यशोधरा
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कई
घंटों
दिनों
महीनों
वर्षों
युगों से
घूम रही है पृथ्वी
तुम
भी घूम रहे हो न जाने कब से
मैं
खिड़की पर पड़ी हुई आंख हूँ
मेरा मन भी घूम रहा है
छोड़ कर मेरे शरीर को
घँटों,
दिनों,
महीनों,
वर्षों
और युगों से
तुम्हारे पीछे-पीछे
कुछ नहीं ठहरता है बुद्ध
अरमान
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