Thursday, 21 September 2017

अरमान आनंद की मशहूर कविता तानाशाह

तानाशाह 
.........................
लो रे लेखक 
उठाओ अपना पोथा-पतरा 
चढ़ जाओ उधर जिधर फांसी है 
तानाशाह का फरमान है 
लोकतंत्र की विचारधारा बासी है
तानाशाह
आदतन अमर होना चाहता है 
और ये तब तक चाहता है जब तक वह मर नही जाता 
तानाशाह ने जब मारी अपने दिमाग में गोली 
या कि जब
विश्व के सबसे बड़े तानाशाह ने छोटे तानाशाह का कर दिया क़त्ल 
क्या तुमने देखा 
तानाशाह के सर से निकलने वाला खून 
बागी के खून से कितना मिलता जुलता है 
कभी मिले हो तानाशाह से 
एक नियम पसंद तानाशाह 
निजी तौर पर बेहद अराजक होता है
वह कुछ भी हो सकता है 
एक बड़ा कलाकार 
कलाप्रेमी 
अभिनेता
मसखरा 
नया नया प्रेमी
धोखा खाया हुआ आशिक 
कवि 
अय्याश 
जुबान का पाबंद
हर जुर्म की सज़ा फांसी
और उसके फैसले नहीं बदलते
सिंहासन बदलता है वक्त बदलता है 
भूखंड बदलता है 
तानाशाह के तौर तरीके नहीं बदलते 

एक तानाशाह की सांसों से उठता है सिगार का धुंआ 
जैसे उठती है जहरीली गैस 
बद्जुबानों से भरे छोटे से कमरे में 
करती है उनके स्वप्नों में अनधिकृत प्रवेश 
वहां पलती स्त्री शिशु का गला घोंट देने के लिए 
जिसका नाम 
पिछले दिनों वो आजादी बता रहे थे 

तानाशाह को डर हथियारों से नहीं लगता 
तानाशाह को सबसे ज्यादा डर 
भीड़ में खड़े उस आखिरी आदमी के विचारों से लगता है 
जिसके मुंह में इन्कलाब बंद है 
वही आखिरी आदमी उसका पहला निशाना है 


लो 
मेरी खोपड़ी से निकाल लो मेरा दिमाग 
शहर की जिस भी गली से गुजरता दिखे तानाशाह का टैंक
उस टैंक के नीचे डाल देना
मेरा यकीन है तानाशाह के चीथड़े उड़ जायेंगे

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