13 जून 1998 की शाम के आसपास पटना के आईजीएमएस हॉस्पिटल में तीन चार दिन से फर्जी रोगी के रुप में भर्ती श्रीप्रकाश शुक्ल और उसके साथियों ने एके 47 से बेतहाशा गोलीबारी कर लालू जी के सबसे नजदीकियों में एक और तत्कालीन मुजफ्फरपुर से भूमिहारों का वर्चस्व खत्म कर उभरे पिछड़ों के रंगदार बृजबिहारी प्रसाद को ढ़ेर कर दिया जो उस समय लालूजी की सरकार के कद्दावर मंत्री भी थे.
कहते हैं तब अशोक सम्राट की मौत के बाद गोरखपुर से गौहाटी तक रेलवे ठेकों का निरापद राज भोग रहे सूरजभान जी को बृजबिहारी से खतरा महसूस हो रहा था सो उसे रास्ते से हटाना जरुरी था. और गोरखपुर में रेलवे के टेंडर के दौरान वीरेंद्र शाही के खिलाफ एकजुट हुए पवन पाण्डेय के गैंग को हथियार यानी एके 47 उपलब्ध करा कर सूरजभान ने सब का दिल जीत लिया था और सबसे ज्यादा सूरजभान के फैन हो चुके थे उस गैंग के नए नवेले श्रीप्रकाश शुक्ल जिन्होंने सीधे सूरजभान को दादा संबोधित करते हुए अपने आप को उनका छोटा भाई बना लिया था.
वहीं सूरजभान भी लखनऊ में श्रीप्रकाश शुक्ल द्वारा एके 47 से सौ के लगभग गोली मारकर वीरेंद्र शाही की हत्या के बाद भी अपने क्रोध की नेग के तौर पर नाइन एमएम पिस्टल से शाही की आँखों में अलग से पांच सात गोली मारने की शुक्ल की अदा के फैन हो चुके थे.
सो श्रीप्रकाश सूरजभान दादा के कहने पर उनके लिए दुखहर्ता बनते और बृजबिहारी जैसे कांटों को खत्म करते,बदले में एके 47 और जब जरुरत होती मोकामा में सूरजभान के घर पर अभेद्य सुरक्षा में ठिकाने का सुख भोगते.
उसी दौरान कहते हैं सीपीएम के भयंकर लोकप्रिय नेता अजीत सरकार से पप्पू यादव बड़े भयभीत चला करते थे क्योंकि 1989 में पूर्णिया लोकसभा चुनाव में अजीत सरकार दूसरे स्थान पर रहे थे,1991के लोकसभा चुनाव में झंझट की वजह से रिजल्ट होल्ड पर चला गया था जिसमें पप्पू यादव निर्दलीय खड़े थे मजेदार बात यह कि चार साल बाद 1995 में टेक्निकल तौर पर पप्पू को आयोग ने विजयी घोषित कर दिया था लेकिन 95 में ही फिर आए विधानसभा चुनावों के रिजल्ट में पप्पू पूर्णिया और सिंहेश्वर दोनों विधानसभा से हार गए थे फिर 1996 में लोकसभा चुनाव में पप्पू ने भाजपा के उम्मीदवार को हराकर जीत तो हासिल कर ली लेकिन फरवरी 1998 के लोकसभा चुनाव में हार गए और इन सबका सबब बने अजीत सरकार इसलिए अजीत सरकार का मरना पप्पू जी की राजनीतिक जिंदगी के लिए बेहद जरुरी हो गया था.
तत्कालीन बिहार में हथियार और संसाधन के मामले में सूरजभान राजा थे इसलिए पप्पू जी ने उनसे हमेशा बना कर ही रखा था सो 13 तारीख को बृजबिहारी को मारने वाली श्रीप्रकाश शुक्ल,राजन तिवारी आदि की टीम को रवाना कर दिया गया उधर अजीत सरकार की रेकी कर के रखी गई थी सो अगले ही दिन यानी 14 जून 1998 को पूर्णिया के पास अजीत सरकार को 107 गोलियाँ मार कर भरपूर मौत दे दी गई.
यह टिपिकल श्रीप्रकाश स्टाइल था पप्पू बस सुविधा प्रदान कर्ता की भूमिका में ही रहे होंगे क्योंकि ऐसा करना उनके बूते से बाहर की बात थी.बाद में शायद ऐसे ही ग्राउंड पर पप्पू जी को अदालत में भी फायदा मिला.
अजीत सरकार के मर्डर के बाद शुक्ला की टीम उधर ही से निकलते विराटनगर नेपाल चली गई जहां उनका ठिकाना था.
अब मजेदार बात यह जानिए की श्रीप्रकाश शुक्ल उत्तर प्रदेश के संपूर्ण इतिहास में कुछ गिने-चुने दुर्दांत और डेयरिंग क्रिमिनल्स में एक तो थे ही साथ ही जबरदस्त दिलफेंक आशिक भी थे. जबर स्मार्टनेस के स्वामी शुक्ला जी को खूबसूरत लड़की देखते ही प्यार हो जाता था.
