Sunday, 6 July 2014

विश्वसुन्दरी पुल वाया बनारस{कविता }

बनारस को जब भी देखा मस्त देखा |भांग की मस्ती से सराबोर देखा |कभी सोचा है क्या है इस मस्ती के पीछे का रहस्य | बनारस मृत्यु के सच को समझता है | बिना मृत्यु को समझे जीवन के महत्व को नहीं समझा जा सकता क्योंकि ब्रह्माण्ड में  सिर्फ नश्वरता ही शाश्वत है| कितनी हैरत की बात है कि लोग यहाँ मरने आते हैं| स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का पुल है बनारस| इसी बनारस  में एक और पुल रहता है ..विश्वसुंदरी पुल... यहाँ बनारस मरने आने लगा है |क्या हो गया इस बनारस को ? सोच के मन परेशान हो जाता है |परसों पिंकी नाम की एक स्त्री ने अपनी बच्ची के साथ इस पुल से छलांग लगा दी | क्या पक रहा है भीतर भीतर ?  क्यों आत्महत्या पर उतारू हो गया है ये शहर ? मन उदास है .... उदास मन के साथ ये कविता आप सबके लिए
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 विश्व सुंदरी पुल  {कविता}

बनारस की गलियों में गुजरते हुए
घाटों की सीढियों पर घूमते हुए,
मैंने देखा
कि दुनिया भर से लोग यहाँ  मरने आते हैं|
बनारस एक पुल है
जो मर्त्य को अमर्त्य तक पहुंचाता है
मृत्युंजय का ये शहर
मृत्यु के इंतज़ार का शहर भी  है
एक जमाने में
जब डाक्टरी
समाज को भुलावा दे पाने में इतनी सक्षम नहीं थी
तब विधवाएं
यहाँ कबीर गढ़ती थीं
यहाँ आने वाला हर आदमी एक झुका हुआ सर है
और मदद में उठने वाला हर हाथ उस्तरा
ये वो शहर है
जहाँ तिरस्कृत तुलसीदास होता है
और बहिष्कृत रैदास
मौत कुछ दे न दे निश्चिन्तता तो जरूर देती हो
धतूरे सी सुबहें
भांग के नशे सी शाम
जैसे किसी अंतहीन यात्रा पर निकली हों
इसी बनारस में एक पुल रहता है
विश्व सुंदरी पुल
पुल को देखने के बाद मुझे कभी ऐसा नहीं लगा
कि यह विश्व का यह सबसे सुन्दर पुल है
विश्व के तमाम धर्मों  की तरह यह पुल भी एक धोखा है
सुना है
कल फिर एक औरत ने यहाँ से गंगा में  छलांग लगा दी
अखबार ने लिखा
वो कूदने से पहले  पुल पर थोड़ी देर टहली भी थी
मन पूछता है टहलने के वक्त क्या सोचा होगा उसने
क्या उसने लड़ने के बारे में सोचा
या जीवन संग्राम से भाग जाना अधिक आसान लगा उसे
किसी ने उसे लड़ना क्यों नही सिखाया
लड़ना क्या सचमुच असभ्य हो जाना है
क्या होता अगर
मरने से पहले वो उसे  मार कर मरती
क्या सचमुच पति ही दोषी होगा
हो सकता है
सरकार की किसी योजना का शिकार हुयी हो
ये भी हो सकता हो कि किसी प्रेमी ने
उसे अच्छे दिनों का झांसा देकर पांच साल तक किया हो यौन-शोषण
जरूर किसी ने सच बता दिया होगा  उसे
जरूर उस कमबख्त का नाम भूख होगा
भूख खाने में बहुत माहिर है
सब कह रहे हैं  बच्ची बच गयी उसकी
कोई बात नहीं
पुल का रास्ता दोनों तरफ से खुलता है
फिर  माँ सिखा के तो गयी ही है
सहने और सहते हुए टूट जाने की कला

जानते हो लोग मरने बनारस आते हैं
और एक ये पुल है
यहाँ मरने
बनारस आता है

अरमान आनंद ०५/०७/२०१४

4 comments:

  1. bht khub armaan ji...

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. ऐतिहासिकता ,मोक्ष सम्बद्ध धारणा एवं उस पर व्यंग्य।

    वाराणसी का यथार्थ जीवन,। महिलाओं के जीवन से जुड़ी घटनाएँ, पुरुष मानसिकता के कारण लाचार एवं विवश स्त्रियाँ, संघर्षमय जीवन को जीने में अक्षम महिलाएं एवं उसके लाचार बच्चे, प्रेरणा रहित बच्चे ,पुल सम्बद्ध यथार्थ धारणाएं ,काशी ने अमरत्व को प्राप्त करने हेतु मरने आना तथा वाराणसी को घुट घुटकर नित्य ही स्वयम मरते दिखाना एक गंभीर परख और चिंतन का परिणाम है। यह कविता व्यक्ति., समाज और सरकार सबका ध्यान सामाजिक भ्रष्टाचार की ऒर बरबस खींचती है और एक रचनात्मक दिशा की ऒर बढ़ने की ऒर उत्प्रेरित करती है।

    बिंदु कुमारी
    सहायक शिक्षिका उच्च विद्यालय मोहनपुर बेगुसराई बिहार

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  4. ....is yatharth chitran ke liye bahut bahut badhayee

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