Thursday 10 July 2014

धर्म {कहानी}

भागलपुर एक बार फिर सुर्ख़ियों में था। वजह .. दंगे। हिन्दू बाहुल्य मुहल्लों में न मुसलामानों की खैर थी और न ही मुस्लिम बाहुल्य मुहल्लों में हिन्दुओं की। चीख पुकार और मातम का माहौल था। आज किसी को फुरसत नही थी की वो किसी के घावों पर मलहम लगाए। कोई किसी को सांत्वना नही दे रहा था क्योंकि हर एक के बदन खुद घाव से लथपथ थे। जिन्हें फुरसत थी वो बदला लेने के षडयंत्र रच रहे थे।
                   अधेड़ उम्र के सुलतान मियां की आँखों में बीस साल पहले का दृश्य घूम गया। कैसे लोग एक दुसरे की जान के प्यासे हो रहे थे। साथ साथ गली में क्रिकेट खेलने वाले बच्चों ने बल्लों की जगह तलवारें थाम लीं थीं। जमीन खून से लाल हो चुकी थी।
        या अली या अल्लाह के नारे गूँज रहे थे। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण दूसरा कोई नारा गूंजना तो खैर संभव ही नहीं था। बीस साल गुजर गए।  यहीं पास में दो गली छोड़ के आम वाले मकान में सुलेमान का दोस्त भी तो रहता था। बड़ा प्यारा दोस्त था वह सुलेमान का । गाढ़ी छनती थी दोनों की। वो  मनहूस शाम भी याद है उडती खबर आई थी की किसी ने दरगाह में जानवर का कोई अंग काट कर फेंक दिया है। बात   की तह तक जाने की जरूरत किसी ने नहीं समझी। मार काट शुरू हो गयी। कर्फ्यू भी लग गया। देखते ही गोली मारने का आदेश था।दो दिनों गुज़र गए।
        उस शाम करीबन आठ बज रहे होंगे। अँधेरा आहिस्ते-आहिस्ते शहर को अपनी आगोश में ले रहा था। अचानक किसी ने दरवाजे को पीटना शुरू किया। दरवाजा खुलते सुल्तान के पैरो में कोई गिर गया। ये गोविन्द था। बुरी तरह घायल.. उसके हाथ में 6 महीने की बच्ची भी थी।
...बचा ले यार इसे। इसे बचा ले। मैं तेरे पाँव पड़ता हूँ। उन्होंने सब खत्म कर दिया। मेरी बीबी बेटे सबको मार दिया। इतना कहकर गोविन्द रोने लगा।
     सुलेमान उसे उठाकर घर के अन्दर ले आया। उसे भरोसा नही हो रहा था। उसकी आवाज जैसे गायब हो गयी थी। दिमाग सुन्न पड़ गया था। गोविन्द बोलता ही जा रहा था। नही सुलेमान मुझे जाने दो इसे बचा लो बस ।वो सब पागल हो चुके हैं।
सुलेमान ने दरवाजा बंद किया और बोला आओ भाई तुम्हे जल्दी से कहीं छुपा दूं। तभी किसी ने दरवाजे को पीटा। आवाज आई दरवाजा खोलो सुलेमान भाई... भाई दरवाजा खोलो ..
गोविन्द का चेहरा स्याह पड़ गया। सुलेमान ने कहा तुम घबराओ मत मैं इनसे निबटता हूँ। दरवाजा खोलते ही सामने जहीर बशीर के साथ कई लोग दिखे। उनके हाथों में नंगी तलवारें थीं। जहीर ने चीखते हुए पूछा साला गोविन्दवा आया है क्या इधर। सुलेमान ने  अपने को संयत करते हुए कहा.. नही तो.. क्या हुआ?
झूठ मत बोलो सुलेमान भाई छोड़ेंगे नही उसे। उसके बेटे और बीबी को काट डाला हमने .. उसेभी नहीं छोड़ेंगे?? कहाँ है वह काफ़िर?
सुलेमान के चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट तैर गयी। मार दिया? ... अच्छा किया अरे चचा कहता था तुम्हे और शांति भाभी कितनी प्यालियाँ चाय की गटकी हैं उनके घर पे खुदा इसका हिसाब करेगा। दोजख में जलोगे... दोजख में भाग जाओ यहाँ से कोई नही है यहाँ। बशीर और जहीर के चेहरे उतर गये। सुलेमान ने दरवाजा बंद कर लिया। सुलेमान लौट कर कमरे में आया। फूल सी बच्ची सोफे पर लेटी हुई थी। गोविन्द नही था। सुलेमान ने सारा घर छान मारा। पिछला दरवाजा खुला था। गोविन्द शायद वहीँ से निकल गया । सुलेमान बच्ची को सीने से लगाए काफी देर तक रोता रहा।

