Tuesday 2 January 2018

अरमान आनंद की नई कविता : बच्चे मारे जा रहे हैं

बच्चे मारे जा रहे हैं-अरमान आनंद

आसमान पर मक्खियां भिन भीना रही हैं
सूरज निर्दोष के खून का धब्बा है
पृथ्वी
मेज पर नचा कर छोड़ा हुआ एक अंडा है
जिसके गिरकर फूटते ही
सारा आदर्श बह कर बेकार हो जाएगा
जिसके होठों से अभी भी नहीं उतरा था
मां के दूध का रंग
वो तीन साल का बच्चा मर गया
सूडान में भुखमरी से मरा
सीरिया से भागता हुआ मेडिटेरियन सी में डूब कर मरा
पेरिस में गोलियों का शिकार हुआ
और
भारत में एक कस्बे में उसके हिस्से की हवा छीन ली गयी
और दूसरे से भात
वह अभी कहाँ जान पाया था
कि
रंगों का भी मजहब है
उसकी भी एक जाति है
भगवा
हरा
और
नीला
सिर्फ रंग नहीं है
एक राजनीति है
दुनियां के कई खेल हैं
गुड्डे गुड़ियों
और काठ की गाड़ियों से अलग
कुर्सियां भी सिर्फ कुर्सी खेल
तक सीमित नहीं है
पिता के कंधे पर
उसका मरा हुआ बच्चा
पृथ्वी और पाप से भी अधिक भारी होता है
पसलियों से अधिक आत्मा थकती है
माँ से अधिक नियति रोती है
अरे यम मृत बच्चे की इस लटक रहे हाथ की हथेली को थामो तो जरा
अरे यम एक पल के लिए तो रुको तो जरा
इस हथेली से मुलायम और मजबूत
भला दुनिया की कोई और चीज़ है क्या
जाने से पहले
एक बार अपनी माँ की उँगली को भींच लेते बच्चे
देखो तुम्हारी माँ के स्तनों का नमकीन समंदर
उसकी आंखों में उतर आया है
जिस पर सिर्फ तुम्हारा हक था
बच्चे
अभी जबकि तुम्हारे सवालों से दुनियां को जूझना था
और तुम खामोश हो
अभी जब तुम्हारी खिलखिलाहटों में इस उदास दुनियाँ को हँसना था
और तुम खामोश हो
अभी जबकि तुम्हारे आंसुओं में
बुद्ध अपनी करुणा का पाठ पढ़ते
और तुम खामोश हो
तुम्हारी चुप्पी भारी पड़ रही है
पृथ्वी को
जहाँ से उठा लिए हैं धरती से तुमने अपने पांव
वहीं से धरती का कलेजा फट रहा है




सूरज निर्दोष के खून का धब्बा है
पृथ्वी
मेज पर नचा कर छोड़ा हुआ एक अंडा है
जिसके गिरकर फूटते ही
सारा आदर्श बह कर बेकार हो जाएगा


जिसके होठों से अभी भी नहीं उतरा था
मां के दूध का रंग
वो तीन साल का बच्चा मर गया
सूडान में भुखमरी से मरा
सीरिया से भागता हुआ मेडिटेरियन सी में डूब कर मरा
पेरिस में गोलियों का शिकार हुआ
और
भारत में एक कस्बे में उसके हिस्से की हवा छीन ली गयी
और दूसरे से भात


वह अभी कहाँ जान पाया था
कि
रंगों का भी मजहब है
उसकी भी एक जाति है
भगवा
हरा
और
नीला
सिर्फ रंग नहीं है
एक राजनीति है


दुनियां के कई खेल हैं
गुड्डे गुड़ियों
और काठ की गाड़ियों से अलग


कुर्सियां भी सिर्फ कुर्सी खेल
तक सीमित नहीं है


पिता के कंधे पर
उसका मरा हुआ बच्चा
पृथ्वी और पाप से भी अधिक भारी होता है
पसलियों से अधिक आत्मा थकती है
माँ से अधिक नियति रोती है


अरे यम मृत बच्चे की इस लटक रहे हाथ की हथेली को थामो तो जरा
अरे यम एक पल के लिए तो रुको तो जरा
इस हथेली से मुलायम और मजबूत
भला दुनिया की कोई और चीज़ है क्या


जाने से पहले
एक बार अपनी माँ की उँगली को भींच लेते बच्चे
देखो तुम्हारी माँ के स्तनों का नमकीन समंदर
उसकी आंखों में उतर आया है
जिस पर सिर्फ तुम्हारा हक था


बच्चे
अभी जबकि तुम्हारे सवालों से दुनियां को जूझना था
और तुम खामोश हो
अभी जब तुम्हारी खिलखिलाहटों में इस उदास दुनियाँ को हँसना था
और तुम खामोश हो
अभी जबकि तुम्हारे आंसुओं में
बुद्ध अपनी करुणा का पाठ पढ़ते
और तुम खामोश हो


तुम्हारी चुप्पी भारी पड़ रही है
पृथ्वी को
जहाँ से उठा लिए हैं धरती से तुमने अपने पांव
वहीं से धरती का कलेजा फट रहा है

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