Saturday 10 February 2024

हिंदी की युवा कवयित्री काजल की कविताएं

 


काजल बिल्कुल नई कवयित्री हैं। दिनकर की धरती बेगूसराय से आती हैं। पेशे से शिक्षिका हैं। इनकी कविताओं में एक ताज़गी है। नए बिम्ब और कविता में उसका ट्रीटमेंट बरबस ध्यान खींचता है। अभी शुरुआत है। कवयित्री एक नई उम्मीद लेकर आई हैं। काव्य संसार मे आपका स्वागत है। आपके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ...

 

आप सब इनकी पहली छह कविताओं से रूबरू हो:

धन्यवाद

1

पतझड़

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कहां खोए हो?

 

मौसम धीरे धीरे बदल रहा है

और तुम चुपचाप चले जा रहे हो

एक से लय और ताल में

 

तुम मन के द्वार खोलो तो सही

अपने मौन को तोड़ो तो सही

जरा सिर उठाकर देखो तो सही

 

देखो कि पतझड़ आ गया है

देखो कि हवाएं तुम्हारे मन के द्वार खटखटा रही हैं

उन्हें आने दो

 

देखो कि नदियों की छाती में भी हिलोरें उठ रही हैं

देखो कि कैसे प्रकृति नया रूप धारण करने के लिए

सब पुराना उतार कर फेंक रही है

देखो कि पेड़ कैसे निर्वस्त्र खड़े हैं

देखो कि कैसे सड़कें और चौड़ी होकर खिलखिला रही हैं

देखो कि आज इमारत थोड़ी और ऊंची हो गई हैं

देखो कि धरती अपना मन खोल कर बैठ गई है

 

सब कुछ हवाओं के साथ उड़ा देने केलिए

नदियों के साथ बहा देने के लिए

पत्तों के साथ गिरा देने के लिए

देखो कि एक बार फिर पतझड़ आ गया है

पुराना सब मिटा देने के लिए

ताकि नया वसंत आ सके ।

 

तुम भी अपनी यादों का पिटारा खोल दो

हवा के संग उड़ने को

नदियों के संग बहने को

पत्तों के संग गिरने को

कि फिर से नवजीवन ला सको

कि नया वसंत ला सको ।

 

2

बसन्त

.............

सर्द मौसम में यूं अचानक खिलती है धूप

जैसे खिलता है मन

आती है तुम्हारी याद

 जैसे निकलता है सूरज

कुहासो और बादलों के बीच से

जैसे जंगलों से गुजरती हुई पगडंडियां

अचानक ही मिल जाती है सड़क से

खिल उठते हैं फूल

ओस का भारीपन लिए

जैसे रंग बिरंगे ऊनी कपड़ों में लिपटे बच्चे

झांक रहे हों बहुमंजिली इमारतों की खिड़कियों से ।

 

3

पानी सबको खींच लेता है अपनी तरफ

चाहे समंदर का हो

नदी का हो

तालाब या फिर किसी झील का हो

झरने का हो या कुएं का

आंखों का हो या देह का

 

खींच ही लेता है वो

इंसान को

उसके मन को

उसकी थकान को

उसकी परछाई को भी ।

 

4

 

एक साधारण आदमी आजीवन घूमता है

अपनी काली उजली आंखों में कई रंगीन सपने लेकर।

उनके सपने किसी बंद पिटारी की तरह होते हैं

जिनका मुंह खुलते ही वे एक ही साथ

भड़-भड़ाकर गिर पड़ते हैं ।

एक साधारण आदमी फिर से उन्हें समेटकर

कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ उठाकर चल पड़ता है।

 

5

मैंने मां से पूछा एक दिन -

एक चिड़िया बादलों तक जाना चाहती है

नदी में रहने वाली मछलियां

समंदर में गोता लगाना चाहती है

गांव शहर जाकर बसना चाहता है

पंखुड़ियां हवा के साथ

अनंत को छू लेना चाहती है

मनुष्य अंतरिक्ष में हिरणों की तरह कुलांचे भरना चाहता है

ये सब क्यों?

मां ने अपनी सारी दुनिया को अपने जूडे में बांधा

और ठंडी आहें भरकर बोली -बेटा 'संभावनाएं' ।



6

 

 गुजरते हुए रास्ते

निरंतर बनती इमारतें

ये बहती हवाएं

बीतता हुआ समय

छूटते हुए लोग

उगती हुई फसल

निरंतर कुछ कहती है

कहती है कि सुनो

सुनो, नही सुनने को

रुको, चलते रहने को।

 

काजल

 

 

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