वासन की चेतना से ओतप्रोत तिब्बत के प्रश्न पर बड़े बड़े जोखिम उठाते रहे हैं । चीन की तानाशाही और छिन चुके तिब्बत में जारी उसकी विध्वंसक कार्यकलाप का विरोध करने वालों में वह अग्रणी हैं ।
कहा मेरी माँ ने
एक शरणार्थी हो तुम
बर्फ में धंसा सड़क किनारे
तंबु हमारा
तुम्हारी भौंहों के बीच
एक 'R' है अंकित
कहा मेरे शिक्षक ने..
●तेन्ज़िन च़ुन्डू : यह एक फ्रस्ट्रेशन की अभिव्यक्ति है ।एक घुटन है।हम दशकों से जुलूस निकालते हैं।संघर्ष करते हैं ।लेकिन बदलता कुछ नहीं । कोई हमारा साथ नहीं देता। मैक्लोडगंज,कुल्लू,
अग्निशेखर : कुछ याद है कि बचपन में तिब्बत आपकी चेतना में कब आया ?
नाटक लिखे ,उपन्यास लिखे।आपको आश्चर्य होगा कि साहित्य की अपेक्षा हमारे यहाँ संगीत अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है ।लोक साहित्य भी लोकप्रिय माध्यम बना हुआ है। लोग पारंपरिक गीत गाएँगे, 'बोली' करेंगे,नाटक करेंगे । इसी में ज़्यादातर तिब्बत की स्मृति है।उसका बिछोह है।
पारंपरिक धुनों में नये भावबोध के प्रार्थना गीत गाये जाते हैं-" गुरुजी तिब्बत आ जाएँ ..."
तेन्ज़िन च़ुन्डू : मेरी कोई अपेक्षा भी नहीं ..चार पुस्तकें लिखी हैं ।
Wednesday 9 October 2019
क़िस्सा चयन समिति - सिद्धार्थ शंकर राय
क़िस्सा चयन समिति
किसी विश्वविद्यालय का इंटरव्यू हो रहा था। अमुक आवेदक से विशेषज्ञ ने सवाल पूछा तो आवेदक ने कोई जवाब नहीं दिया। साक्षात्कार समाप्त हुआ तो आवेदकों पर बात होने लगी। चयन समिति के अध्यक्ष ने कहा कि अमुक आवेदक का करिए। इस पर विशेषज्ञों ने कहा कि अमुक आवेदक ने किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया; कुछ भी नहीं बोला । इस पर अध्यक्ष ने कहा कि अमुक आवेदक लिखता बहुत अच्छा है। अध्यक्ष महोदय के इस तर्क पर अमुक की नियुक्ति हो गयी।
कुछ दिनों के बाद अमुक जी के प्रोमोशन काा इंटरव्यू था। पिछली चयन समिति के एक विशेषज्ञ फिर से चयन समिति में विशेषज्ञ के रूप में आ गये। अमुक जी साक्षात्कार के लिए आये और पूछे गये सवालों पर मौनव्रत की पिछली व्यवस्था बनायी रखी। विशेषज्ञ ने अमुक जी के लेखन के बारे में सवाल किया तो उन्होंने काँख-कूँख, खाँस-खखारकर शांति व्यवस्था बहाल रखी। समिति के अध्यक्ष ने अमुक जी के प्रोमोशन हेतु प्रस्ताव रखा। इस पर दोबारा पधारे विशेषज्ञ ने कहा कि आपने पिछली बार कहा था कि ये बोलते नहीं अपितु लिखते अच्छा हैं; लेकिन इन्होंने ने तो कुछ लिखा भी नहीं है। इस पर अध्यक्षजी ने कहा कि जी! ये सोचते बहुत अच्छा हैं।
इस प्रकार अच्छा सोचने के कारण अमुकजी प्रोमोशन को प्राप्त कर गये।
आप भी अच्छा सोचिए ।
Tuesday 8 October 2019
बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का - कृष्ण मोहन
बहरहाल, इस प्रसंग में लेखक ने नामवर सिंह की आलोचना के बारे में और क्या कहा है, देखें: "उनकी आलोचना-दृष्टि को समझने के लिए ज्ञानोदय में प्रकाशित उनके प्रसिद्ध लेख 'नंगी और बेलौस आवाज़' को पढ़ने की ज़रूरत है। भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्रवाद का ज्वार उमड़ पड़ा था। बड़े-बड़े प्रगतिशील कवि भी भावनाओं के उस ज्वार में
कृष्ण मोहन |
लोग लेते हैं?
