Tuesday 24 September 2019

सुशांत कुमार शर्मा की कविता दीक्षा

राधारमण स्वामी मुश्किल में पड़ गए थे
जब कि किसी किशोर वयस लड़की
गुलाबकली ने उठा लिया था
गण्डकी के तट पर रखा हुआ
उनका वल्कल वस्त्र
और प्रतीक्षा करने लगी थी
उनके स्नान के पूर्ण होने का ।
राधारमण स्वामी नग्न स्नान करते थे
यह गुलाबकली ने बहुत बचपन में ही
सुन रखा था और चाहती थी एक बार
स्वामी राधारमण को नंगा देखना ।
इसिलिए जबकि वह जानती थी कि
वह विशेस समय जब
नहाते थे राधारमण स्वामी
कोई नहीं जाता था उस घाट की ओर ।
किशोरवयस गुलाबकली ने
स्वयं को चौदह वसंत रोके रखा
लेकिन जब खुद वसंत हुई
तो नहीं रुक पाई और पहुँच गई
उसी घाट पर उसी समय
क्योंकि विवाह से पूर्व
वह देखना चाहती थी किसी
नंगे पुरुष को
और जानती थी कि राधारमण स्वामी
नंगा नहाते हैं ।
ध्यान आते ही कि कोई तट पर है
स्वामी ने दिखाया अपना रौद्र रूप
और शाप दे देने तक की धमकी दी
पर गुलाबकली ने वस्त्र बाँध दिए
पेड़ की डाली पर
कहा नंगे बाहर आओ ।
राधारमण स्वामी बहुत गिड़गिड़ाए
अंततः बाहर आये
गुलाबकली ने देखा एक पूर्ण पुरुष
और उसी दिन
स्वामी को भी एहसास हुआ
अपने पुरुष होने का
गुलाबकली उनसे दीक्षित होकर
सन्यासिन बन गई
राधारमण स्वामी ने भोग जाना
गुलाबकली ने बस इतना जाना कि
सन्यास अपने नग्न सौंदर्य को
खर्च न करने का नाम है ।

@सुशांत

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