Friday 22 March 2013

अरमान आनंद की कविता नए दौर की क्रांति

आज दोपहर अपने गांव में
घर की देहरी पर
यूँ ही खाली खाली सा उंकडू  बैठा था मैं
अचानक याद आया
इस दफे दिल्ली में मैंने
कई प्रगतिशील अप्सराएँ देखी थीं
जो अपने ब्रांडेड जूतियों से रौंद देना चाहती थीं
नए दौर के साम्राज्यवादियों को।
लेक्मे से रँगे नाखूनों से
नोंच देना चाहती थीं भ्रष्टाचार की जड़ें
ब्लैक बेरी मैसेंजर और फेसबुक से
कर रही थीं
क्रांति का आह्वान
अब मैं
सरक कर खटिये पर आ लेता हूँ
सोचना जारी है
और खटिये की चरमराहट के बीच
औंधा सा लेट
सर को खुजाता हुआ सोच रहा हूँ
ससुरा मार्क्स ने
ई क्रांति के बारे में किस पेज में लिक्खा था।
&&&&&&&&*अरमान*&&&&&&&&&&

Thursday 21 March 2013

आजादी

आज

एक चिड़िया ने

मार दी है सोने की कटोरी को लात

लहूलुहान चोंच से तोडा है चांदी का पिंजरा

और लगा दी है छलांग

अंतहीन में

मालिक नाम का जीव

सर धुनते हुए खोज रहा है

बन्दूक

प्रेम कविता 3

आधी रात को

जब मैं

टटोलता हूँ तुम्हें

या फिर

मेरा विश्वास

मेरी उंगलियों  को  पाँव बना

ढूंढता है तुम्हे

मेरे पास मेरे बिस्तरे पर

मगर तुम वहां नहीं मिलती

मैं हड़बडाया सा उठता हूँ

उठ बैठता हूँ

फिर पागलों की तरह

नोचना चाहता हूँ।

खुद को या बिस्तरे को

मगर मैं

ऐसा नहीं कर सकता

शायद मेरे पढ़े लिखे होने की टीस

मुझे ऐसा करने नहीं देती

मैं मुस्कुराता हूँ

अपनी भूल पर

और सोचता हूँ क्या तुमने

क्या तुमने कभी महसूस किया होगा

इस बेचैनी को

इस छटपटाहट को

हंसी आती है अब

खुद पर

की मैं यह कैसे भूल सकता हूँ की

तुम्हें क्यों याद रहे कुछ भी

तुम्हें तो घेरे होंगीं

किसी की बाहें

कुछ देर पहले ही तो

काफी कमर तोड़ मेहनत के बाद

उसके सीने के जंगल में

नाक घुसाए

तुम हमेशा की तरह

सो रही होगी

और मेरा प्यार

कहीं रिस रहा होगा।

ख्वाबों के उन ****---अरमान

ख्वाबों के उन महंगे हो चुके

पहले बुनने के

सोचना पड़ता है

जोड़ना पड़ता है

हजार दफ़े

मापनी होती है

मोटाई पॉकेट की।
****************---अरमान

इच्छाएं (2)

ढो रहा हूँ आज मैं

अपने मरे हुए जज्बात की लाश

ऐसा नहीं  की

मुझे उम्मीद हो

इसके जिन्दा हो जाने की

नहीं, बिलकुल नहीं

ये लाश अब सड रही है।

इसकी सड़ांध

एहसास दिलाती है।

मेरे अन्दर की

बची खुची इंसानियत का

महसूस कर रहा हूँ

एक दर्द

भावनाओं के मृत हो जाने की टीस

संवेदनात्मक अपंगता की चुभन

फिर जी करता है

करूँ रूद्र तांडव

सती-सी

मेरे शरीर से लिपटी

मेरी भावनाएं

लिथर बिखर कर

व्याप्त हो जाएँ

सगर संसार में....

*******अरमान*********

अरमान आनंद की कविता काश

तुम

एक गिरी हुई गाछ

तुम पर चढ़े हुए

सहलाते लिपटते हुए

और जोर जोर से हुमंचते हुए

कुछ बच्चे

और

अपनी बालकनी में

खड़ा मैं

अपनी टांगों को आपस में उलझाकर

सोचता हूँ

काश!

