Friday, 24 April 2020

कविता - प्रेमिकाओं को ब्याह नहीं करना चाहिए: आकांक्षा अनन्या

प्रेमिकाओं को ब्याह नहीं करना चाहिए

स्त्री ने चाहा हमेशा प्रेमिका बने रहना
वो ब्याह के बाद भी बनीं रहना चाहती थीं प्रेमिका
और खोजती रहतीं थीं पति में प्रेमियों वाला चेहरा
चाहती रहीं कि निपट के हर काम से
उन्हें मिल जाये घर का एक कोना
जहाँ बैठ कर बे बतियाते रहें थोड़ा ही छुप कर सबसे

वो जब माँ बनी
तब भी लड़ैती रहना चाहतीं थीं अपने पति की
सुला कर बच्चे को ले लेती थी करवट उसकी ओर
और रख कर उसकी बाँह में अपना सिर सो जाना चाहती थीं
वो चाहती रहीं हमेशा कि
काम से आते जाते उसका पति
उसके बच्चे के साथ साथ उसके सिर पर भी हाथ फेरता चले
वे चाहती रहीं अपने माथे पर एक चुप्पा चुम्बन बचाकर नज़र से सबकी

स्त्री बंधीं है ऐसे कई रिश्तों से 
निभा रही है ऐसे कई रिश्ते
फिर भी बचा लेना चाहती है समय प्रेम के लिए

इसी भनक से
वे रोक दी गईं
वे टोक दी गईं
वे तोड़ दी गईं
उनके अन्दर से खत्म हो गयी प्रेमिका

स्त्री के अन्दर से जब खत्म हो जाता प्रेम
वे खण्डित मूर्ति हो जाती हैं ।

आकाँक्षा अनन्या

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