मेरे शहर का आसमान तेरे शहर के आसमान से बिलकुल अलग है
फिर भी मेरी शामों में बसती है
शाम तेरी
डूबते सूरज की लाली ठहरी है
अब भी एक कोने भर आसमान में
जैसे मुस्कुराते मुस्कुराते थक गया हो कोई
एक बात तो साफ़ है
अब काम का बोझ सिर्फ बाजुओं की मांसपेशियों तक नहीं रह गया है
तुम लौटती होगी फुटपाथ से
कई नजरों से होकर
मैं किसी बीयर की दूकान की पिछली गली में तब्दील हो रहा हूँ
शहर की सारी टैक्सियां हमारे ठिकानों को जानती हैं
और सारे ठिकाने
सिर्फ महीने की एक तारीख का इंतज़ार करते हैं
इन दो शहरों के दरम्यान
हमारा प्यार
अब तुम्हारे किचन में लगा हुआ एम् सी डी का नल है
जिसमें पानी की जगह हवा निकलती है ....
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