अगर तोपों के मुँह में ज़बान है
सच्चाई की,
और बम्बार ही भाई-भाई को पहचानेंगे;
तो
तो---मार्क्स को जला दो! लेनिन को उड़ा दो!
माओ के क्यून-ल्यून को
प्रशांत महासागर में डुबा दो!
जिसे लाँघ जाओ!"
चीख़ता है
दिग्विजय! दिग्विजय!!"
नदियों की जगह
मरे हुए साँपों की केंचुलें बिछी हैं
पेड़---
टूटे हुए रडार की तरह खड़े हैं
दूर-दूर तक
कोई मौसम नहीं है
लोग---
घरों के भीतर नंगे हो गये हैं
और बाहर मुर्दे पड़े हैं
विधवाएँ तमगा लूट रही हैं
सधवाएँ मंगल गा रही हैं
वन महोत्सव से लौटी हुई कार्यप्रणालियाँ
अकाल का लंगर चला रही हैं
जगह-जगह तख़्तियाँ लटक रही हैं---
'यह श्मशान है, यहाँ की तस्वीर लेना मना है'।"
सबसे बड़ा बौद्ध-मठ
बारूद का सबसे बड़ा गोदाम है
अखबार के मटमैले हाशिये पर
लेटे हुए, एक तटस्थ और कोढ़ी देवता का
शांतिवाद, नाम है"
उसी लोकनायक को
बार-बार चुनता रहा
जिसके पास हर शंका और
हर सवाल का
एक ही जवाब था
यानी कि कोट के बटन-होल में
महकता हुआ एक फूल
गुलाब का।
वह हमें विश्वशांति और पंचशील के सूत्र
समझाता रहा।"
मैं बदनसीब होश में आया नहीं हनोज़"
Wednesday 25 September 2019
अरमान आनंद की लघुकथा एन एच 31
एन एच 31 (लघुकथा)
रमेसर आज जल्दी उठ गया। रोज से लगभग दो घण्टे पहले । आसमान पर नजर डाली। घनघोर बादलों के कारण समय का ठीक-ठीक अंदाजा नही लगा सका फिर भी उसने सोचा तीन साढ़े तीन तो बज ही रहे होंगे। सोने की कोशिश की लेकिन दुबारा नींद नही आई.. बगल में देखा उसका बीस साल का पोता पवन गहरी नींद में सो रहा था। रमेसर बेगूसराय में एन एच 31 के ठीक किनारे चाय की दुकान चलाता था। दिन में दुकान पर उसके साथ उसका बेटा भी आ जाता लेकिन रात में वह घर चला जाता। रामेश्वर की बीबी मर चुकी थी। अब वह घर जाकर करता भी क्या? एक कमरे वाले घर मे उसका बेटा बहु और बच्चे रहते हैं । बच्चे क्या एक पोती और एक पोता। पोता बड़ा हुआ तो साथ ही आकर सोने लगा।
लाख कोशिशों के बाद भी जब रमेसर को दुबारा नींद नही आई तो वह घरेलू चिंताओं में खो गया। पोती पूजा की शादी करनी है सोलह की हो गयी है। कहाँ से आएगा पैसा?बहु सबीतरी और पोती पूजा घर घर बर्तन माँजती हैं और यह चाय की दुकान है तो जीवन जैसे तैसे चल जाता है।बेटा तो बौधा ही है। किसी काम का नही इसलिए चाय की दुकान पर साथ बैठा लिया ।एक ये पोता पवन है उसका दाख़िला तो उसने सरकारी स्कूल में कराया था लेकिन पढ़ाई उसने छोड़ दी । काम काज कुछ करता नही दिन रात कट्टा लेकर घूमता रहता है। सुना है बेगूसराय में बड़े पुलिस अधिकारी आए हैं बेगूसराय को अपराधमुक्त बनाने का सरकारी ऑर्डर जारी हुआ है। कहीं बिसनमा के जैसे इसका भी इनकाउंटर न हो जाये । लाख समझाया मानता ही नही।
