क़िस्सा चयन समिति
किसी विश्वविद्यालय का इंटरव्यू हो रहा था। अमुक आवेदक से विशेषज्ञ ने सवाल पूछा तो आवेदक ने कोई जवाब नहीं दिया। साक्षात्कार समाप्त हुआ तो आवेदकों पर बात होने लगी। चयन समिति के अध्यक्ष ने कहा कि अमुक आवेदक का करिए। इस पर विशेषज्ञों ने कहा कि अमुक आवेदक ने किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया; कुछ भी नहीं बोला । इस पर अध्यक्ष ने कहा कि अमुक आवेदक लिखता बहुत अच्छा है। अध्यक्ष महोदय के इस तर्क पर अमुक की नियुक्ति हो गयी।
कुछ दिनों के बाद अमुक जी के प्रोमोशन काा इंटरव्यू था। पिछली चयन समिति के एक विशेषज्ञ फिर से चयन समिति में विशेषज्ञ के रूप में आ गये। अमुक जी साक्षात्कार के लिए आये और पूछे गये सवालों पर मौनव्रत की पिछली व्यवस्था बनायी रखी। विशेषज्ञ ने अमुक जी के लेखन के बारे में सवाल किया तो उन्होंने काँख-कूँख, खाँस-खखारकर शांति व्यवस्था बहाल रखी। समिति के अध्यक्ष ने अमुक जी के प्रोमोशन हेतु प्रस्ताव रखा। इस पर दोबारा पधारे विशेषज्ञ ने कहा कि आपने पिछली बार कहा था कि ये बोलते नहीं अपितु लिखते अच्छा हैं; लेकिन इन्होंने ने तो कुछ लिखा भी नहीं है। इस पर अध्यक्षजी ने कहा कि जी! ये सोचते बहुत अच्छा हैं।
इस प्रकार अच्छा सोचने के कारण अमुकजी प्रोमोशन को प्राप्त कर गये।
आप भी अच्छा सोचिए ।
No comments:
Post a Comment