Saturday, 28 January 2017

ख़िलजी का इश्क़


औरतों से ऊब गया अलाउद्दीन खिलजी

उसने जब मलिक काफूर को पहली बार बाजार में बिकते देखा 

उसकी ऊब ने उसे इश्क का शिकार बना दिया

काफूर का लोहे सा बदन और उसकी पसीने की गंध

खिलजी के भीतर एक औरत को जिंदा करती

हर शाम जब खिलजी

जब खूब नशे में होता

घाघरा और चोलियां पहन लिया करता

औरतों के कपड़ों में खिलजी का गोरा और छरहरा बदन खूब फबता था

आँखों के काले सुरमों को काजल से और

कान के मोटे कुंडलों को बालियों से बदलता

पलकेँ भी नाज़ो अदा से उठाने की कोशिश करता था

काफूर जंगी आदमी था

उसे बिस्तर से ज्यादा घोड़े की पीठ और जंग के मैदान पसंद थे

काफूर से मिलने से पहले खिलजी के शौक भी कुछ इसी तरह के हुआ करते थे

आजकल कजरियां गुनगुनाता था खिलजी

याद पिया की आये हाय...

इश्क में गिरफ्तार खिलजी की साँसे धौंकनी सी हो जातीं

जब मलिक काफूर के घोड़े की टापें महल में लश्कर के साथ पड़तीं

हिंदुस्तान के तमाम इलाकों को जीतने की ख्वाहिशें खिलजी ने  

मालिक के कानों में फुसफुसाते हुए जाहिर की थीं 

मलिक भी अपने माशूक मालिक की हर ख्वाहिश उसके बिस्तर पर लाकर देता रहा

अलाउद्दीन खिलजी की एक इंसानी आदत थी

वह ऊब जाता था

वह ऊब कर गश खा गया एक रोज जब उसने पद्मिनी को देखा

मलिक काफूर ने पद्मिनी को तबाह कर दिया
........अरमान आनंद

Friday, 27 January 2017

अरमान आनंद की मशहूर कविता तीस की उम्र में ब्रेकअप

तीस की उम्र में ब्रेकअप (कविता ) अरमान आनंद
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कविता जानती है
कि उसकी जवानी मुट्ठी में बंद रेत है

पिछले पांच ब्रेकअप में तीन तो नादानी में हो गए 
चौथा उससे कम उम्र का था
इसलिए शादी के मूड में नहीं था
और पांचवां
बेहतरी के तलाश में
कुछ और कम उम्र की
और कुछ कम फ्रस्टेटेड लड़की की तलाश में निकल गया

कविता को शुरुआत में जींस बिलकुल भी पसंद नहीं थी
लेकिन उम्र की ढलान आने लगी है 
तो उसने जींस पहनना शुरू कर दिया है
उसे ऐसा महसूस होता है
कि 
इसमें उसकी उम्र कुछ कम लगती है
नितम्बों का उभार कुछ और खिलता है
लड़कों के दिल में
उसके लिए प्यार कुछ और खिलता है

बालों की स्ट्रेटनिंग और मेकअप ने तीस से छब्बीस तो बना ही दिया है
लेकिन सोच पर उम्र का असर तो आ ही जाता है

अबकी बार जो भी मिलेगा
मजा लेकर निकल जाने नहीं देगी कविता
पहले पूछेगी
शादी तो करोगे न

सुनो
मैं उस टाइप की लड़की नहीं हूँ
एक जिस्म भर नहीं हूँ मैं
सिर्फ फ़िल्में देखने और साथ घूमने वाली भी नहीं हूँ

मैं सब समझती हूँ
सब जानती हूँ

कविता ने एक लिस्ट बनाई है
वह वो सब पूछेगी
जिसके बिना पर उसे पिछले सारे लड़कों ने उसे ब्रेकअप दे दिया था

