Tuesday 28 March 2017

व्यक्तित्व विभाजन

जब कुछ लोग रोटी तलाश रहे हों
तुम उनकी संभावनाओं
का व्यापार कर
जाओ
किसी समुद्र के किनारे
और
रति में रत
रात की किसी सुबह
धोओ नमकीन पानी से अपना चेहरा
प्रेम विलाप में
जोर जोर से कराहो
पाब्लो की पंक्तियाँ
विश्व रंगमंच दिवस पर
करो
क्रंदन का शानदार अभिनय
उतारो कुछ सेल्फियां

तुलसी और मुक्तिबोध पर एक साथ बात करते हुए
रैदास को भूल जाने तुम्हारा अवसरवादी प्रयत्न
कितना अद्भुत है
जो आगामी पीढ़ियों को
चरित्रहीनता पर गर्व करने की सीख देता है

तुम कितनी शानदार मकड़ी हो
जो
अपने जाले में हर किसी को फंसाते हुए
एक साथ
समाजवाद
साम्यवाद
दक्षिणपंथ
जातिवाद
गोत्रवाद
क्षेत्रवाद
नस्लवाद
आतंकवाद
में अपनी आठों टाँगें जमा सकती हो

याद रखो दोस्त
जिस पाप को गंगा न धो सकी
उस
पाप की गठरी को समंदर की विशाल कोख भी छुपा नहीं सकती

Sunday 19 March 2017

गौरैया -अरमान आनंद

गौरैया

गौरैया
तुम गायब हो गयी हो
क्या सचमुच गायब हो गयी हो तुम गौरैया ?
कितनी जरुरी थी तुम आँखों के लिए
तुम्हारा न दिखना डर, भय ,आशंका और आकुलता से भर देता है
कहीं तुम काली रात में घूमती सफेद बस में तो सवार नहीं हो गयीं
कहीं सिगरेट के दागों के साथ तो नहीं पायी गयी
पुलिस की किसी रेड में
हॉस्पिटल के पीछे
गर्भ से निकाल फेंकी गयी नवजात
तुम्हीं तो नहीं थी
जिसके लिए सड़क के कुत्ते छीना झपटी कर रहे थे.

गौरैया
बताओ न
तुम्हारी किडनी बिकी कि देह
मेरे घर की प्यारी लक्ष्मी
तुम अभी न उतरी थी आँगन की नीम से
कहाँ छुप्पा हो गयी
मैं तुम्हे ढूंढ के धप्पा बोलूंगा देखना
प्यारी गौरैया तुम्हे पता है
अनुपस्थिति अपने आप में एक राजनीति है
और गायब कर देना
सत्ता का
जादूगरों से भी पुराना खेल
प्यारी गौरैया
ये दुनियां कोई संसद् तो नहीं
जिससे तुम वाक आउट कर गयी हो
गौरैया तुमने एक बार सलीम अली के बारे में बताया था
उनसे पूछूँ क्या तुम्हारा पता
गौरैया बताओ न तुम गुजरात गयी कि पाकिस्तान
तुम्हारा कौन सा देश था गौरैया
तुम किस सरहद पर मारी गयी
तुम किसका लिखा  गीत गाती थी
इकबाल का या इकबाल का
हम तुम्हेँ ही बचाने के नारे लिख रहे थे
और तुम गायब हो गयी गौरैया
मेरी प्यारी गौरैया
कुछ बताओ न बताओ
ये तो बता दो
तुम्हें इश्क में शहादत मिली कि जंग में

Saturday 18 March 2017

फैसला अरमान आनंद

फैसला
..........
बतौर कवि
और
दुनियां के अदने से चिंतक की हैसियत से
स्वयं को न्यायाधीश मानकर
सबसे पहले ये तय कर दिया मैंने
कि
सरकार ही आरोपी है
उसे फांसी दे दो
लिखा और
तोड़ दी कलम
कि इस आरोपी को
मौत तक
फांसी पर लटकाए रखा जाय

अब सरकार चाहे तो
मुझे
देशद्रोही करार दे
चाहे तो
नक्सली
चाहे तो
वह मुझे
पागल कहे
चाहे तो
मुझे उकसाये
आत्महत्या के लिए
जैसा किसानों को उकसाती है
अभावों के बीच रखकर

अपने साथियों का नरमुंड ले कर दिल्ली में भटकने के बदले

किसानों
उठो
कपास उगाओ
बनाओ फांसी की सबसे मोटी
और सबसे बड़ी फांद वाली रस्सी
जिसमे अंट सके
अंधेर नगरी वाले राजा का गला

तुम्हारा कवि
तुम्हारी रक्षा के लिए
आज जल्लाद की भी भूमिका अदा करेगा
©अरमान आनंद

Thursday 16 March 2017

कूट देंगे

सुनो
ऐसा है
सवाल पूछोगे?
कूट देंगे
जवाब मांगोगे
कूट देंगे
हंसोगे
कूट देंगे
रोओगे
कूट देंगे
नाचोगे
कूट देंगे
कूदोगे
कूट देंगे
फांदोगे
कूट देंगे
किताब लिखोगे
कूट देंगे
व्याख्यान दोगे
कूट देंगे
मैंने पहना हुआ है
तीन रंग के झंडे का नकाब
उघाड़ोगे
कूट देंगे
तुम क्या जानो कितने षड्यंत्रों के बाद मिलती है सत्ता
छीनोगे
कूट देंगे

मेरे पास जुबान से बड़ी लाठी है
मेरे पास मेरे दिमाग से भी मोटी लाठी है
कुछो करोगे
कूट देंगे

©अरमान

इंतज़ार

इस नदी को बहने दो
और नदी किनारे के इस आखिरी पेड़ को मत काटना

जब जड़ता और पशुता से लड़ता मैं
किसी शाम थक जाऊंगा
या
कि कोई
धर्मांध खंजर
मेरी पीठ ,बाजु, और जाँघों को चीर देगा

मैं सिराहने तलवार रख
खुद को किसी पत्थर से टिकाये
यहीं
घावों को मिटटी से तर करता
या फिर
इसी पेड़ की छाँव में घनी नींद सोया मिलूंगा

और
तुम आओ
हक की लड़ाई में जीती
प्यास से हारी
अपना गला तर करने
इसी नदी के किनारे
अश्रु स्वेद रक्त औऱ
मिट्टी में लिपटी

एक बार मुझे अपनी जांधों पर सर रख कर सोने देना
एक बार मुझे अपनी बाहों में
लिपट कर रोने देना
भर लेना अपने गर्भ में मुझको
और
फिर लड़ने को एक लड़ाई
फिर एक बार मुझे होने देना
©अरमान

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