Monday, 16 July 2018

चन्द्रकला त्रिपाठी की कविता

चिड़िया
शाख पर उतरती है नृत्य में घूमती हुई सी
समेटती पंख
और उड़ान
उड़ती है मगर चलना भी नहीं भूलती
मुडेर पर
जमीन पर कोना कोना थहाती परखती चंचल
सामने खुला अजगर का विकराल जबड़ा हो तो भी
वह जिंदा रहने को किसी पैतरे में नहीं आजमाती

उड़ती है पंख सलामत रहने तक
थिरकती है
और ज्यादा कोमल हो जाते हैं पेड़
और ज्यादा मधुर हो जाती हैं ध्वनियां
तब और जब
चहक कर लहरा उठती है किसी अंत में डूबते समय को न जानती हुई वह
एक नहीं अनेक होकर जीने के रंग में प्रेम भी
कलह भी
छेड़ भी
छीन झपट भी

ढेर सारी हैं ऐसी अमर नश्वरताएं
एक चिड़िया और अनेक चिड़िया की
मौत
कब की हार चुकी ऐसे
भरपूर जीने से

चंद्रकला त्रिपाठी

Saturday, 14 July 2018

व्योमेश शुक्ल की कविता- पोंSSSSSSSSSSSS

व्योमेश शुक्ल की कविता- पोंSSSSSSSSSSSS
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यार, ख़ूब मन लगाकर शादी कीजिए
फिर ख़ूब मन लगाकर बनारस आ जाइए
सुनिए उस कारख़ाने के सायरन की आवाज़ जो सन 2000 में ही बंद हो गया
रोज़ाना 8 बजे, 1 बजे, 2 बजे, 5 बजे
धिन धिन धा धमक धमक मेघ बजे

आइए तो मिलकर पता लगाया जाय कि वह आवाज़ आती कहाँ से है यह भी संभव है कि वह आवाज़ सिर्फ मुझे ही सुनाई देती हो एकाध बार मैंने रमेश से पूछा भी कि कुछ सुनाई दे रहा है आपको तो वह ऐसे मुस्कराए जैसे मेरा मन रखने के लिए कह रहे हों की हाँ

दिक्क़त है कि लोग सायरन की आवाज़ सुनना नहीं चाहते नए लोग तो शायद सायरन की आवाज़ पहचानते भी न हों सायरन बजता है और वे उसकी आवाज़ को हॉर्न, शोर, ध्वनि प्रदूषण और न जाने क्या-क्या समझते रहते हैं. नाक, कान, गले के डॉक्टर ने मुझसे कहा कि तुम्हारे कान का पर्दा पीछे चिपक गया है और ढंग से लहरा नहीं पा रहा है – इसकी वजह से तुम्हें बहुत सी आवाज़ें सुनाई नहीं देंगी तो मैंने उनसे कहा कि मुझे तो सायरन की आवाज़ बिलकुल साफ़ सुनाई देती है – रोज़ाना 8 बजे 1 बजे 2 बजे 5 बजे, तो वह ऐसे मुस्कराए जैसे मेरा मन रखने के लिए कह रहे हों की हाँ

यार, ख़ूब मन लगाकर शादी कीजिए फिर ख़ूब मन लगाकर बनारस आ जाइए आपमें हीमोग्लोबिन कम है और मुझे सायरन की आवाज़ सुनाई देती रहती है आइए तो मिलकर पता लगाया जाय कि वह आवाज़ आती कहाँ से है

कारख़ाना बंद है तो सायरन बजता क्यों है जहाँ कारख़ाना था वहाँ अब एक होटलनुमा पब्लिक स्कूल है स्कूल में प्रतिदिन समय-समय पर घंटे बजते हैं लेकिन सायरन की आवाज़ के साथ नहीं बजते. सायरन की आवाज़ के बारे में पूछने के लिए मैंने स्कूल की डांस टीचर को फ़ोन किया तो वह कहने लगी कि पहले मेरा उधार चुकाओ फिर माफ़ी आदि माँगने पर उसने कहा कि उसकी कक्षा में नृत्य चाहे जिस ताल में हो रहा हो, ऐन सायरन बजने के मौक़े पर सम आता ही है. परन, तिहाई, चक्करदार – सब – सायरन के बजने की शुरूआत के बिंदु पर ही धड़ाम से पूरे हो जाते हैं.
मसलन तिग दा दिग दिग थेई, तिग दा दिग दिग थेई, तिग दा दिग दिग पोंSSSSSSSSS
     (यहाँ - तिग दा दिग दिग - कथक के बोल
      पोंSSSSSSSSS – सायरन की आवाज़)

सायरन की आवाज़ न हुई, ब्लैकहोल हो गया. बहुत सी चीज़ों का अंत हो जाता है उस आवाज़ की शुरूआत में – पिता, पंचवर्षीय योजना, पब्लिक सेक्टर, समूह, प्रोविडेंट फंड, ट्रेड यूनियन और हड़ताल – सब – सायरन के बजने की शुरूआत के बिंदु पर ही धड़ाम से पूरे हो जाते हैं

कभी-कभी धुएँ और राख़ और पानी और बालू में से उठती है आवाज़. वह आदमी सुनाई दे जाता है जो इस दुनिया में है ही नहीं कभी-कभी मृत पूर्वज बोलते हैं हमारे मुँह से. बहुत सी आवाज़ें आती रहती हैं जिनका ठिकाना हमें नहीं पता. वैसे ही, सायरन बजता है रोज़ाना आठ बजे एक बजे दो बजे पाँच बजे

जैसे मेरा, वैसे ही सायरन की आवाज़ का, आदि, मध्य और अंत बड़ा अभागा है. बीच में हमदोनों अच्छे हैं और आपसब की कुशलता की प्रार्थना करते हैं. बीच में, लेकिन यही दिक्कत है कि पता नहीं लगता कि हम कहाँ हैं और ज़माना कहाँ है? नींद में कि जाग में, पानी में कि आग में, खड़े-खड़े कि भाग में.