क्योंकि अब उसके पास गलतियाँ करने भर की उम्र नहीं बची है

अब प्यार भी उसी से करेगी जो शादी करेगा

हो तो यह भी सकता है कि वह पहले शादी करले
फिर उसे उसी से प्यार हो जाये
जैसा मम्मी और पापा को हुआ
बुआ और फूफा को हुआ

लेकिन वो सारी बगावती बातें
जो हॉस्टल में उसने अपनी सहेलियों को आलोकधन्वा की कविता पढ़कर सुनाते हुए समझाई थीं
ओह
कैसे मुंह दिखाएगी सहेलियों को

वैसे कहाँ लिखा है कि शादी की ही जाए

लेकिन कविता को दुल्हन बनने का बड़ा शौक है
वो अपनी शादी में बिलकुल वैसा ही लहंगा बनवाएगी जैसा कटरीना ने फिल्म में पहना था
कविता ने दिलवाले दुल्हनियां कई कई बार देखी है
बचपन में राज राज चिल्लाती सरसों के खेत में बावली सी दौड़ा करती थी

प्यार तो बेहद जरुरी चीज़ है
बिना प्यार के कैसे जी पायेगी वो
और सच भी तो है
कोई कैसे किसी से बिना देखे, मिले या जाने शादी कर ले
प्यार होना जरूरी होता है 

क्या एक बार और प्यार किया जा सकता है
क्या एक बार और कहा जा सकता है
कि मैं बस तुम्हारे लिए बनी हूँ
मैं बस तुम्हारे लिए जीना चाहती हूँ
मैं बस तुम्हारे लिए मरना चाहती हूँ
और वो बस ये कह दे
हाँ मैं तुमसे शादी करूँगा

कविता ने इसके अलावे दुनिया का हर लफ्ज सुना है
सिवाय इसके

तीस की उम्र में ब्रेकअप
आपको रोने भी नहीं देता ठीक से

हॉस्टल का पंखा कितना धीमे धीमे चलता है
उसे अब ख्याल आया है 
जून के महीने में ब्रेकअप नही करना चाहिये था उसे
गर्मी से वैसे ही सर फट रहा है
दिल टूटने से या गर्मी से
किस से परेशान होऊं समझ नहीं आता

पिछले तीन साल से उसने कहाँ ध्यान दिया था
उसके कमरे की खिड़की से एक लड़कों वाला हॉस्टल दीखता है
दो मैना और एक कबूतर रोज उसकी खिड़की पर आते हैं

आजकल वह जब भी हॉस्टल लौटती है
एक बात गौर करती है
जिन लड़कियों के प्रेमी हैं
उनकी खिडकियों पर शीशे रखे होते हैं खाली उदास से
और जिनका ब्रेकअप हो चुका होता है
उनकी खिडकियों पे वो खुद होती हैं
शीशों की तरह

कविता कहीं भाग जाना चाहती है
लेकिन कहाँ
किसके साथ
उसके कानों में आलोक की थरथराती हुयी आवाज गूंजती है
लड़की भागती है
तो क्या जरुरी है उसके साथ
कोई लड़का भी भागा हो
लड़की भागती है दर्शकों से भरे जगर मगर स्टेडियम में
कविता बार बार सोचती है
अब इस उम्र में
क्या वह स्टेडियम में भाग भी सकती है
उसके भागने का इंतजार कर रहे उसके अपने लोग
क्या वाकई छुपायेंगे उसका शीशा उसका आबनूस उसकी सात पलों वाली नाव
उसके दुपट्टे के झुटपुटे में जिसे वह आलमारी में कहीं छोड़ आई है
क्या उसके पास कोई उम्र बची है

