Sunday, 28 September 2014

हिन्दी साहित्यिक ब्लॉग (परिचयात्मक आलेख)

  हिन्दी साहित्यिक ब्लॉग
   सामान्य परिचय एवं इतिहास -
       ब्लाग दिखने में यह छोटा सा शब्द, स्वयं में बड़ी अर्थवत्ता रखता है तथा इसकी सबसे बड़ी महत्ता है इसकी विचारों को संकलन एवं संवहन-प्रसारण बार सकने की क्षमता। मुक्त ज्ञान जोश विकिपिडिया ब्लाग का हिन्दी तात्पर्य चिट्ठा बताता है। ब्लाग लिखने वाले को ब्लागर (चिट्ठाकार) तथा इस कार्य को ब्लागिंग या चिट्ठाकारी की संज्ञा दी जाती है। प्रत्येक ब्लाग की अपनी एक खासियत होती है। उसके अनुसार उसे व्यक्तिगत, साहित्यिक, संगीत, इतिहास, पत्रिका इत्यादि श्रेणियों में रखा जाता है। ब्लाग अंग्रेजी शब्द वेबलाग ूमइसवह का सूक्ष्म रूप है। एक प्रारंभिक ब्लागर द्वारा मजाक में वी ब्लाग ूमइसवह से  ूम.इसवह का प्रयोग हुआ तथा संक्षिप्तिकरण होते होते मात्र ठसवह शब्द रह गया। ब्लाग का आरंभ 1992 में लांच की गई पहली बेवसाइट के साथ ही हो गया था। तथ्यों के अनुसार दिसम्बर 2007 तक खर्च इंजिन टैªक्नोरैटी द्वारा 112,000,000 ब्लाग टैªक किये जा रहे थे। टैबलैट, लैपटाप की बढ़ती जनसंख्या के आधार पर मैं यह दावे से कह सकता हूँ कि इनकी संख्या तत्काल में अरब को पार कर गई होगी।
       ब्लाग एक प्रकार का व्यक्तिगत जाल पृष्ठ या वेबसाइट होता है जिस पर संबंधित विषयों को समाचार, चित्र जानकारियाँ विचार आदि उपलब्ध कराये जाते हैं।
       हिन्दी शब्द चिट्ठा हिन्दी चिट्ठाकार आलोक कुमार प्रतिपारित किया गया थाा जो कि अब इन्टरनेट पर हिन्दी दुनिया में सामान्यतः प्रचलित है। गूगल ने भी इसे अपने शब्द कोश में स्थान दिया है। हिन्दी के प्रथम चिट्ठा का श्रेय भी आलोक कुमार के चिट्ठे या ब्लॉग नौ दो ग्यारह को जाता है।
       2004 में ब्लाग शब्द को मेरियम बेबस्टर में अधिकारिक तौर पर सम्मिलित किया गया था। सूचनाओं के आधार पर पता चलता है कि आरंभिक ब्लाग कंप्यूटर जगत संबंधी मूल भूत जानकारियों के थे। अब विषयों के आधार पर इन्हें कई प्रकारों में बंट गया है।
प्रकार -       व्यक्तिगत ब्लाग
साहित्यिक ब्लाग
              छायाचित्र ब्लाग
              विडियो एवं संगीत के ब्लाग
              कला या आर्ट ब्लाग इत्यादि।
हिन्दी साहित्यिक ब्लाग-
       जैसा कि पूर्ववत बताया गया है कि हिन्दी ब्लाग या चिट्ठे की शुरूआत आलोक कुमार ने नौ दो ग्यारह से होती है इसके बाद ब्लाग लिखने वालों का सिलसिला सा चल पड़ा। बड़े-बड़े साहित्यकारों कवियों आलोचको और बड़ी छोटी पत्रिकाओं ने अपने ब्लाग बनाए। इनके साथ ही जो सबसे बड़ी बात हुई वह यह कि साहित्य की जो छुई मुई लेकिन मार्के की आवाजें जो स्वयं या अन्य किसी कारणों से दबी थीं साथ ही वे आवाजें और विचार जिन्हें संपादकीय तानाशाही का शिकार बनना पड़ा मुखर होकर सामने आई। अतः मेरा विचार है कि ब्लाग या चिट्ठों को नई साहित्यिक क्रान्ति का संवाहक माना जाय तो कुछ गलत नहीं होगा।
       हिन्दी साहित्य को बढ़ावा देने में ब्लाग का विकसित रूप अब हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं के रूप में दिखता है। साहित्यिक पत्रिकाओं की सफलता का अन्दाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अनुराग वत्स की ब्लाग पत्रिका सबद पर एक कहानी है रिवाल्वर उसे हजारों फीड बैक और हिट मिले हैं। क्या किसी प्रिंट मीडिया की पत्रिका को इतने पाठक भी मिल पाते हैं। वाराणसी बी.एच.यू. के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डा0 रामाज्ञा शशिधर ब्लाग है अस्सी चौराहा। शशिधर जी की सूरन वाली वैचारिक कबकबाहट का आस्वादन लेने के लिए आपको इस पर फिजी, अरब, यू.एस.ए., मद्रास, केरल सभी जगहो के भारतीय-अभारतीय, हिन्दी-अहिन्दी भाषी लोग एक साथ चौकड़ी लगाए मिलेंगे। कुछ रूढ़-मूढ़ लोग हाथ में नींबू का टुकड़ा लेकर बैठते हैं फिर भी सूरन का मजा लते हैं। विरोेध के बावजूद उठ जाएं ऐसा साहस नहीं होता।
