Saturday, 22 June 2019

अरमान आनंद की कविता गन्ध

वह
प्रेम जल की मछरी थी
धारा के विपरीत ही तैरती
नदी की गोद मे अटखेलियां करती
नाचती आँखें
सुनहली देह
और
लचक चाल
उसे औरों से अलग बनाती
एक साँझ
सारा पानी बह गया
वह दो पहर तक रेत पर तड़पती रही
सुबह तक रोई
मगर इतना पानी इकट्ठा न कर सकी कि जी पाती
सूरज आया
देखी उसने मछरी अधमरी
छुआ उसे
बेचारी मछरी मर गयी
मर्दों में खबर फैली
औरतों में गंध
दिन भर उसके देह गंध की चर्चा होती रही
कहते हैं
उस रात कोई उसे दूर छुपा आया
दुनियां में गंध न फैले लोग इसका खास ख्याल रखते हैं
हर बात को मिट्टी में दबा कर
भूल जाते हैं

अरमान आनंद

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