लौटना इतना आसान नहीं था
और आसान नहीं था
उसका भोर में देहरी की ऊंचाई फाँदना
आसान नहीं था
उसका गाँव की आखिरी छोर पर के उस बेरी के पेड़ तक पहुंचना
बहुत मुश्किल से उसकी फुनगी पर उसने अपना दुपट्टा बाँधा
काँटों में अपना समीज फड़वा बैठी
तलवों में आठ कांटे इश्क के धंसवाये
इश्क के टोटकों ने
आसान कर दिए मुहब्बत के रास्ते
अरमान आनंद
No comments:
Post a Comment