एक कहानी चाय के
साथ
एक
कप चाय में कितनी कहानी? ओह मतलब कितना शक्कर ? एक चम्मच ? नहीं! वो भी नहीं|शुगर
फ्री चलेगा ? हम्म चलिए शुगर फ्री आपकी मर्जी से कहानी मेरी मर्जी से | एक कहानी
सुनाता हूँ चाय के साथ |
एक पूंजीवादी था |क्षमा करें मैं शब्द बदलना
चाहूँगा ...अर्थ में ख़ास परिवर्तन तो नहीं होगा, हाँ... शब्द आँखों में चुभेगा
नहीं |पुनः प्रारंभ ... एक सेठ था उसका कपड़ों का व्यवसाय था| उसकी दुकान कहीं भी
हो सकती है.. जर्मनी लन्दन,दिल्ली, बिहार, बेगुसराय, बनारस.. कहीं भी| आपके पड़ोस
में भी हो सकता है शायद| मगर गोदाम उसके पेट में था और फेफड़े में तिजोरी| अब बचा
समय ..तो स्वादानुसार जो भी सन ..ईस्वी चाहें इस कहानी में डाल सकते हैं|
कहानी का दूसरा पात्र
उसी सेठ द्वारा तयशुदा व्यवस्था का शिकार ..स्वयं
सेठ का विलोम एक भिखारी था| हाँ .. हाँ.. सही पकड़ा .. भिखमंगा यार| वही जो फटे कपड़ों में स्टेशन के बहार आपके लिए खड़ा होता है और निकलते ही एसी का सारा मजा खराब कर देता है| सिक्कों के बदले बेफजूल दुआएं बांटता फिरता है|आह.. क्षमा करना आप पकड़ कैसे सकते हैं ? उसके कपड़ों की गंद आपके ड्रायक्लीन कपड़ों की
खूबसूरती बर्बाद कर सकता है| तो बिना पकड़े .... बस देखें कि एक भिखमंगा भी था
|रोजाना वह भीख मांगने सेठ की दूकान पर आ धमकता | सेठ उससे बेहद तंग आ चुका था|एक
दिन उसने भिखारी को बुलवाया | उसे नहलवाया .. उसकी हजामत बनवायी और महाकवि निराला
के उस भिखमंगे पर कोट-वोट वो भी नया-नया
डाल-डूल कर बोला .. अब आइना देखो
बस .. तुम कैसे साहब से लगते हो?
भिखमंगा खुद को निहारता हुआ खाली
जेबों वाला कोट-पैंट पहनकर चला गया|
सुना है वह आपके शहर वाला साहब
भिखमंगा भूख से तड़प-तड़प कर{संवेदना मंगवाइये सर } मर गया | सेठ खुश था | अब वह चैन
से दुपहरी में एसी चला कर पेट पर हाथ रखे सोयेगा| कोई कटोरा बजाकर उसकी नींद में
खलल नहीं डाल पायेगा |
आपकी चाय-वाय ख़त्म हो गयी हो तो
कप-प्लेट समेत कर नीचे रख दीजिये |कहानी तो खत्म हो गयी| आप तो खामख्वाह भावुक हुए
जाते हैं, भिखारी ही तो था|
अरमान आनंद
No comments:
Post a Comment