Tuesday 28 February 2017

अरमान आनंद की कालजयी रचना नींद जिसे रात भर नहींं आती

नींद जिसे रात भर नहीं आती
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नींद 
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है
वह दुनिया बदलने के सपने देख रहा हो
नींद
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है 
वह प्रतिघात की योजनाएं बना रहा हो
नींद 
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है
उसके कानों में गूँज रही हो 
बच्चों के रोने की आवाजें
नींद
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है उसकी बाहों में पड़ी हो एक सभ्यता की लाश
नींद 
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है वह अभी अभी जान गया हो 
सत्ता की सारी साजिशें
नींद
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है उसे प्रेम हुआ हो
नींद
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है उसे चाँद की लुका-छिपी पसंद हो
नींद
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है
उसे भागना है आज की रात
धता बताते हुए
किसी बूढ़ी खाप-पंचायत को
नींद
जिसे रात भर नहीं आती
मुमकिन है
वह निगलने वाला हो पूरा का पूरा देश
बदलने वाला हो
मानवों को संसाधनों में
पीने वाला हो
हजारों हजार लीटर कच्चा तेल
सता रही हो उसे
अपने गोदाम को बाज़ार में खाली करने की फ़िक्र
रौंदने वाला हो 
एक पूरी की पूरी कौम को आतंकवादी बताकर
चबा जाने वाला हो
एक 
पूरी की पूरी भाषा
काट खाने वाला हो 
किसी मजदूर के हाथ पैर
रात भर चोरी चोरी बदल रहा हो शब्दावलियाँ
तानाशाही को जनवाद में 
लूट को शांति बता रहा हो
रच रहा हो
पूरी की पूरी विष की विचारधारा
फिराक में हो
दिमागों के शिकार के
इन्हें नींद आनी चाहिए
सुला दो इन्हें
वही गीत गाकर
जो तुमने गाया है
धान रोपते हुए
महुआ चुनते हुए
पेड़ों से लकड़ियाँ काटते हुए
चरखा कातते हुए
फाँसी पर चढ़ते हुए
अल्फ्रेड पार्क में गोलियां खाते हुए
किसी तानाशाह का सर कुचलते हुए
सुला दो इन्हें
इन्हें नींद आनी चाहिए
और यह नामुमकिन नहीं है...
©अरमान आनंद

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