Monday, 26 February 2018

हर्षिका गंगवार की तीन कविताएँ

 आओगे न तुम
----------------------
          1.

आओगे ना तुम,
बस एक बार.....

उस मंदिर पर या मस्जिद वाले रास्ते पर,
उस दुकान पर या किराये वाले मकान पर,
मेरी छत पर या तुम्हारी छत पर,
बोलो ना,
आओगे ना ...
अपनी बालकनी में,

आ सको तो आना .......

उस नन्हीं सी जान के साथ
चेहरे पर मुस्कान के साथ
पुरानी जान पहचान के साथ
या अौर किसी अन्जान के साथ
बस एक बार...
आना,
देख लेना चुपके से मुझे
या मैं देख लूँगी चुपके से तुम्हें।

आ सको तो आना.......

मेरे घर,
मम्मी से मिलने के बहाने
या पापा को कविता सुनाने
ना हो तो भाई को मैथ्स पढ़ाने
या नाम लेकर मुझको बुलाने
पुराने जख्मों पर मरहम लगाने
या जख्मों को फिर से बढ़ाने
कोरे हदय पर खुद को बनाने
या हदय से खुद को मिटाने
बस एक बार .....
आना,
सुन लेना चुपके से मुझे
या मैं सुन लूँगी चुपके से तुम्हें ।

आ सको तो आना .....

फागुन में ,
रंगे-पुते लड़कों की टोली में
भांग के साथ हँसी ठिठोली में
बचपन वाली हमजोली में
हाँ अबीर लगाने होली में
बस एक बार...
आना,
रंग देना चुपके से मुझे
या मैं रंग दूँगी चुपके से तुम्हें ।

आ सको तो आना .....
बस एक बार ...
आना ,
क्योंकि बात बाकी है
आना ,
क्योंकि याद बाकी है
आना,
क्योंकि साथ बाकी है।

2
प्रेम कविता
---------------

प्रेम...
न जाने कैसी बला है,
मुझे बार-बार हर बार घेर लेती है।

हाँ सच में,
अभी-अभी बिल्कुल अभी
एक हृदय ...
जिसने मेरे हृदय को स्पर्श किया
उसके करीब आये बिना
जैसे मैंनें,
दूर से ही प्रेम की आहट सुनी
शायद बहुत खूबसूरत था वो हृदय
जिसने अपनी बीमार माँ को
प्यार से दुलारा
और जैसे एक पल में,
उनकी सारी चिंताओं को चिता में बदल दिया
और साथ ही,
उनके माथे पर उभरी दर्द की लकीरों को
अपनी उँगलियों से भद्दा करने की
उसने एक नाकाम सी कोशिश की।

मैं निशब्द थी,
और मेरे आँसू उत्तेजित
जैसे फिर ...मेरा बूँद भर दर्द,
उस प्रेम के सागर में विलुप्त हो गया।

मुझे लगा कि जैसे
प्रेम ने एक बार फिर ,
मुझे अपने अस्तित्व का
सबूत देने की कोशिश में ,
मेरे हृदय के दरवाजे पर
दस्तक देने का प्रयास किया ।

मुझे आभास हुआ
कि शायद फिर,
मुझे प्रेम हुआ है
उस हृदय के स्नेह के साथ ।
हाँ सच में ...
मुझे उस प्रेम करने वाले से
निःस्वार्थ प्रेम हो गया था।
और मन कर रहा था
कि काश !मैं भी श़रीक होती
उस प्रेम के उन्वान में,
और चुरा लेती उसमें से
अपने लिए...
प्रेम का बस एक कतरा ।

3

सैनिटरी पैड
-----------------
सैनिटरी पैड खरीदने में
जिन्हें शर्म आती है।
याद करो....
माहवारी का पहला दिन
जब तुम अबोध थी
तुम नहीं जानती थी
कि वो लाल धब्बे,
जो तुम्हारी स्कर्ट पर लगें हैं
वो कैसे लगे
और अब
मम्मी को कैसे बताना है
भाई से कैसे छिपाना है
और हाँ ...
स्कूल से जल्दी घर आने का बहाना,
पापा को भी तो समझाना है।
इतने सवालों के बीच ...
तुम्हारा दर्द भी सहम जाता था
जो पिछली रात से
तुम्हारे बदन पर ग्रहण लगाये बैठा था।
और कभी सूरज का पीलापन बन
तुम्हारे चेहरे पर उतर आता
और जिसका ताप बदन से होकर
धीरे-धीरे पेट के निचले पृष्ठ पर ठहर जाता
जोर से दस्तक देते हुये
पाँव तक भारी हो जाते
और पाँव दर्द के बोझ से
थरथराकर काँपते
और ये दर्द
पूरे शरीर को बेजान करता हुआ
आँखों से रिस-रिस कर
बह निकलता।
हाँ मैं लिख रही हूं
स्त्री के दर्द को
मुझे डर नहीं लगता
माहवारी की बात करने में
मुझे शर्म नहीं आती
सैनेटरी पैड खरीदने में ,
पर ....
सहम जाती हूँ
महीने में पाँच दिन
जो मेरे शरीर में
त्रासदी ला देते हैं।
और दिमाग शून्य कर देते हैं।
साथ ही ,
हजार आडम्बर
जो 'अछूत' जैसे शब्द को मायने देते हैं।
पर शुक्र है...
मैं नहीं मानती
उन रिवाजों को
जो किसी भी स्थिति में
स्त्री को अछूत बनाये।
क्योंकि हम जिंदा हैं
साँस लेती चलती-फिरती कठपुतलियाँ नहीं हैं।