Sunday 6 July 2014

विश्वसुन्दरी पुल वाया बनारस{कविता }

बनारस को जब भी देखा मस्त देखा |भांग की मस्ती से सराबोर देखा |कभी सोचा है क्या है इस मस्ती के पीछे का रहस्य | बनारस मृत्यु के सच को समझता है | बिना मृत्यु को समझे जीवन के महत्व को नहीं समझा जा सकता क्योंकि ब्रह्माण्ड में  सिर्फ नश्वरता ही शाश्वत है| कितनी हैरत की बात है कि लोग यहाँ मरने आते हैं| स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का पुल है बनारस| इसी बनारस  में एक और पुल रहता है ..विश्वसुंदरी पुल... यहाँ बनारस मरने आने लगा है |क्या हो गया इस बनारस को ? सोच के मन परेशान हो जाता है |परसों पिंकी नाम की एक स्त्री ने अपनी बच्ची के साथ इस पुल से छलांग लगा दी | क्या पक रहा है भीतर भीतर ?  क्यों आत्महत्या पर उतारू हो गया है ये शहर ? मन उदास है .... उदास मन के साथ ये कविता आप सबके लिए
-------------------------------------------------------------------
 विश्व सुंदरी पुल  {कविता}

बनारस की गलियों में गुजरते हुए
घाटों की सीढियों पर घूमते हुए,
मैंने देखा
कि दुनिया भर से लोग यहाँ  मरने आते हैं|
बनारस एक पुल है
जो मर्त्य को अमर्त्य तक पहुंचाता है
मृत्युंजय का ये शहर
मृत्यु के इंतज़ार का शहर भी  है
एक जमाने में
जब डाक्टरी
समाज को भुलावा दे पाने में इतनी सक्षम नहीं थी
तब विधवाएं
यहाँ कबीर गढ़ती थीं
यहाँ आने वाला हर आदमी एक झुका हुआ सर है
और मदद में उठने वाला हर हाथ उस्तरा
ये वो शहर है
जहाँ तिरस्कृत तुलसीदास होता है
और बहिष्कृत रैदास
मौत कुछ दे न दे निश्चिन्तता तो जरूर देती हो
धतूरे सी सुबहें
भांग के नशे सी शाम
जैसे किसी अंतहीन यात्रा पर निकली हों
इसी बनारस में एक पुल रहता है
विश्व सुंदरी पुल
पुल को देखने के बाद मुझे कभी ऐसा नहीं लगा
कि यह विश्व का यह सबसे सुन्दर पुल है
विश्व के तमाम धर्मों  की तरह यह पुल भी एक धोखा है
सुना है
कल फिर एक औरत ने यहाँ से गंगा में  छलांग लगा दी
अखबार ने लिखा
वो कूदने से पहले  पुल पर थोड़ी देर टहली भी थी
मन पूछता है टहलने के वक्त क्या सोचा होगा उसने
क्या उसने लड़ने के बारे में सोचा
या जीवन संग्राम से भाग जाना अधिक आसान लगा उसे
किसी ने उसे लड़ना क्यों नही सिखाया
लड़ना क्या सचमुच असभ्य हो जाना है
क्या होता अगर
मरने से पहले वो उसे  मार कर मरती
क्या सचमुच पति ही दोषी होगा
हो सकता है
सरकार की किसी योजना का शिकार हुयी हो
ये भी हो सकता हो कि किसी प्रेमी ने
उसे अच्छे दिनों का झांसा देकर पांच साल तक किया हो यौन-शोषण
जरूर किसी ने सच बता दिया होगा  उसे
जरूर उस कमबख्त का नाम भूख होगा
भूख खाने में बहुत माहिर है
सब कह रहे हैं  बच्ची बच गयी उसकी
कोई बात नहीं
पुल का रास्ता दोनों तरफ से खुलता है
फिर  माँ सिखा के तो गयी ही है
सहने और सहते हुए टूट जाने की कला

जानते हो लोग मरने बनारस आते हैं
और एक ये पुल है
यहाँ मरने
बनारस आता है

अरमान आनंद ०५/०७/२०१४

Featured post

हिंदी की युवा कवयित्री काजल की कविताएं

  काजल बिल्कुल नई कवयित्री हैं। दिनकर की धरती बेगूसराय से आती हैं। पेशे से शिक्षिका हैं। इनकी कविताओं में एक ताज़गी है। नए बिम्ब और कविता म...