Wednesday, 25 September 2019

अरमान आनंद की लघुकथा एन एच 31

एन एच 31 (लघुकथा)

रमेसर आज जल्दी उठ गया। रोज से लगभग दो घण्टे पहले । आसमान पर नजर डाली। घनघोर बादलों  के कारण समय का ठीक-ठीक अंदाजा नही लगा सका फिर भी उसने सोचा तीन साढ़े तीन तो बज ही रहे होंगे। सोने की कोशिश की लेकिन दुबारा नींद नही आई.. बगल में देखा उसका बीस साल का पोता पवन गहरी नींद में सो रहा था।  रमेसर बेगूसराय में एन एच 31 के ठीक किनारे चाय की दुकान चलाता था। दिन में दुकान पर उसके साथ उसका बेटा भी आ जाता लेकिन रात में वह घर चला जाता। रामेश्वर की बीबी मर चुकी थी। अब वह घर जाकर करता भी क्या? एक कमरे वाले घर मे उसका बेटा बहु और बच्चे रहते हैं । बच्चे क्या एक पोती और एक पोता। पोता बड़ा हुआ तो साथ ही आकर सोने लगा।
    लाख कोशिशों के बाद भी जब रमेसर को दुबारा नींद नही आई तो वह घरेलू चिंताओं में खो गया। पोती पूजा की शादी करनी है सोलह की हो गयी है। कहाँ से आएगा पैसा?बहु सबीतरी और पोती पूजा घर घर बर्तन माँजती हैं और यह चाय की दुकान है तो जीवन जैसे तैसे चल जाता है।बेटा तो बौधा ही है। किसी काम का नही इसलिए चाय की दुकान पर साथ बैठा लिया ।एक ये पोता पवन है उसका दाख़िला तो उसने सरकारी स्कूल में कराया था लेकिन पढ़ाई उसने छोड़ दी । काम काज कुछ करता नही दिन रात कट्टा लेकर घूमता रहता है। सुना है बेगूसराय में बड़े पुलिस अधिकारी आए हैं बेगूसराय को अपराधमुक्त बनाने का सरकारी ऑर्डर जारी हुआ है। कहीं बिसनमा के जैसे इसका भी इनकाउंटर न हो जाये । लाख समझाया मानता ही नही।
       बिसनमा रामेश्वर के पोते पवन का ही दोस्त था ।छह महीने पहले बिसनमा ने लछमी पेट्रोल पंप पर डकैती डाली । पेट्रोल पंप के मालिक की सरकार में पहुंच थी । दबाव डलवा कर बिसनमा का सीधा इनकाउंटर करवा दिया। दीरा जा कर पुलिस उठाई थी उसको। ठीक ही हुआ पुलिस ने मार दिया। पूजा को जब तब ले के अलका सिनेमा में घुसा रहता था। रमेसर ने लम्बी सांस ली।
      रमेसर के बेटे का नाम ढिबरी था। वह बचपन मे वह ढिबरी को ढूंढता रहता और जब मिल जाये तो उसका ढक्कन खोल बाती से किरोसिन तेल चाटता रहता। रमेसर ने भाई ने उसका नाम ढिबरी रख दिया। रमेसर सोचने लगा कि बैल बुद्धि ढिबरी से तो पूजा की शादी नही सम्भल पाएगी । पूजा की शादी उसे अपने जीते जी करनी होगी कहाँ से आएगा पैसा ? पिछला कर्जा बाकी है । कम से कम पचास बाराती तो आएंगे ही फिर दूल्हा उसका बाप माई सबका कपड़ा-लत्ता । सोना न सही चांदी का ही बिछिया अंगूठी भी बनेगा। बहुत खर्चा है । सोचते सोचते रमेसर ने करवट बदली।अचानक  खटर पटर की आवाज आई । रमेसर ने गर्दन उठा कर देखा एक मोटा चूहा छप्पर से बर्तन पर कूदा और अंधेरे में खो गया।
    आज तो रामजीवन सिंह भी आएगा बोला है कम से कम पांच हजार रुपया देना ही होगा। कर्जा तो जान का जपाल ही हो जाता है । पवन को डेंगू न होता तो यह कर्जा नही होता। कमबख्त एक मच्छर सारी जमापूंजी खा गया। चलो यह पैसा देकर आज लगभग बरी हो जाना है । थोड़ा बहुत बचेगा। जल्दी ही चुकता कर देंगे।  दुपहरी में सौ रुपया मोफतिया को भी देना है चाय दुकान लगाने का रंगदारी । पवनमा क्या रंगदार बनता है। मोफतिया है असली रंगदार ।आ जाता है तो सिपाही उठ के खड़ा हो जाता है । यामाहा मोटरसाइकिल उसकी हरदम स्टार्ट ही रहती है । कब जाने दुष्मनमा उस पर हमला बोल दे। तभी रमेसर के कान के पास एक मच्छर भनभनाने लगा। रमेसर ने चपत लगाई। पता नही मच्छर मरा या नही आवाज बन्द हो गयी।
        मच्छर से रमेसर का ध्यान टूटा तो उसने देखा दिन साफ हो रहा है पांच बजने वाले होंगे । रमेसर उठ बैठा।  एन एच इकत्तीस पर लगातार ट्रक गुजर रहे थे। सुबह के शांत शहर के बीच जाती इस सड़क पर ट्रकों का गुजरना सांय सांय की ध्वनि उत्त्पन्न कर रहा था। रमेसर ने सोचा घर जा कर नहा धो कर आ जाऊं। उसने पवन को उठा कर कहा घर जा रहा हूँ लौटकर आता हूँ तब तक झाड़ू दे कर और चूल्हा जला कर रखना। दुकान के पीछे से उसने सायकिल निकाली  और एन एक 31 पर बढ़ चला ।
   रमेसर सायकिल पर धीरे धीरे  पैडल मारता हुआ घर की ओर बढ़ चला । कपड़ों के नाम पर एक मैली धोती और फटा हुआ बनियान पहने  हुए था । उसका शरीर दुबला पतला और थोड़ा झुका हुआ। लग रहा था जैसे संसार की इस आपाधापी में वह जीवन को अभिशाप की तरह जीताऔर गरीबी से लड़ता हुआ जा रहा हो । बारिश के मौसम से सड़कें भी भीगी हुई थीं। अपने मुहल्ले की गली के पास वह ज्यों मुड़ा एक तेज रफ्तार ट्रक आया और रमेसर को कुचलता हुआ निकल गया।

अरमान आनंद

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