Thursday 31 October 2013

अँधेरे में

डूबता हुआ यह अँधेरा
और गहरा 
और गहरा
क्या जल्दी सबेरा लायेगा?
कहीं इस अँधेरे ने
सूरज को निगल लिया हो
कहीं सूरज अँधेरे में जाकर बस ना गया हो
निकला भी तो कहीं अँधेरे से सांठ-गाँठ कर के न निकले
सुबह के इंतज़ार में जनता अँधेरे की अभ्यस्त हो गयी तो
अँधेरा सवाल है
कई कई सवाल
कई कई आशंकाएं
अँधेरा चुप निः स्तब्ध
चोरों को भी  इंतज़ार रहता है अँधेरे का
मासूम जानवरअँधेरे में सो जाते है
उल्लू अँधेरे में ही देख पाता है
नेताओं को दिन में भीअँधेरा चाहिए
कितना अंधेर है
और इतनाअँधेरा
मैं जाग रहा हूं अँधेरे में
टटोल टटोल कर जगा रहा हूँ  आँखें
हाथ को मशाल ढूंढती है
निराशा को आशा
मृत्यु को जीवन
नीरस को रस
असत्य को सत्य
ये युद्ध का आरंभ है
पराजय को विजय ढूंढती है
अँधेरे में अँधेरे को खत्म करने के लिए  रौशनी ने ढूंढना शुरू कर दिया है।
छोडो सूरज का इंतज़ार
देखो दिया कहाँ है.... ....
अरमान

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