बिसनमा रामेश्वर के पोते पवन का ही दोस्त था ।छह महीने पहले बिसनमा ने लछमी पेट्रोल पंप पर डकैती डाली । पेट्रोल पंप के मालिक की सरकार में पहुंच थी । दबाव डलवा कर बिसनमा का सीधा इनकाउंटर करवा दिया। दीरा जा कर पुलिस उठाई थी उसको। ठीक ही हुआ पुलिस ने मार दिया। पूजा को जब तब ले के अलका सिनेमा में घुसा रहता था। रमेसर ने लम्बी सांस ली।
रमेसर के बेटे का नाम ढिबरी था। वह बचपन मे वह ढिबरी को ढूंढता रहता और जब मिल जाये तो उसका ढक्कन खोल बाती से किरोसिन तेल चाटता रहता। रमेसर ने भाई ने उसका नाम ढिबरी रख दिया। रमेसर सोचने लगा कि बैल बुद्धि ढिबरी से तो पूजा की शादी नही सम्भल पाएगी । पूजा की शादी उसे अपने जीते जी करनी होगी कहाँ से आएगा पैसा ? पिछला कर्जा बाकी है । कम से कम पचास बाराती तो आएंगे ही फिर दूल्हा उसका बाप माई सबका कपड़ा-लत्ता । सोना न सही चांदी का ही बिछिया अंगूठी भी बनेगा। बहुत खर्चा है । सोचते सोचते रमेसर ने करवट बदली।अचानक खटर पटर की आवाज आई । रमेसर ने गर्दन उठा कर देखा एक मोटा चूहा छप्पर से बर्तन पर कूदा और अंधेरे में खो गया।
आज तो रामजीवन सिंह भी आएगा बोला है कम से कम पांच हजार रुपया देना ही होगा। कर्जा तो जान का जपाल ही हो जाता है । पवन को डेंगू न होता तो यह कर्जा नही होता। कमबख्त एक मच्छर सारी जमापूंजी खा गया। चलो यह पैसा देकर आज लगभग बरी हो जाना है । थोड़ा बहुत बचेगा। जल्दी ही चुकता कर देंगे। दुपहरी में सौ रुपया मोफतिया को भी देना है चाय दुकान लगाने का रंगदारी । पवनमा क्या रंगदार बनता है। मोफतिया है असली रंगदार ।आ जाता है तो सिपाही उठ के खड़ा हो जाता है । यामाहा मोटरसाइकिल उसकी हरदम स्टार्ट ही रहती है । कब जाने दुष्मनमा उस पर हमला बोल दे। तभी रमेसर के कान के पास एक मच्छर भनभनाने लगा। रमेसर ने चपत लगाई। पता नही मच्छर मरा या नही आवाज बन्द हो गयी।
मच्छर से रमेसर का ध्यान टूटा तो उसने देखा दिन साफ हो रहा है पांच बजने वाले होंगे । रमेसर उठ बैठा। एन एच इकत्तीस पर लगातार ट्रक गुजर रहे थे। सुबह के शांत शहर के बीच जाती इस सड़क पर ट्रकों का गुजरना सांय सांय की ध्वनि उत्त्पन्न कर रहा था। रमेसर ने सोचा घर जा कर नहा धो कर आ जाऊं। उसने पवन को उठा कर कहा घर जा रहा हूँ लौटकर आता हूँ तब तक झाड़ू दे कर और चूल्हा जला कर रखना। दुकान के पीछे से उसने सायकिल निकाली और एन एक 31 पर बढ़ चला ।
रमेसर सायकिल पर धीरे धीरे पैडल मारता हुआ घर की ओर बढ़ चला । कपड़ों के नाम पर एक मैली धोती और फटा हुआ बनियान पहने हुए था । उसका शरीर दुबला पतला और थोड़ा झुका हुआ। लग रहा था जैसे संसार की इस आपाधापी में वह जीवन को अभिशाप की तरह जीताऔर गरीबी से लड़ता हुआ जा रहा हो । बारिश के मौसम से सड़कें भी भीगी हुई थीं। अपने मुहल्ले की गली के पास वह ज्यों मुड़ा एक तेज रफ्तार ट्रक आया और रमेसर को कुचलता हुआ निकल गया।