आइए यार तो ढूँढा जाय कि सायरन की आवाज़ कहाँ से आती है और हमलोग कहाँ हैं?  
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Saturday, 7 July 2018

एक चाकू की मौत - Er S D Ojha

एक चाकू की मौत ।

रामपुरिया कहते हीं जेहन में चाकू उभरता है । पता नहीं कैसे ताऊ ने रामपुरिया अपना तखल्लुस रखा है ? गुण्डे बादमाश अक्सर कहते हुए सुने जाते थे - रामपुरिया घुसेड़ दूंगा । 60-80 के दशक में फिल्मी दुनियां में रामपुरिया छायी रही थी । राजकुमार का एक प्रसिद्ध डाॅयलाॅग उन्हीं दिनों काफी लोक प्रिय हुआ था । राजकुमार अपने हाथ में रामपुरिया चाकू लेकर कहते हैं-  "यह बच्चों के खेलने की चीज नहीं है । हाथ कट जाए तो खून निकल आता है ।" अमिताभ बच्चन ने भी बहुत रामपुरिया हवा में लहराए हैं । जया भादुड़ी ने भी "चक्कू छूरिया तेज करा लो " गाते हुए रामपुरिया को मशीन पर तेज किया है । आज के डाॅन दाऊद भी अपनी प्रेमिका की सगाई हो जाने पर रामपुरिया लेकर उसके घर पहुंच गये थे । 

हमारे दौर के बिगड़ैल छात्र रामपुरिया की मदद से नकल करते थे । नकल की सामग्री खुले आम मेज पर रखी होती थी । रामपुरिया बगल में रुमाल से ढकी पड़ी होती थी । जितना बड़ा चाकू , उतना बड़ा रुमाल । रुमाल का आकार चाकू के आकार के समानुपाती होता था । यदि कक्ष निरीक्षक सख्त जान हुए तो उन्हें रुमाल हटाकर रामपुरिया का दर्शन करा दिया जाता था । उसके बाद कक्ष निरीक्षक महोदय धृतराष्ट्र हो जाते थे । वे अंधे हीं नहीं गूंगे बहरे भी हो जाते थे । छात्र रामपुरिया के बल पर अपनी धाक जमा लेते थे । वे खुलकर नकल करते थे । कहते हैं कि नकल करने के लिए भी अकल की जरुरत होती है । वह अकल उनके पास नहीं थी । इसलिए वे लिख आते थे - जैसा का पृष्ठ संख्या 57 के चित्र में दर्शाया गया है या जैसा कि आप पिछले अध्याय में पढ़ चुके हैं । 

अठारहवीं सदी तक पूरे भारत में आग उगलने हथियार रायफल , मशीन गन और बंदूकों का आविष्कार हो गया था , लेकिन ये हथियार क्लोज बैटल  ( नजदीकी लड़ाई ) में कामयाब नहीं थे । इसलिए रामपुर के नवाब ने चाकू को नजदीकी लड़ाई में शामिल करने की सोची । कारीगरों ने मोर्चा सम्भाल लिया । रामपुर शहर में चाकूओं की धड़ाधड़ दुकानें खुल गईं । इन दूकानों से रामपुर शहर में एक बाजार हीं बन गया , जिसे चाकू बाजार कहा जाने लगा ।  रामपुरिया चाकू को नवाबी सेना में शामिल कर लिया गया । देश आजाद होने पर भी ये चाकू बनते रहे । इनकी मांग कलकत्ता,  मुम्बई,  पटना , नैनीताल और शिमला तक होती थी ।

1990 के बाद से सरकार ने 4" से ज्यादा बड़े चाकुओं पर  बैन लगा दिया था । इसलिए रामपुरिया चाकू बहुत कम बनने लगे । इस चाकू को वही बना सकता था , जिसके पास लाइसेंस हो । वही खरीद भी सकता था , जिसके पास लाइसेंस हो । ऐसा बढ़ते अपराधों पर रोक लगाने के नियत से किया गया था । रामपुरिया का कारोबार चौपट हो गया । चाकू बाजार बंद हो गया । चाकू बाजार का नाम अब टीपु सुल्तान बाजार रख दिया गया । जब चाकू हीं नहीं बनते तो चाकू बाजार का औचित्य हीं क्या रह जाता है ? आए दिन हुई पुलिस की छापेमारी ने भी कारीगरों को चाकू उद्योग से विमुख कर दिया । अब कारीगरों ने रिक्शा  चलाना या मजदूरी करना शुरु कर दिया है ।

यामीन अंसारी एक अकेले कारीगर रह गये हैं,  जिनके पास रामपुरिया चाकू बनाने का लाइसेंस है । यामीन अंसारी के पास जब कोई लाइसेंस धारक आता है तो वे रामपुरिया बना देते हैं,  अन्यथा सब्जी काटने वाला चाकू बनाकर अपनी जीविका चलाते हैं  । वैसे छुपे तौर पर यह उद्योग अब भी फल फूल रहा है । अभी फरवरी 2018 में जी आर पी ने 750 अवैध रामपुरिया अमृतसर में पकड़ा था । लगता है कि अलीगढ़ के ताले , मुरादाबाद के पीतल , फिरोजाबाद की चूड़ियां और मेरठ की कैंची की तर्ज पर रामपुर भी रामपुरिया चाकुओं के लिए हमेशा हमेशा के लिए प्रसिद्ध रहेगा ।

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