इस दफे गांव लौटा हूँ
जहाँ सूनी आँखें
और भटकता हुआ सन्नाटा जहां मेरा इंतज़ार करता है
हवा रुआंसी है
इस मौसम के आंसू मैंने सुबह सुबह दूब पर बिखरे हुए देखे हैं
गांव की मेंड़ पर एक उदास देवता का मन्दिर देखा है
आँगन की नीम पर बैठी एक उदास बूढ़ी कोयल देखी है
जो लड़खड़ाती आवाज में सोहर गाती है
सावन का अल्हड़ झूला कोने में
बैठा है चुपचाप
कुछ हुआ है मेरे गाँव में
कहतें हैं एक उम्र गायब हुई है मेरे गांव से
अब बसन्त में उदास फूल खिला करते हैं
उदास बादल
कभी रोते
कभी सिसकियाँ भरते
कभी दम साध
उस उम्र क़ी तलाश में शहर की ओर उड़ जाते हैं
एक उम्र गायब हुई है मेरे गांव से
जो सुना है
दिल्ली उज्जैन अहमदाबाद कि गलियों में सूरत लटकाये उदास घूमा करती है
पंखे में नायलॉन की रस्सियाँ बाँधने से पहले
माँ और बाउ जी की तस्वीरों पर फूट फूट रोया करती है
ईक उम्र ग़ायब हुई है मेरे गाँव से
जिसकी रपट कोई थानेदार नहीं लिखता
#अरमान
जहाँ सूनी आँखें
और भटकता हुआ सन्नाटा जहां मेरा इंतज़ार करता है
हवा रुआंसी है
इस मौसम के आंसू मैंने सुबह सुबह दूब पर बिखरे हुए देखे हैं
गांव की मेंड़ पर एक उदास देवता का मन्दिर देखा है
आँगन की नीम पर बैठी एक उदास बूढ़ी कोयल देखी है
जो लड़खड़ाती आवाज में सोहर गाती है
सावन का अल्हड़ झूला कोने में
बैठा है चुपचाप
कुछ हुआ है मेरे गाँव में
कहतें हैं एक उम्र गायब हुई है मेरे गांव से
अब बसन्त में उदास फूल खिला करते हैं
उदास बादल
कभी रोते
कभी सिसकियाँ भरते
कभी दम साध
उस उम्र क़ी तलाश में शहर की ओर उड़ जाते हैं
एक उम्र गायब हुई है मेरे गांव से
जो सुना है
दिल्ली उज्जैन अहमदाबाद कि गलियों में सूरत लटकाये उदास घूमा करती है
पंखे में नायलॉन की रस्सियाँ बाँधने से पहले
माँ और बाउ जी की तस्वीरों पर फूट फूट रोया करती है
ईक उम्र ग़ायब हुई है मेरे गाँव से
जिसकी रपट कोई थानेदार नहीं लिखता
#अरमान
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