अरमान आनंद
#लघुकथा #shortstory #story #hindistory
Tuesday 24 September 2019
सुशांत कुमार शर्मा की कविता दीक्षा
राधारमण स्वामी मुश्किल में पड़ गए थे
जब कि किसी किशोर वयस लड़की
गुलाबकली ने उठा लिया था
गण्डकी के तट पर रखा हुआ
उनका वल्कल वस्त्र
और प्रतीक्षा करने लगी थी
उनके स्नान के पूर्ण होने का ।
राधारमण स्वामी नग्न स्नान करते थे
यह गुलाबकली ने बहुत बचपन में ही
सुन रखा था और चाहती थी एक बार
स्वामी राधारमण को नंगा देखना ।
इसिलिए जबकि वह जानती थी कि
वह विशेस समय जब
नहाते थे राधारमण स्वामी
कोई नहीं जाता था उस घाट की ओर ।
किशोरवयस गुलाबकली ने
स्वयं को चौदह वसंत रोके रखा
लेकिन जब खुद वसंत हुई
तो नहीं रुक पाई और पहुँच गई
उसी घाट पर उसी समय
क्योंकि विवाह से पूर्व
वह देखना चाहती थी किसी
नंगे पुरुष को
और जानती थी कि राधारमण स्वामी
नंगा नहाते हैं ।
ध्यान आते ही कि कोई तट पर है
स्वामी ने दिखाया अपना रौद्र रूप
और शाप दे देने तक की धमकी दी
पर गुलाबकली ने वस्त्र बाँध दिए
पेड़ की डाली पर
कहा नंगे बाहर आओ ।
राधारमण स्वामी बहुत गिड़गिड़ाए
अंततः बाहर आये
गुलाबकली ने देखा एक पूर्ण पुरुष
और उसी दिन
स्वामी को भी एहसास हुआ
अपने पुरुष होने का
गुलाबकली उनसे दीक्षित होकर
सन्यासिन बन गई
राधारमण स्वामी ने भोग जाना
गुलाबकली ने बस इतना जाना कि
सन्यास अपने नग्न सौंदर्य को
खर्च न करने का नाम है ।
@सुशांत
Friday 20 September 2019
Monday 16 September 2019
रंडी : भाषा और परिभाषा- आशीष आज़ाद
रंडी
―कुछ साल पहले की बात है मारिया शारापोवा को “रंडी” सिर्फ़ इसलिए कहा गया क्योंकि वह सचिन तेंदुलकर को नहीं जानती थीं!
सोना महापात्रा “रंडी” हो गयीं क्योंकि वो सलमान ख़ान की रिहाई सही नहीं मानती थीं!
सानिया मिर्ज़ा से लेकर करीना कपूर तक हर वो सेलेब्रिटी “रंडी” है जिसके प्रेम ने मुल्क और मज़हब की दकियानूसी दीवारों को लांघा!
वह चौदह साल की लड़की भी उस दिन आपके लिए “रंडी” हो जाती है जिस दिन वह आपका प्रपोज़ल ठुकरा देती है और अगर कोई लड़की आपके प्रेम जाल में फंस गयी तो वह भी ब्रेक-अप के बाद “रंडी” हो जाती है!
जीन्स पहनने वाली लड़की से लेकर साड़ी पहनने वाली महिला तक सबका चरित्र आपने सिर्फ़ “रंडी” शब्द से परिभाषित किया है!
बोल्ड और सोशल साइट पर लिखने वाली महिलाओं को अपना विरोध या गुस्सा दिखाने के लिए कुछ लोग फ़ेसबुक पर इन (रंडी वैश्या छिनाल) शब्द को सरेआम लिख/बोल रहे हैं। परंतु.....
