Tuesday, 6 August 2019

सिद्धार्थ की कविता : रुके हुए फैसले

रुके  हुये फैसले

रुके  हुये फैसले लेने पड़ते है
जब दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता
सुरंग के अंधेरे में कोई रोशनी जब दिखती है
मन खिलता है
पर डर भी लगता है
आने वाली ट्रेन से
जिसका सायरन अब तक सुनाई नहीं दे रहा

रुके हुये फैसले लेने पड़ते है
जब मारे गये लोगों की आत्मा
देवदार की संख्या पार कर जाती है
चिनार जब रक्तिम हो जाते है
और लाल बर्फ़  जब ठंडी पड़ जाती है
मर चुकी देह सी
तब रुके हुये फैसले लेने ही पड़ते है

रुके हुये फैसले लेने भी चाहिए
जब क्रांति की खाल में छिपा आदमी
हिंसक बाघ बन ताक में है कुछ और हत्याओ के
आखिर किसी झील को लाल सागर बनते देखना हराम है

रुके हुये फैसले लेने ही चाहिए
लोगों द्वारा, लोगों के लिये
जिसमें शामिल हो वो लोग भी
जो आज नहीं हो पाये है

पर रुके हुये फैसले लेने के बाद
कल्पना करनी चाहिये
किसी पांच साल के छोटे यावर की
जिसे पसंद है फंतासी कहानिया उस सड़क की
जिस पर वह दौड़ सकता है निधड़क
बगल वाले अंकल की बाहों से झाकती बन्दूको के भय के बिना
हम कल्पना करनी चाहिये
कि राजू को सुनाने के लिये कहानी
सूबेदार गाव जिन्दा वापस लौट आया है

हमें राजू और यावर की दोस्ती की कल्पना करनी ही चाहिये
जमीन और जोरू की नंगी विभत्स कल्पनाये छोड़कर

और फिर एक आखिरी फैसला लेना चाहिये
इतिहास- भूलने का
जादुई भविष्य के लिये

सिद्धार्थ

विथ लव to प्राइम मिनीस्टर मोदी एंड पीपुल ऑफ़ कश्मीर

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