Sunday, 27 November 2016

अरमान के शेर

1 और ऊँची उठा बुतें दीवारें मजलूमों की चीखें
मैं कलम हूँ लिख के जाऊंगा तू कुछ भी नहीं था
©अरमान

2.अगर नींद आ जाये तो सो भी लिया करो
रात भर जागने से मुहब्बत लौटा नहीं करती
अरमान

3.अता कर मेरे इश्क को वो जुनूँ मौला
वो हाथ उठाये मेरी कब्र की मिट्टी उड़े
©अरमान

4.वो रात भर बस जागती है कि  मुझे देख सके चैन से
और मैं परेशां हूँ उसकी बेचैनी देख कर

Sunday, 6 November 2016

कविता

कार्तिक पूर्णिमा की अगली सांझ
फ़ैल रही है मेरे गिर्द
ये तुम्हारा ही तो रंग है
मेरी सांवली सी प्रेमिका
हल्की सी धुंध की
पागल छुअन
मेरे नथुनों में
रातरानी की खुशबू
जैसे तुम हो यहीं कहीं
और तुम्हारे माथे पे चिपकी टिकुली सा चाँद
हमारे प्यार के हश्र सा
कटेगा और चौदह दिन
बुझ जाएगा
पहले मिलन के बल्ब सा
****--अरमान आनंद

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...