रंडी शब्द ना तो आपका विरोध दिखाता है, ना ही आपका गुस्सा। ये सिर्फ़ एक चीज़ दिखाता है, वह है आपकी घटिया मानसिकता और नामर्दानगी।
मगर क्यों? क्योंकि कहीं ना कहीं आपको लगता है कि औरतें आपसे कमतर हैं, और जब यही औरतें आपको चुनौती देती हैं तब आप बौखला जाते हैं और जब आप किसी औरत से हार जाते हैं तब आप बौखलाहट में अपना गुस्सा या विरोध दिखाने के लिए औरत को गाली देते हैं, उसे “रंडी” कहते हैं ! मगर “रंडी” शब्द ना तो आपका विरोध दिखाता है ना ही आपका गुस्सा, ये सिर्फ़ एक चीज़ दिखाता है, वह है आपकी “घटिया मानसिकता"
रंडी-वेश्या कहकर हमें अपमानित करने की लालसा रखने वाले ऐ कमअक्लों, एक पेशे को गाली बना देने की तुम्हारी फूहड़ कोशिश से तो हम पर कोई गाज़ गिरी नहीं। पर अपनी चिल्ला-पों और पोथी-लिखाई से छानकर क्या तुमने इतनी सदियों में कोई शब्द, कोई नाम ढूंढ़ निकाला ?
कोई इस समाज को समझा सके कि पुरुष का पौरुष संयम और सदाचार से बढ़ता है। तुम हमें रंडी, वेश्या कहते हो, हमारा बलात्कार करते हो, हमारे शरीर को गंदी निगाहों से देखते हो, हमें पेट में ही मार देते हो, सरेआम हमारे कपड़े फाड़ते।
कभी देखा है किसी रंडी को तुम्हारे घर पर कुंडी खड़का कर स्नेहिल निमंत्रण देते हुए ?? नहीं न !!! ….वो तुम नीच नामर्द ही होते हो, जो उस रंडी के दरबार में स्वर्ग तलाशने जाते हो
आशीष आज़ाद
(पूर्व छात्र बीएचयू)
Tuesday 6 August 2019
सिद्धार्थ की कविता : रुके हुए फैसले
रुके हुये फैसले
रुके हुये फैसले लेने पड़ते है
जब दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता
सुरंग के अंधेरे में कोई रोशनी जब दिखती है
मन खिलता है
पर डर भी लगता है
आने वाली ट्रेन से
जिसका सायरन अब तक सुनाई नहीं दे रहा
रुके हुये फैसले लेने पड़ते है
जब मारे गये लोगों की आत्मा
देवदार की संख्या पार कर जाती है
चिनार जब रक्तिम हो जाते है
और लाल बर्फ़ जब ठंडी पड़ जाती है
मर चुकी देह सी
तब रुके हुये फैसले लेने ही पड़ते है
रुके हुये फैसले लेने भी चाहिए
जब क्रांति की खाल में छिपा आदमी
हिंसक बाघ बन ताक में है कुछ और हत्याओ के
आखिर किसी झील को लाल सागर बनते देखना हराम है
रुके हुये फैसले लेने ही चाहिए
लोगों द्वारा, लोगों के लिये
जिसमें शामिल हो वो लोग भी
जो आज नहीं हो पाये है
पर रुके हुये फैसले लेने के बाद
कल्पना करनी चाहिये
किसी पांच साल के छोटे यावर की
जिसे पसंद है फंतासी कहानिया उस सड़क की
जिस पर वह दौड़ सकता है निधड़क
बगल वाले अंकल की बाहों से झाकती बन्दूको के भय के बिना
हम कल्पना करनी चाहिये
कि राजू को सुनाने के लिये कहानी
सूबेदार गाव जिन्दा वापस लौट आया है
हमें राजू और यावर की दोस्ती की कल्पना करनी ही चाहिये
जमीन और जोरू की नंगी विभत्स कल्पनाये छोड़कर
और फिर एक आखिरी फैसला लेना चाहिये
इतिहास- भूलने का
जादुई भविष्य के लिये
सिद्धार्थ
विथ लव to प्राइम मिनीस्टर मोदी एंड पीपुल ऑफ़ कश्मीर
Wednesday 31 July 2019
ख़ुद के आधे-अधूरे नोट्स : व्योमेश शुक्ल
ख़ुद के आधे-अधूरे नोट्स : व्योमेश शुक्ल
है अमानिशा उगलता गगन घन अंधकार
खो रहा दिशा का ज्ञान स्तब्ध है पवन चार
(निराला, ‘राम की शक्तिपूजा’)
ऐसे क्षण अंधकार घन में जैसे विद्युत
जागी पृथ्वी तनया कुमारिका छवि अच्युत
(निराला, ‘राम की शक्तिपूजा’)
एक
स्मृति निराशा का कर्तव्य है. लेकिन इस बीच वर्तमान को इतना प्रबल, अपराजेय और शाश्वत मान लिया गया है कि कोई भी हार मानने को तैयार नहीं है और जब तक आप हार नहीं मानेंगे, स्मृति का काम शुरू नहीं होगा. यों, आजकल, स्मृति क्षीण है और चाहे-अनचाहे हमलोग उसका पटाक्षेप कर देने पर आमादा हैं.
