Friday 19 September 2014

एक कहानी चाय के साथ

एक कहानी चाय के साथ

एक कप चाय में कितनी कहानी? ओह मतलब कितना शक्कर ? एक चम्मच ? नहीं! वो भी नहीं|शुगर फ्री चलेगा ? हम्म चलिए शुगर फ्री आपकी मर्जी से कहानी मेरी मर्जी से | एक कहानी सुनाता हूँ चाय के साथ |
                      एक पूंजीवादी था |क्षमा करें मैं शब्द बदलना चाहूँगा ...अर्थ में ख़ास परिवर्तन तो नहीं होगा, हाँ... शब्द आँखों में चुभेगा नहीं |पुनः प्रारंभ ... एक सेठ था उसका कपड़ों का व्यवसाय था| उसकी दुकान कहीं भी हो सकती है.. जर्मनी लन्दन,दिल्ली, बिहार, बेगुसराय, बनारस.. कहीं भी| आपके पड़ोस में भी हो सकता है शायद| मगर गोदाम उसके पेट में था और फेफड़े में तिजोरी| अब बचा समय ..तो स्वादानुसार जो भी सन ..ईस्वी चाहें इस कहानी में डाल सकते हैं|
                         कहानी का दूसरा पात्र उसी सेठ द्वारा तयशुदा  व्यवस्था का शिकार  ..स्वयं  सेठ का विलोम एक भिखारी था| हाँ .. हाँ.. सही पकड़ा .. भिखमंगा यार| वही जो फटे कपड़ों में स्टेशन के बहार आपके लिए खड़ा होता है और निकलते ही एसी का सारा मजा खराब कर देता है| सिक्कों के बदले बेफजूल दुआएं बांटता फिरता है|आह.. क्षमा करना आप पकड़ कैसे सकते हैं ? उसके कपड़ों की गंद आपके ड्रायक्लीन कपड़ों की खूबसूरती बर्बाद कर सकता है| तो बिना पकड़े .... बस देखें कि एक भिखमंगा भी था |रोजाना वह भीख मांगने सेठ की दूकान पर आ धमकता | सेठ उससे बेहद तंग आ चुका था|एक दिन उसने भिखारी को बुलवाया | उसे नहलवाया .. उसकी हजामत बनवायी और महाकवि निराला के उस भिखमंगे पर कोट-वोट वो भी नया-नया  डाल-डूल कर बोला ..  अब आइना देखो बस .. तुम कैसे साहब से लगते हो?
                भिखमंगा खुद को निहारता हुआ खाली जेबों वाला कोट-पैंट पहनकर चला गया|
               सुना है वह आपके शहर वाला साहब भिखमंगा भूख से तड़प-तड़प कर{संवेदना मंगवाइये सर } मर गया | सेठ खुश था | अब वह चैन से दुपहरी में एसी चला कर पेट पर हाथ रखे सोयेगा| कोई कटोरा बजाकर उसकी नींद में खलल नहीं डाल पायेगा |
            आपकी चाय-वाय ख़त्म हो गयी हो तो कप-प्लेट समेत कर नीचे रख दीजिये |कहानी तो खत्म हो गयी| आप तो खामख्वाह भावुक हुए जाते हैं, भिखारी ही तो था|

                                                                                                                अरमान आनंद 

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