सर्द रात, सिनेमा हॉल और सिगरेट (प्रेम कविता)
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वह ओस से भीगी हुई रात थी
घने कुहरे ने चाँद सितारों को छुपा कर जब हमें बेशर्म हो जाने का भरपूर मौका दिया
आसमान सड़क के किनारे लगे पेड़ के पत्तों से टप टप टपक रहा था
खाली बेलौस सड़क पर तुम्हारी साँसे
मेरी बुल्लेट की आवाज की रजाई में दुबकी हुई गर्म हो रही थीं
तुम मेरे जैकेट में हाथ डाले मेरी पीठ से चिपकी हुई
अलसाई हुई
गुनगुना रही थी
अजीब दास्ताँ है ये कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म ये मंजिलें हैं कौन सी न तुम समझ सके न हम...
ये प्यार की गर्माहट भरी रात थी
हम अभी अभी हिन्दुस्तान के एक मशहूर सितारे की फ़्लॉफ फिल्म का लुत्फ़ उठा कर बाहर निकले थे
मैंने उस रात तुम्हें सिगरेट की तरह सुलगा दिया
पूरे कमरा इश्क से धुआँ धुआँ था
अगली सुबह तेरे हॉस्टल जाने के बाद
मैं कमरे में बड (सिगरेट का आख़िरी टुकड़ा ) की तरह इधर उधर होता रहा।
©अरमान आनंद
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