दो
इस धारणा को साक्ष्यों से सिद्ध किया जा सकता है. मिसाल के लिए फ़ेसबुक प्रायः रोज़ हमें याद दिलाता रहता है कि आज – इसी तारीख़ से – ठीक एक-दो-तीन-चार या पाँच साल पहले हमने यहाँ क्या कहा-सुना था, कहाँ गए थे या कौन सी तस्वीर शाया की थी. उस परिघटना को वह स्मृति की तरह पेश करता है और हमें, एक बार फिर, उसे अपने लोगों के साथ साझा करने का अवसर देता है. हममें से ज्यदातर लोग कई बार उस बिलकुल क़रीब के अतीत को स्मृति की तरह स्वीकार करते हैं और ‘वे दिन’ वाले अंदाज़ में शेयर करते हैं. हमारे मित्रों की लाइक्स और आशंसा भरी प्रतिक्रियाओं से यह निर्धारित भी होता जाता है कि वह जो कुछ भी है, स्मृति ही है.
तीन
स्मृति की उम्र इतनी कम नहीं हुआ करती. वह बहुत मज़बूत धातु है. मनुष्य नामक शक्तिशाली चीज़ जब इस धातु से टकराती है तो उससे निकलने वाली आवाज़ शताब्दियों के आरपार लहराती हुई जाती है. मुक्तिबोध के शब्दों में : ‘इतिहास की पलक एकबार उठती और गिरती है कि सौ साल बीत जाते हैं.
चार
एक ओर इतिहास-बोध का नुक़सान और दूसरी तरफ़ वर्तमान के ही हीनतर और सद्यःव्यतीत संस्करण को स्मृति मान लेने का भोथरा परसेप्शन – क्या ये दो असंबद्ध बातें हैं ? जो लोग इतिहास और स्मृति को ध्रुवांतों पर रखकर सोचने के अभ्यस्त हैं, उन्हें इस सचाई को भी सोचना होगा. आख़िर यथार्थ का अनुभव क्या है ? वह या तो स्मृति है या कल्पना. यानी स्मृति का अवमूल्यन यथार्थ का निरादर है.
Featured post
हिंदी की युवा कवयित्री काजल की कविताएं
काजल बिल्कुल नई कवयित्री हैं। दिनकर की धरती बेगूसराय से आती हैं। पेशे से शिक्षिका हैं। इनकी कविताओं में एक ताज़गी है। नए बिम्ब और कविता म...
-
कुँवर नारायण की आत्मजयी को प्रकाशित हुए पचास साल से ज्यादा हो चुके हैं। इन पचास सालों में कुँवर जी ने कई महत्त्वपूर्ण कृतियों से भारतीय भा...
-
तिब्बत की स्वाधीनता का स्वप्न है मेरा भविष्य - तेन्ज़िन च़ुन्डू तेन्ज़िन च़ुन्डू निर्वासित तिब्बतियों की भू- राजनीतिक जनांकाक्षाओं की ...