फैसला
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बतौर कवि
और
दुनियां के अदने से चिंतक की हैसियत से
स्वयं को न्यायाधीश मानकर
सबसे पहले ये तय कर दिया मैंने
कि
सरकार ही आरोपी है
उसे फांसी दे दो
लिखा और
तोड़ दी कलम
कि इस आरोपी को
मौत तक
फांसी पर लटकाए रखा जाय
अब सरकार चाहे तो
मुझे
देशद्रोही करार दे
चाहे तो
नक्सली
चाहे तो
वह मुझे
पागल कहे
चाहे तो
मुझे उकसाये
आत्महत्या के लिए
जैसा किसानों को उकसाती है
अभावों के बीच रखकर
अपने साथियों का नरमुंड ले कर दिल्ली में भटकने के बदले
किसानों
उठो
कपास उगाओ
बनाओ फांसी की सबसे मोटी
और सबसे बड़ी फांद वाली रस्सी
जिसमे अंट सके
अंधेर नगरी वाले राजा का गला
तुम्हारा कवि
तुम्हारी रक्षा के लिए
आज जल्लाद की भी भूमिका अदा करेगा
©अरमान आनंद
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