Tuesday, 8 March 2016

सुबह ए बनारस

सुबह ए बनारस

लल्लापुरा की किसी मस्जिद से उठती है एक अजान

और बनारस घंटियों की शक्ल में झूम उठता है

सूरज का रंग गंगा के पानी पर

कुछ इस तरह फैलता है जैसे

किसी चित्रकार ने अभी अभी साफ़ पानी में अपनी कूचियां डुबो दी हो

गलियों में महादेव को रोज ढूंढता नंदी

टांगें झाड़ खड़ा होता है

शीतलाघाट पर पानी से बाहर आता साधू

अपनी जटाओं से झटक देता है गंगा को
गंगा खिलखिलाती चल पड़ती है सागर की तरफ

दुगुने जोश के साथ

यह सुबह ऐ बनारस है


अरमान

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