तीस की हो गयी कविता
सोचती है
कहाँ होगा वह लडका जो उसे कहीं भगा ले जाए

जिसका इंतज़ार हर समंदर के दरवाजे पर खड़ी वह कर रही है

Saturday, 14 January 2017

कविता अरमान

आदमखोर
और हव्वाखोर  चक्रवातों में फंसा हुआ
तुम्हारा यह कवि
संभावनाएं बो रहा है

तुम कविता के इस किसान की कब्र के लिए कुछ फूल उगाओ
कुछ वक्तव्य तैयार करो

सत्ता ने मेरे गर्दन की नाप मेरी दर्जी से खरीदी है
तुम उस दर्जी को कई वादों का सहारा दो
इस विवाद को खत्म करो
©अरमान

Friday, 6 January 2017

गाय

गाय
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कुछ इतिहासकार कहते हैं
पहले हिन्दू गाय खाते थे
लेकिन सबका मानना है
जब हम न हिन्दू थे न मुसलमान
बस जंगली इंसान थे
हम गाय क्या हाथी भी खा जाते थे
भारत के कई हिस्सों में लोग
कुत्ते बिल्ली भी खाते हैं
बिलकुल वैसे जैसे
लोग मुर्गा कबूतर सूअर ऊंट आदि आदि खाते हैं
जैसे मछली और चींटी के अचार खाते हैं
केकड़ा और सांप खाते हैं
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कुछ लोग ये सब नहीं खाते
वे गाय का चारा खाते हैं
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प्लास्टिक से भरा पेट लिए
भीख मांगती बुढ़िया वेश्या सी
सड़क पर घूमती दो मजबूत सींगों वाली गाय
उतनी खतरनाक नहीं है
जितने इसके नालायक बच्चे हैं
जो माँ की राजनीति तो करते हैं
माँ का ख्याल नहीं रखते
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गाय माँ है
हम उसका दूध पीते हैं
लेकिन बकरी का दूध अधिक पौष्टिक होता है
लोग बकरी मेमना खाते हैं
गाय के प्रति बायस्ड हो जाना
भैंस का अपमान है
उसे मान हानि का मुकदमा ठोकना चाहिए
........................
गाय पहले दूध देती थी
अब
वोट देती है।
ये काम बात है
कि गाय ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का मुखिया चुना है
©अरमान आनंद

Thursday, 5 January 2017

सर्द रात, सिनेमा हॉल और सिगरेट   (प्रेम कविता)

सर्द रात, सिनेमा हॉल और सिगरेट   (प्रेम कविता)
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वह ओस से भीगी हुई रात थी

घने कुहरे ने चाँद सितारों को छुपा कर जब हमें बेशर्म हो जाने का भरपूर मौका दिया

आसमान सड़क के किनारे लगे पेड़ के पत्तों से टप टप टपक रहा था

खाली बेलौस सड़क पर तुम्हारी साँसे

मेरी बुल्लेट की आवाज की रजाई में दुबकी हुई गर्म हो रही थीं

तुम मेरे जैकेट में हाथ डाले मेरी पीठ से चिपकी हुई
अलसाई हुई
गुनगुना रही थी

अजीब दास्ताँ है ये कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म ये मंजिलें हैं कौन सी  न तुम समझ सके न हम...

ये प्यार की गर्माहट भरी रात थी

हम अभी अभी हिन्दुस्तान के एक मशहूर सितारे की फ़्लॉफ फिल्म का लुत्फ़ उठा कर बाहर निकले थे

मैंने उस रात तुम्हें सिगरेट की तरह सुलगा दिया
पूरे कमरा इश्क से धुआँ धुआँ था

अगली सुबह तेरे हॉस्टल जाने के बाद
मैं कमरे में बड (सिगरेट का आख़िरी टुकड़ा ) की तरह इधर उधर होता रहा।

©अरमान आनंद

Tuesday, 3 January 2017

कविता

कुचलते हो
कुचलकर कितना मचलते हो
सोचो
किसी दिन वह पकड़ ले तुम्हारी लात
चबा जाये उँगलियाँ
उखाड़ दे नाखून
बना दे तुम्हारी हड्डियों का चूरमा
उलट दे पटक दे तुमको
डर लगता है न सोच कर
बताओ न
डरते हो इसीलिए डराते हो न

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