औरतों से ऊब गया अलाउद्दीन खिलजी
उसने जब मलिक काफूर को पहली बार बाजार में बिकते देखा
उसकी ऊब ने उसे इश्क का शिकार बना दिया
काफूर का लोहे सा बदन और उसकी पसीने की गंध
खिलजी के भीतर एक औरत को जिंदा करती
हर शाम जब खिलजी
जब खूब नशे में होता
घाघरा और चोलियां पहन लिया करता
औरतों के कपड़ों में खिलजी का गोरा और छरहरा बदन खूब फबता था
आँखों के काले सुरमों को काजल से और
कान के मोटे कुंडलों को बालियों से बदलता
पलकेँ भी नाज़ो अदा से उठाने की कोशिश करता था
काफूर जंगी आदमी था
उसे बिस्तर से ज्यादा घोड़े की पीठ और जंग के मैदान पसंद थे
काफूर से मिलने से पहले खिलजी के शौक भी कुछ इसी तरह के हुआ करते थे
आजकल कजरियां गुनगुनाता था खिलजी
याद पिया की आये हाय...
इश्क में गिरफ्तार खिलजी की साँसे धौंकनी सी हो जातीं
जब मलिक काफूर के घोड़े की टापें महल में लश्कर के साथ पड़तीं
हिंदुस्तान के तमाम इलाकों को जीतने की ख्वाहिशें खिलजी ने
मालिक के कानों में फुसफुसाते हुए जाहिर की थीं
मलिक भी अपने माशूक मालिक की हर ख्वाहिश उसके बिस्तर पर लाकर देता रहा
अलाउद्दीन खिलजी की एक इंसानी आदत थी
वह ऊब जाता था
वह ऊब कर गश खा गया एक रोज जब उसने पद्मिनी को देखा
मलिक काफूर ने पद्मिनी को तबाह कर दिया
........अरमान आनंद
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