Monday 29 June 2020

अरमान आनंद की कविता कॉमरेड दीमक

अरे यार कॉमरेड दीमक
तुम तो अव्वल दर्जे के क्रान्तिकामी हो
पता चला है जिस कुर्सी पर जमते हो उसे ही खा जाते
और सबसे पहले पैर फिर हत्था
और तो और
कुर्सी जिस मेज की ओट में इतराती है
उसका भी भोज उड़ाते हो
यार खा जाते हो
खाते जाते हो
पहले अपनी कुर्सी
फिर दूसरे की फिर तीसरे की...
हद है मतलब
यार कॉमरेड
कॉमरेड दीमक

जानते हो
हर कॉमरेड को दीमक होना था
मगर पता है
सब
मकड़ी हो गए

कुर्सी के पौव्वों के बीच
पहले अपना घर बनाते हैं
फिर धीरे धीरे
शिकार फँसाते हैं



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