हर्षिका गंगवार

कवयित्री के बारे में -
        हर्षिका बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर की छात्रा हैं। सामाजिक मुद्दों पर लिखती और जूझती रहती हैं। आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। हर्षिका ने सामाजिक मुद्दों और प्रेम को अपनी कविता का मुख्य विषय रखा है। पुराना अड्डा साहित्य में इनके योगदान हेतु इन्हें धन्यवाद ज्ञापित करता है साथ ही इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है। - अरमान आनंद (संपादक पुराना अड्डा ब्लॉग)

हर्षिका गंगवार

Wednesday, 7 February 2018

पन्नीरसेल्वम और लेडीज़ सीट

नहीं हटूंगा ,डटा रहूंगा , इसी बर्थ पर मर मिटूंगा .
कलकत्ता में हमने बसों में महिला सीटें आरक्षित होते देखीं हैं. सीट न मिलने पर लोग उन पर बैठ जाते थे,पर जैसे हीं महिलाएं आतीं ,लोग आरक्षित सीट छोड़ देते . कंडक्टर भी तत्पर होता ,महिला सीट खाली करवाने के लिए . इसलिए लोग महिला सीट पर बैठने से गुरेज करते .सीट न मिलने की स्थिति में लोग बड़े बेमन से आरक्षित सीट पर बैठते . पराया धन उनके किस काम का  ? कई बार ऐसा होता कि आप जैसे हीं बैठे कि कोई न कोई महिला अपना अधिकार मांगनेे आपके सामने आकर खड़ी हो जाती .
काका हाथरसी ने इस व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया . उनका कहना था कि बर्थ कंट्रोल (जन्म नियंत्रण ) के लिए जब नेता हमें प्रेरित कर रहे हैं तो हमने बर्थ (सीट )कंट्रोल कर लिया तो क्या बुरा किया ? इसी के विरोध स्वरुप वे ट्रेन में महिला आरक्षित सीट पर बैठ गये . टीटी के कहने पर भी वे नहीं हटे ,डटे रहे . टीटी को कविता सुना दी . यह कविता उन दिनों साप्ताहिक धर्मयुग में छपी थी .पूरी कविता ठीक तरह से  मुझे याद नहीं . आधी अधूरी जो याद है ,वह लिख रहा हूं .
नेता लोग चिल्ला रहे हैं ,पीट पीट कर ढोल.
करो बर्थ कंट्रोल , भइया ! करो बर्थ कंट्रोल .
..............................................................

कह काका कविराय ,सुनो हे टीटी !
नहीं हटूंगा ,डटा रहूंगा ,
इसी बर्थ पर मर मिटूंगा .

इस क्षेत्र में समानता का अधिकार काम नहीं करता . लोगों के मन पर महिलाओं का शारीरिक रुप से कमजोर होना हॉवी रहता है . व्यंग्य ही सही ,पर काका हाथरसी ने यह मुद्दा उठाकर महिला सीट के आरक्षण पर अपना विरोध तो दर्ज करा हीं दिया है . ऐसे हीं एक बार महिला सीट पर मेरे एक fb मित्र बैठ गये थे . वे दक्षिण के किसी शहर में विजनेस टूर पर थे .भाषा न समझ पाने के कारण वे महिला आरक्षित सीट पर बैठ गये .काफी देर बाद एक महिला उनके सीट के सामने आ खड़ी हुई . वह अपनी भाषा में अपनी सीट छोड़ने की मांग करने लगी . भाषा न समझ पाने के कारण वे उस सीट पर डटे रहे .स्थानीय लोग अपनी भाषा में उनका मजाक बनाने लगे . वह महिला भी खरी खोटी सुनाती रही .भाषा की समझ आड़े आ रही थी . वे सुनते रहे . तभी किसी ने अंग्रेजी में कहा कि यह महिला सीट है . उनका तब तक स्टॉपेज आ गया था . कंडक्टर के बताने पर वे उतर पड़े .
महिलाओं के लिए अब प्लेन में भी छ: सीटें आरक्षित होने लगी हैं .राजनीति भी उनके लिए अछूती नहीं रह गई है . महिलाओं के लिए 33% आरक्षण हाल के दिनों में तो फिलहाल खटाई में पड़ा हुआ है ; पर देर सबेर यह लागू हो जायेगा . ग्राम पंचायतों में यह पहले से हीं लागू है . ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी में मुख्यमंत्री का यह पद महिला आरक्षण को भेंट चढ़ चुका है . जय ललिता के बाद इस पद की दावेदारी उनकी परम मित्र शशिकला को मिल चुकी है . वे वर्तमान पार्टी प्रमुख बन गईं हैं .
शशिकला का पार्टी प्रमुख बनने से राजनीतिक विश्लेषकों कोई आश्चर्य नहीं हुआ है .ओ पनीर सेल्वम तीन बार स्टैंड बाई मुख्यमंत्री बने हैं . अम्मा चिन्नमा (जय ललिता -शशिकला ) की जोड़ी उन्हें मुख्य मंत्री बनने नहीं देगी . यह पद अघोषित रुप से हीं सही ऑल इंडिया द्रविण मुनेत्र कड़गम पार्टी में महिलाओं के लिए आरक्षित हो रखा है . गल्ती ओ पनीर सेल्वम की है ,जो बार बार स्टेपनी मुख्यमंत्री बनते रहते हैं . आखिर वे महिला आरक्षित सीट पर बैठते हीं क्यों हैं ?
लेखक - Er S.D. Ojha

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...