Wednesday 17 June 2020

अरमान आनंद की कविता मेरे शहर का आसमान

मेरे शहर का आसमान तेरे शहर के आसमान से बिलकुल अलग है
फिर भी मेरी शामों में बसती है
शाम तेरी
डूबते सूरज की लाली ठहरी है
अब भी एक कोने भर आसमान में
जैसे मुस्कुराते मुस्कुराते थक गया हो कोई
एक बात तो साफ़ है
अब काम का बोझ सिर्फ बाजुओं की मांसपेशियों तक नहीं रह गया है
तुम लौटती होगी फुटपाथ से
कई नजरों से होकर 
मैं किसी बीयर की दूकान की पिछली गली में तब्दील हो रहा हूँ
शहर की सारी टैक्सियां हमारे ठिकानों को जानती हैं
और सारे ठिकाने 
सिर्फ महीने की एक तारीख का इंतज़ार करते हैं
इन दो शहरों के दरम्यान
हमारा प्यार
अब तुम्हारे किचन में लगा हुआ एम् सी डी का नल है
जिसमें पानी की जगह हवा निकलती है ....

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