सो बृजबिहारी की हत्या के पहले सूरजभान द्वारा करवाए जुगाड़ पर श्रीप्रकाश शुक्ल ने आईजीआईएमएस हॉस्पिटल में जब रेकी करते या मर्डर के लिए लॉजिस्टिक्स सेट करते चार पांच रोज फ़र्जी रोगी के तौर पर गुजारे थे उसमें उन्हें उसी अस्पताल की एक खूबसूरत डॉक्टरनी से एकतरफा प्यार हो गया उन्होंने जब पता कराया तो पता चला वो डॉक्टरनी पप्पू यादव की बहन थीं. फिर भी जो श्रीप्रकाश शुक्ला पदासीन मुख्यमंत्री को हत्या की धमकी दे सकता था वो पप्पू से तो डरता नहीं इसलिए शुक्ला जी ने तय किया कि जब बृजबिहारी हत्याकांड की गर्मी घटेगी तो वो फिर लौट कर उसी अस्पताल में इश्क लड़ाने आएंगे और यकीन मानिए महीना गुजरते ही शुक्ला लौट कर आईजीआईएमएस पटना आए डॉक्टरनी को अप्रोच किया जब उसने अपने भाई पप्पू यादव का धौंस दिखाया तो सीधे साधे शुक्ला जी ने छूटते ही अपनी वुड बी प्रेमिका को जवाब दिया कि पप्पू बीच में आया तो उसपर एके 47 का एक पूरा चैंबर खाली कर देंगे.
अब इतनी गहराई का इश्क कलेजे में दबाए श्रीप्रकाश शुक्ल सूरज दा कि मेहमाननवाजी का आनंद उठाते लगातार पप्पू यादव की बहन डॉक्टर साहिबा को फोन करते थे और उनके परिवार में आतंक का सबब बन गए.
कहते हैं पप्पू जी ने सूरजभान से अपने इस मामले में न्याय की गुहार लगाई सूरजभान तो पहले से ही अपने प्यारे श्रीप्रकाश को लड़की से दूर रहने की सलाह देते ही आए थे सो फिर समझाया शुक्ला रुके तो नहीं पर इश्क की एक्सिलरेटर पर पैर थोड़ी ढ़ीली जरुर की.
इस बीच लखनऊ में दिनदहाड़े भयंकर गोलीबारी के बीच लखनऊ के दिल हजरतगंज में एक दारोगा को ही श्रीप्रकाश शुक्ल ने निपटा दिया जिसके बाद यूपी एसटीएफ ने उन पर भयंकर दवाब बढ़ाया जिसमें श्रीप्रकाश की कॉल डिटेल्स का पीछा शुरु किया गया जिसके क्रम में डिटेल्स खंगालते खंगालते एसटीएफ टीम पटना पँहुची पप्पू जी को खबर हुई तो वो दौड़े एसटीएफ टीम से मिलने होटल पँहुचे अपना दुखड़ा रोया और बदले में अपने घर के नंबर पर श्रीप्रकाश शुक्ल का फोन आने पर उससे बातचीत को ज्यादा देर खींचने की हिदायत पाई ताकि कॉल ट्रेस की जा सके.
बाद में चीजें और तेजी से बदलीं और श्रीप्रकाश शुक्ल पुलिस मुठभेड़ में मारे गए.
पूरे उत्तर प्रदेश के व्यापारियों, नेताओं,पैसे वालों और पुलिस के साथ पप्पू जी के परिवार ने भी चैन की सांस ली.
20-25 बरस के यूपी के लड़कों को जब रंगदारी और डेयरिंग पर उदाहरण देते और तमाम आंडु पांडु लोगों का .... तौलते देखता हूँ तो अंदर से आवाज आती है कि हा हतभागियों तुमने असल कलेजा और डेयरिंग तो देखा ही नहीं जब एक 34-35 बरस का जवान "वर्चस्व" की चाहत में कुर्सी पर बैठे मुख्यमंत्री को निपटा देने की खुलेआम धमकी देने का कलेजा रखता था.
मैं जब भी लखनऊ के चारबाग स्टेशन से लौटता हूँ तो महाराणा प्रताप की मूर्ति वाले चौराहे के पास स्थित दीप होटल और ग़ज़ल बार को देखकर भावुक हो जाता हूँ और आंखों को बंद कर महसूस करने की कोशिश करता हूँ की विधानसभा का सत्र चलने के दौरान ही विधानसभा से मात्र चार पांच सौ मीटर दूर इस होटल में जब दिनदहाड़े श्रीप्रकाश शुक्ल ने एके 47 से गोलियों की दस मिनट तक बरसात की थी तब उस गोलीबारी का संगीत उस गज़ल बार से सिंक कर रहा था या नहीं.
(बहुत चीजें तब की देखी और जी गई है जो याद है बाकी पढ़ने के लिए भी बहुत कुछ माल है सो अपनी अल्पज्ञता का भार मुझसे बहस कर मेरे कंधों पर ना लादें)
प्रेम कुमार