       तीसरी तरफ कविता कोश और प्रतिलिपि जैसी प्रसिद्ध ब्लाग पत्रिकाएं भी हैं। प्रतिलिपि को फोर्ब्स इंडिया ने इण्टरनेट और साहित्य की अणमान्य पत्रिकाओं में शामिल कर उसे सम्मान दिया हैं
       कविता कोश लंदन से चलाई जाती है और अनिवासी और निवासी भारतीय में समान्य रूप से लोकप्रिय है।
लाभ -
       साहित्य स्वभाव सामान्य जन को हित का आकांक्षी होता है ऐसे में हिन्दी की कुछ प्रमुख पत्रिकाएं साहित्यिक राजनीति की चपेट में आकार सामान्य जनता लेखक और खास कर नवोदित लेखकों के साथ अन्याय कर रहीं थी। लेखक अकारण साहित्यिक तानाशाही का शिकार हो रहे थे ऐसे में ब्लाग एक खुले मंच के रूप में पदापर्ण करता है जहां हर कोई अपनी वैचारिक स्वतंत्रता के साथ उपस्थित होता है। बादनोति की अनावश्यक हस्तक्षेप से भी मुक्ति मिलती है।
       दूसरी बात यह कि हिन्दी भारतीयों की भाषा है और नव शिक्षित भारतीयों का बड़ा तबका तकनीकी, प्रबंधन इत्यादि क्षेत्रों में कर रहा है ऐसे में समय की न्यूनता और आम साहित्यिक पत्रिकाओं की पहुँच की संभावना शून्यता का पृष्ठ पोषण ब्लाग ही कर पाता है। एक ब्लाग ही है जो दुनिया के किसी हिस्से में आप की उंगलियों की एक क्लिक में दब पड़ा है।
       तीसरी बात है भाषा का प्रसार हिन्दी भाषा भाषियों की संख्या इसे विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा का दर्जा देती है और हमारी दिली ख्वाहिश रहती है कि हिन्दी भाषा और उसका संस्कार तरक्की करे ऐसे में ब्लाग ही एक ऐसा सशक्त माध्मय बन सकता है जो समान और निष्पक्ष रूप से साहित्य का संवेदन कर सके और साहित्य का विकास स्वतः स्फुर्त रूप से भाषा गर्वोन्नत ऊँचाई प्रदान करता है।
       अगले पक्ष के रूप में मैं देखता हूँ उन छात्रों के वैचारिक विकास की और जो अपना वक्त और देश का भविष्य पोर्न साइट्स और विडियो गेम्स की भेंट चढ़ा रहे हैं। ब्लागिंग या साहित्य इनके लिए वैचारिक, संस्कृतिक तथा शैक्षिक रूप से ज्ञान और मूल्यों का संवर्द्धक होगा ऐसा कहने में कोई गुरेज नहीं है।
       राजनैतिक मुद्दों और विचारों और साहित्य का साथ भी चोली दामन का रहा है लेकिन वक्त के साथ-साथ दामन स्थिति विकृत हुई फिर स्थान शून्यता का शिकार हुई ऐसे में राजनैतिक नग्नता उभर कर सामने आई है। ब्लाग ऐसे में पुनः साहित्य को पुर्नस्थिति में लाने के लिए कृतसंकल्प दिख रहा है तथा नग्नता को छुपाने के बदले नग्नता की समाप्ति मूल्यों और स्वच्छ विचारों को बढ़ावा देने की पुरजोर कोशिश कर रहा हैै।
प्रतिपक्ष-
       संपादकीय हस्तक्षेप पहले साहित्य को सुनियोजित उत्कृष्टता प्रदान करते थे। ब्लाग में संपादकों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। ऐसे में ब्लागरों को चाहिए कि वे स्वच्छंदता में बदलने से रोकें तथा आत्म अनुशासन रखें। दूसरा पक्ष यह भी है कि अब भारतेंदु और महावीर प्रसाद जैसे संपादक भी कहां मिलते हैं। लेखकों को चाहिए कि वे पाठकों के कामेंट पर ध्यान दे स्वतंत्र संपादक के रूप में पाठक ही उनकी रचना धर्मिता को निखार सकते है तथा वे इस प्रसिद्ध पंक्ति को आत्मसात भी करे कि..... निंदक नियरे राखिये.......
       प्रमुख साहित्यिक ब्लाग एवं ब्लाग पत्रिकाएँ अस्सी चौराहा (रामाज्ञा शशिधर), प्रतिलिपि, शबद (अनुराग कश्यप), संवादी (अरूण देव) कलम (महेश आलोक), हम कलम (अशोक कुमार पाण्डेय), अनुवाद, कविता कोश, कविता कोसी, अ आ, कबाड़खाना, असुविधा, समालोचन इत्यादि।
अंत में- ब्लाग रचना धर्मिता और वैचारिकी को उत्कृष्ट ऊँचाई प्रदान करने प्रक्षेपण स्थल है। हिन्दी की समृद्धि और साहित्य के विकास के इस क्रांति रथ पर सवार हो हम नया मुकाम हासिल कर सकेंगे।

