Tuesday, 8 March 2016

अभी अभी जवान हुई लड़की (कविता )

अभी अभी जवान हुई लड़की

गुमसुम है ...

चुप्प

खोई खोई सी खुशनुमा आँखें लिए बेतरतीब बालों के पीछे चेहरा छुपाये

सर झुकाए

बहुत कुछ तोड़कर

कुछ बना रही है।

अभी अभी जवान हुई लड़की

रोज शाम को

अपने चेहरे से चाँद को उतार कर आसमान पर खूंटी से टांग देती है

और सारे राह किसी आवारा भीड़ में घुप्प से ग़ुम हो जाती है।

अभी अभी जवान हुई एक लड़की

अपने भीतर ही बसे एक पुराने शहर से होकर गुजरती है

जैसे एक हुजूम गुजरता है किसी दरगाह से उर्स के दिनों में

उतरती है किसी उदास नदी के किनारे

सीढ़ियों से

अपने ही अंदर डूब जाने के लिए

अभी अभी जवान हुई एक लड़की को

पिछली दिनों लोलार्क कुण्ड पर नहान को गयी औरतों ने

पानी के भीतर बैठकर मछलियों से बात करते हुए देखा है।

अभी अभी जवान हुई लड़की ने अपने पाँव में एक जिद को बाँध रखा है।

अभी अभी जवान हुई लड़की

चाहती है

बनारस को ठंडई की ग्लास में उतारकर किसी चौराहे पर पी जाए

हज़ारों बरस बूढ़ा बनारस चाहता है

अभी अभी जवान हुई लड़की को जी जाए

अरमान

No comments:

Post a Comment

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...