Monday, 29 June 2020

अरमान आनंद की कविता कॉमरेड दीमक

अरे यार कॉमरेड दीमक
तुम तो अव्वल दर्जे के क्रान्तिकामी हो
पता चला है जिस कुर्सी पर जमते हो उसे ही खा जाते
और सबसे पहले पैर फिर हत्था
और तो और
कुर्सी जिस मेज की ओट में इतराती है
उसका भी भोज उड़ाते हो
यार खा जाते हो
खाते जाते हो
पहले अपनी कुर्सी
फिर दूसरे की फिर तीसरे की...
हद है मतलब
यार कॉमरेड
कॉमरेड दीमक

जानते हो
हर कॉमरेड को दीमक होना था
मगर पता है
सब
मकड़ी हो गए

कुर्सी के पौव्वों के बीच
पहले अपना घर बनाते हैं
फिर धीरे धीरे
शिकार फँसाते हैं



Monday, 22 June 2020

मनीष राय की कविता बनारस

एक वहम
पाल रखा था मैंने
बनारस के बारे मे

वहम ये 
कि ज़िन्दगी 
जैसे भीड़ भाड़ 
सँकरी गलियो
और गालियों में ही पनपती है।

वहम ये 
कि प्रेम 
बनारस का
रंग नहीं आत्मा है
जिसका अंश
समा जाता है
हर बनारसी में।

वहम ये
कि बनारस 
दिल्ली नहीं है
जहाँ 
बेतुकी सी ज़िन्दगी
दौड़ती रहती है
मीलों, अविरल
सड़कें लंबी 
चौड़ी
विस्तृत 
पर हृदय
छोटे संकुचित
जैसे धड़कना
कोई परियोजना हो।

पर 
ये वहम हुआ कैसे?
मैं तो सतर्क रहता हूँ
सिवाय उस पल के
जब चैतन्य पर
किसी शराब सी
चढ़ जाती थी तुम।

पर नहीं
बनारस भी दिल्ली है
ये भी छीनता है
प्रेम यहाँ भी
रंग है 
जो बदल जाता है
नियमित अंतराल पर

बनारस 
इक्षाओं का
अस्सी है तो
प्रेम का 
मणिकर्णिका भी।

बनारस नगरी है 
शिव की 
और 
शव की भी।

मनीष

Wednesday, 17 June 2020

अरमान आनंद की कविता मेरे शहर का आसमान

मेरे शहर का आसमान तेरे शहर के आसमान से बिलकुल अलग है
फिर भी मेरी शामों में बसती है
शाम तेरी
डूबते सूरज की लाली ठहरी है
अब भी एक कोने भर आसमान में
जैसे मुस्कुराते मुस्कुराते थक गया हो कोई
एक बात तो साफ़ है
अब काम का बोझ सिर्फ बाजुओं की मांसपेशियों तक नहीं रह गया है
तुम लौटती होगी फुटपाथ से
कई नजरों से होकर 
मैं किसी बीयर की दूकान की पिछली गली में तब्दील हो रहा हूँ
शहर की सारी टैक्सियां हमारे ठिकानों को जानती हैं
और सारे ठिकाने 
सिर्फ महीने की एक तारीख का इंतज़ार करते हैं
इन दो शहरों के दरम्यान
हमारा प्यार
अब तुम्हारे किचन में लगा हुआ एम् सी डी का नल है
जिसमें पानी की जगह हवा निकलती है ....

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