अरमान

Friday, 19 September 2014

एक कहानी चाय के साथ

एक कहानी चाय के साथ

एक कप चाय में कितनी कहानी? ओह मतलब कितना शक्कर ? एक चम्मच ? नहीं! वो भी नहीं|शुगर फ्री चलेगा ? हम्म चलिए शुगर फ्री आपकी मर्जी से कहानी मेरी मर्जी से | एक कहानी सुनाता हूँ चाय के साथ |
                      एक पूंजीवादी था |क्षमा करें मैं शब्द बदलना चाहूँगा ...अर्थ में ख़ास परिवर्तन तो नहीं होगा, हाँ... शब्द आँखों में चुभेगा नहीं |पुनः प्रारंभ ... एक सेठ था उसका कपड़ों का व्यवसाय था| उसकी दुकान कहीं भी हो सकती है.. जर्मनी लन्दन,दिल्ली, बिहार, बेगुसराय, बनारस.. कहीं भी| आपके पड़ोस में भी हो सकता है शायद| मगर गोदाम उसके पेट में था और फेफड़े में तिजोरी| अब बचा समय ..तो स्वादानुसार जो भी सन ..ईस्वी चाहें इस कहानी में डाल सकते हैं|
                         कहानी का दूसरा पात्र उसी सेठ द्वारा तयशुदा  व्यवस्था का शिकार  ..स्वयं  सेठ का विलोम एक भिखारी था| हाँ .. हाँ.. सही पकड़ा .. भिखमंगा यार| वही जो फटे कपड़ों में स्टेशन के बहार आपके लिए खड़ा होता है और निकलते ही एसी का सारा मजा खराब कर देता है| सिक्कों के बदले बेफजूल दुआएं बांटता फिरता है|आह.. क्षमा करना आप पकड़ कैसे सकते हैं ? उसके कपड़ों की गंद आपके ड्रायक्लीन कपड़ों की खूबसूरती बर्बाद कर सकता है| तो बिना पकड़े .... बस देखें कि एक भिखमंगा भी था |रोजाना वह भीख मांगने सेठ की दूकान पर आ धमकता | सेठ उससे बेहद तंग आ चुका था|एक दिन उसने भिखारी को बुलवाया | उसे नहलवाया .. उसकी हजामत बनवायी और महाकवि निराला के उस भिखमंगे पर कोट-वोट वो भी नया-नया  डाल-डूल कर बोला ..  अब आइना देखो बस .. तुम कैसे साहब से लगते हो?
                भिखमंगा खुद को निहारता हुआ खाली जेबों वाला कोट-पैंट पहनकर चला गया|
               सुना है वह आपके शहर वाला साहब भिखमंगा भूख से तड़प-तड़प कर{संवेदना मंगवाइये सर } मर गया | सेठ खुश था | अब वह चैन से दुपहरी में एसी चला कर पेट पर हाथ रखे सोयेगा| कोई कटोरा बजाकर उसकी नींद में खलल नहीं डाल पायेगा |
            आपकी चाय-वाय ख़त्म हो गयी हो तो कप-प्लेट समेत कर नीचे रख दीजिये |कहानी तो खत्म हो गयी| आप तो खामख्वाह भावुक हुए जाते हैं, भिखारी ही तो था|

                                                                                                                अरमान आनंद 

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...