तुम

मेरे हाते में गिरी होती।

******@अरमान@*****

प्यार - अरमान

प्यार

उस मासूम बच्चे की तरह है।

जो

शादी से पहले

पैदा हो जाया करता  है।

और

शादी के बाद

पैदा किया जाता है।

********%अरमान%******

सलीब की औरत -अरमान

†सलीब की  औरत†
*****************
सलीब पर चढ़कर
एक पुरुष
ईशा बन जाता है।
और
औरतों में  टांक दी गयीं
न जानें
कितनी सलीबें
गुमनाम रह गयीं।
********&अरमान&*******

प्रेम कविता 2 -अरमान

****हिंसा****

लबों से पिसते लब

टकराती हुई नाक

गर्म साँसें

हवाओं में फैली सिस्कारियां

तुम्हारे ब्रा के हुक सुलझाने में उलझे मेरे हाथ

फंसी हुई टांगें

जी चाहता है

फाड़ कर छाती तुम्हारी

समा जाऊं तुझमें

मगर आम लोग इसे हिंसा कहते हैं।

******अरमान*******

पसंद (कविता) -अरमान

अगर तुम

मुझ पर पुरुषवादी होने का संदेह ना करो

तो सच कहता हूँ

मुझे

बहुत अच्छी लगती हैं

तुम्हारी

आंसुओं भरी आँखें

*******अरमान********

अरमान आनंद की प्रेम कविता दंभ

हाय

मैं प्रेम में तुम्हारा ह्रदय जीत

रोज हरता रहता हूँ

रोज

टूटता है

दंभ

की प्रेम में

मेरा पलड़ा भारी है।

******अरमान***********

Wednesday 20 March 2013

अरमान आनंद की कविता बटन


घर से
बाहर की तरफ जाते हुए
मैंने जाना की टूटी है मेरे शर्ट की बटन
लौटा देहरी में
शर्ट पर दौड़ रही थीं
उँगलियाँ
और उँगलियों में नाच रही थी सुई
मेरे सीने के जंगल में गुम हो रही थीं
तुम्हारी गर्म सांसे
तुम्हारे लबों की थिरकन पे ठहरी थी
मुस्कान
तभी अचानक
याद आता है
कल रात
ये बटन
तूने ही तो तोडा था।
--------- अरमान

अरमान आनंद की कविता जुर्माना

(जुर्माना)

तुम मुझे
जब गौर से देखोगे
मेरे होठों पर मिलेंगे
मेरे माशूका के दांत
मेरी पीठ पर मेरी बीबी के नाख़ून
झुके हुए कन्धों पर टंगा हुआ दफ्तर
मेरी ऊँगली क काले धब्बों पर
चुनी हुई सरकार
और नीचे से
ठोंक दिया गया है मेरा संस्कार
मैं
हर रोज
आदमी होने का
जुर्माना भरता हूँ।
********अरमान*********

राजनीति --अरमान

मेरी

महत्वपूर्ण होने की मह्त्वाकांक्षा

और

उत्कृष्ट हो जाने की ललक पर

जब तुमने मुझे

कंधे पर उठाना स्वीकार नहीं किया

तो तुम्हारे सीने पर लात रख

मैंने कोशिश की है

मनचाहा पाने की

लोग इसे विरोध की राजनीति कहते हैं।
********     अरमान        *********

अहं ब्रह्मास्मि (कविता) ---अरमान

अहं ब्रह्म अस्मि(कविता)
मैं स्त्री
वहां तुमने या तुम्हारे पुरखों ने
क्या लिखा
मुझे इससे नहीं कोई सरोकार
तुम्हारा ऊपर वाला
ना मुझे रोटी देता है
ना रोजगार मुझे नहीं मतलब
कि
दुनिया परिणाम है
ईश्वरीय दया का
या किसी धमाके अथवा विध्वंश का
मुझे बस पता है
कि मैंने महीनो सेया है
अपने गर्भ में
ब्रह्माण्ड
और फाड़ कर अपना शरीर
जना है
विश्व
..............................अरमान

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