Wednesday, 7 February 2018

पन्नीरसेल्वम और लेडीज़ सीट

नहीं हटूंगा ,डटा रहूंगा , इसी बर्थ पर मर मिटूंगा .
कलकत्ता में हमने बसों में महिला सीटें आरक्षित होते देखीं हैं. सीट न मिलने पर लोग उन पर बैठ जाते थे,पर जैसे हीं महिलाएं आतीं ,लोग आरक्षित सीट छोड़ देते . कंडक्टर भी तत्पर होता ,महिला सीट खाली करवाने के लिए . इसलिए लोग महिला सीट पर बैठने से गुरेज करते .सीट न मिलने की स्थिति में लोग बड़े बेमन से आरक्षित सीट पर बैठते . पराया धन उनके किस काम का  ? कई बार ऐसा होता कि आप जैसे हीं बैठे कि कोई न कोई महिला अपना अधिकार मांगनेे आपके सामने आकर खड़ी हो जाती .
काका हाथरसी ने इस व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया . उनका कहना था कि बर्थ कंट्रोल (जन्म नियंत्रण ) के लिए जब नेता हमें प्रेरित कर रहे हैं तो हमने बर्थ (सीट )कंट्रोल कर लिया तो क्या बुरा किया ? इसी के विरोध स्वरुप वे ट्रेन में महिला आरक्षित सीट पर बैठ गये . टीटी के कहने पर भी वे नहीं हटे ,डटे रहे . टीटी को कविता सुना दी . यह कविता उन दिनों साप्ताहिक धर्मयुग में छपी थी .पूरी कविता ठीक तरह से  मुझे याद नहीं . आधी अधूरी जो याद है ,वह लिख रहा हूं .
नेता लोग चिल्ला रहे हैं ,पीट पीट कर ढोल.
करो बर्थ कंट्रोल , भइया ! करो बर्थ कंट्रोल .
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कह काका कविराय ,सुनो हे टीटी !
नहीं हटूंगा ,डटा रहूंगा ,
इसी बर्थ पर मर मिटूंगा .

इस क्षेत्र में समानता का अधिकार काम नहीं करता . लोगों के मन पर महिलाओं का शारीरिक रुप से कमजोर होना हॉवी रहता है . व्यंग्य ही सही ,पर काका हाथरसी ने यह मुद्दा उठाकर महिला सीट के आरक्षण पर अपना विरोध तो दर्ज करा हीं दिया है . ऐसे हीं एक बार महिला सीट पर मेरे एक fb मित्र बैठ गये थे . वे दक्षिण के किसी शहर में विजनेस टूर पर थे .भाषा न समझ पाने के कारण वे महिला आरक्षित सीट पर बैठ गये .काफी देर बाद एक महिला उनके सीट के सामने आ खड़ी हुई . वह अपनी भाषा में अपनी सीट छोड़ने की मांग करने लगी . भाषा न समझ पाने के कारण वे उस सीट पर डटे रहे .स्थानीय लोग अपनी भाषा में उनका मजाक बनाने लगे . वह महिला भी खरी खोटी सुनाती रही .भाषा की समझ आड़े आ रही थी . वे सुनते रहे . तभी किसी ने अंग्रेजी में कहा कि यह महिला सीट है . उनका तब तक स्टॉपेज आ गया था . कंडक्टर के बताने पर वे उतर पड़े .
महिलाओं के लिए अब प्लेन में भी छ: सीटें आरक्षित होने लगी हैं .राजनीति भी उनके लिए अछूती नहीं रह गई है . महिलाओं के लिए 33% आरक्षण हाल के दिनों में तो फिलहाल खटाई में पड़ा हुआ है ; पर देर सबेर यह लागू हो जायेगा . ग्राम पंचायतों में यह पहले से हीं लागू है . ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी में मुख्यमंत्री का यह पद महिला आरक्षण को भेंट चढ़ चुका है . जय ललिता के बाद इस पद की दावेदारी उनकी परम मित्र शशिकला को मिल चुकी है . वे वर्तमान पार्टी प्रमुख बन गईं हैं .
शशिकला का पार्टी प्रमुख बनने से राजनीतिक विश्लेषकों कोई आश्चर्य नहीं हुआ है .ओ पनीर सेल्वम तीन बार स्टैंड बाई मुख्यमंत्री बने हैं . अम्मा चिन्नमा (जय ललिता -शशिकला ) की जोड़ी उन्हें मुख्य मंत्री बनने नहीं देगी . यह पद अघोषित रुप से हीं सही ऑल इंडिया द्रविण मुनेत्र कड़गम पार्टी में महिलाओं के लिए आरक्षित हो रखा है . गल्ती ओ पनीर सेल्वम की है ,जो बार बार स्टेपनी मुख्यमंत्री बनते रहते हैं . आखिर वे महिला आरक्षित सीट पर बैठते हीं क्यों हैं ?
लेखक - Er S.D. Ojha

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