Friday, 19 June 2015

दंगा (1) अरमान आनन्द

मेरा कुसूर था
कि मेरे चेहरे पर दाढ़ियाँ थीं
मूंछे नहीं थी

मेरा कुसूर था कि
मेरे माथे पर लाल रोड़ी का तिलक लगा था

हमने अपनी कुसुरवारी की सजा कुछ मासूम बच्चों को दी
हमने एक दूसरे की औरतों को नंगा किया

हम अपना वीर्य
अपने अपने शक्तिशाली ईश्वर को बचाने में खर्च करते रहे।

हमने कुछ पागल बनाए हैं
जिन्होंने तुम्हारी सरकार बनाई है।

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