Sunday, 28 March 2021

बेगूसराय के चीफ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट के दरवाजे पर वकील की हत्या: प्रेम कुमार

बेगूसराय के चीफ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट के दरवाजे पर वकील की हत्या.
                        
1987 में बेगूसराय जेलकाँड हुआ जिसमें कम्युनिस्ट खेमे की तरफ से जेल में घुसकर काँग्रेसी खेमे के शूटर किशोर पहलवान की हत्या कर दी गई थी जिससे रंगदारी के मामले में काँग्रेस पर निर्णायक चोट पड़ी.
इसके बाद से ही लगातार कम्युनिस्ट खेमे पर तगड़ी चोट किए जाने की चर्चाओं का बाजार गर्म था.
लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में कम्युनिस्ट पार्टी के राजद से गठबंधन ने उन्हें लगातार मजबूत ही नहीं बनाया बल्कि उनके खेमे के बाहुबलियों को खरामाखरामा सुरक्षित माहौल भी कमोबेश मिला.
ऐसे माहौल में भी दांव बैठाने की जुगत में लोग लगे रहे.
ऐसे में ही बेगूसराय की इस खूनी राजनीति में एक जबरदस्त paradigm shift आया और राजनीतिक दलों के समर्थक समाज के कुछ संभ्रांत पेशों से जुड़े लोगों की तरफ रायफल की नाल घूमी.
तत्कालीन कम्युनिस्ट खेमे के बाहुबलियों के लिए कानूनी सहायता मुहैया कराने में कुछ वकीलों का खूब खुलकर नाम था.सीताराम महराज घोषित रुप से कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े वकील थे और तब के बेगूसराय में क्रिमिनल केसेज में उनका बड़ा नाम था वो खुलकर पार्टी के कार्यक्रमों में भी भाग लेते.
ऐसे ही एक और शख्स थे वकील चँद्रभानु शर्मा जो लंबी कद काठी के और बेगूसराय कचहरी परिसर के खूब मुखर लोकप्रिय वकीलों में से एक थे. शर्मा जी का कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ झुकाव कोई छिपी हुई बात नहीं थी और तुर्रा ये कि जेलकाँड के मुख्य नामजद अभियुक्तों में से एक मनोज सिंह के वो रिश्ते में मौसा भी थे.
सो बदले की राडार पर चँद्रभानु शर्मा अनायास ही नहीं आ गए थे.
90-91के आसपास एक दिन सामान्य दिनों की तरह बेगूसराय कचहरी का कारोबार शुरु हुआ.
बारह एक बजे के बीच वकीलों, पेशकारों,अभियुक्तों की भीड़भरी गहमागहमी के बीच शर्मा जी वकालतखाने से बाहर चाय पान के लिए दो तीन लोगों के साथ निकले.
कचहरी परिसर से बाहर निकल कर मस्जिद रोड स्थित शमसुल की पान दुकान तक पँहुचते पँहुचते उन्होंने अनहोनी का कुछ कुछ अंदाजा लगा लिया था क्योंकि चार पाँच संदेहास्पद चेहरे भीड़ भाड़ में भी उनसे एक सुरक्षित दूरी से उनपर नजर बनाए लगातार साथ चल रहे थे.
पान दुकान पर जब वो लोगों के साथ खड़े हुए तो भी उनकी निगाहें चौकन्नी ही थीं तभी उन्होंने एक शख्स को पिस्तौल निकालते हुए शायद देखा और आननफानन में बिल्कुल बीस पच्चीस मीटर की दूरी पर स्थित सी जे एम (chief judicial magistrate) के बँगले की तरफ भागे उनके दिमाग में ये रहा होगा कि शायद इतने बड़े साहब के बँगले पर तैनात सुरक्षा गार्ड उन्हें बचा लें लेकिन वो भूल गए कि ये बेगूसराय था.
चार पांच लोग पिस्तौल लिए उनके पीछे दौड़े.
शर्मा जी बँगले के कैंपस के अंदर दौड़ते हुए घुसे और कहते हैं बँगले के बंद दरवाजे की सिकड़ी जोर जोर से बजाने लगे चूंकि उन्होंने वकीलों वाला लिबास पहना था सो मेनगेट पर तैनात सुरक्षा गार्ड भी अचंभित हो उन्हें देखते भर रह गए. इसी बीच चार पांच पिस्तौल धारी युवकों ने गार्डों की तरफ पिस्तौल लहराकर उन्हें निष्क्रिय कर दिया और उनमें से दो ने बढ़कर बँगले के दरवाजे को पीट रहे शर्मा जी पर ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाईं शर्मा जी को लगभग सात आठ गोलियां मारी गई थी उन्होंने सीजेएम के दरवाजे पर ही दम तोड़ दिया.
कहते हैं इन दो लोगों में एक किशोर पहलवान का छोटा भाई भी था लेकिन वह डर के मारे काँप रहा था जबकि सारी गोलियाँ अर्जुनसिंह नामक शख्स ने ही मारी थी. 
शर्मा जी की हत्या के बाद सभी आराम से पिस्तौल लहराते हुए मेन मार्केट होते हुए चट्टी जानेवाली रोड से गायब हो गए.
ये बेगूसराय में पहली ऐसी हत्या थी जिसमें राजनीतिक दल के व्हाइट कॉलर समर्थक को दिन दहाड़े मार दिया गया था और स्थान के लिहाज से ये तबतक का सबसे डेयरडेविल हत्याकांड था यानि बेगूसराय के चीफ ज्युडिशियल मैजिस्ट्रेट के बँगले का दरवाजा.
इस हत्याकांड के बाद डॉक्टर, वकील जैसे राजनीतिक दलों के समर्थकों में डर बैठना शुरु हो गया जो आगे चल कर डॉक्टर पी गुप्ता, डॉक्टर एम एन राय जैसे प्रख्यात डॉक्टरों के बेगूसराय से पलायन में फलीभूत हुआ इनकी कहानियां फिर कभी.
इसमें आप आज प्रचलित अर्बन नक्सल वाले फंडे का बीजरुप भी देख सकते हैं.
हलांकि न तब न अब, खुलकर किसी राजनीतिक दल ने बेगूसराय में पनपे इस नए ट्रेंड को स्वीकारा लेकिन थोड़ा कुरेदने पर सच के रुप में यही झाँकता रहा है.

(शर्मा जी मेरे ही गांव के थे और रिश्ते में चाचा होते थे इसलिए इस हत्याकांड की ढ़ेरों जानकारियाँ तो परिवार और गांव गोतिया से ही मिलती रहीं थी।)

नोट- हमने ऐसा ही बेगूसराय देखा था और इसी में बड़े हुए और ये कहने में रत्तीभर भी शर्म की बात नहीं है कि बेगूसराय की पहचान ऐसी ही धरती के रुप में रही है लिहाजन हम भी इसे गर्व भाव में ही लेते हैं इससे आपकी नैतिकता आहत होती हो तो ये आपकी समस्या है जिसका मेरे पास कोई इलाज नहीं.

प्रेम कुमार

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