Sunday, 5 April 2015

बनारस वाया बजरडीहा

बजरडीहा 

नल का पानी
जहाँ उतरकर सड़क पर जमे
और शर्म से काला पड़ जाये
जहाँ मर्द आंत के रेशों को बुन कर
संसार की सबसे सुन्दर स्त्री के लिए साड़ियाँ तैयार करते हों
औरतें
हया को जरुरत मानकर
चिथड़ों में लिपटी हुई
धागों के थान लपेट रही हों
दुनियां के ट्रेडमिल पर हांफने के साथ जहाँ
रात की रोटी
अगली सुबह के लिए पानी में गर्क कर दी जाती हो
जहाँ करघों के खटर-पटर में दुधमुहें की आवाज
अनंत कालों के लिए दबा दी जाती हों
जहाँ करघा ही मां है बाप है भाई है
स्कूल है
नवाजुद्दीन की किसी फिल्म का डायलोग है
करघे का चलना सांसों का चलना है
करघे का बंद होना
किसी कुपोषित बच्चे का अनाथ होना है
अच्छे दिन जहाँ दिन में भी झाँकने नहीं आते
अच्छे दिन के लिबास वहीँ से जाते हैं
ये वही बजरडीहा है
ऐ मेरे मदमस्त बनारस
बता न
बजरडीहा में तेरा पता क्या है? 

:अरमान आनंद 

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