भीड़ पगला गई थी
उसने बन्दूक को अपना
नेता
और बूटों को अपना
ताज घोषित कर दिया था
लोग नींद में
क्रांति क्रांति बडबडा रहे थे
मांओं ने अपनी रौंदी
हुई छातियों को अफवाहों के हवाले कर दिया था
अफीम की खेतों में
लेटे हुए किसान
तोप से सूरज के
निकलने का इन्तजार कर रहे थे
सामंतों और सेठों का
दलाल नेता का वेश बनाकर
कह रहा था
अबकी सुबह होगी शाम
के तुरंत बाद |
अरमान
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