Tuesday 2 July 2019

आलोकधन्वा की कविताएँ

1

सवाल ज़्यादा है

पुराने शहर उड़ना
चाहते हैं
लेकिन पंख उनके डूबते हैं
अक्सर खून के कीचड़ में!

मैं अभी भी
उनके चौराहों पर कभी
भाषण देता हूँ
जैसा कि मेरा काम रहा
वर्षों से
लेकिन मेरी अपनी ही आवाज़
अब
अजनबी लगती है

मैं अपने भीतर घिरता जा रहा हूँ

सवाल ज़्यादा हैं
और बात करने वाला
कोई-कोई ही मिलता है
हार बड़ी है मनुष्‍य होने की
फिर भी इतना सामान्य क्यों है जीवन?

2

फूलों से भरी डाल

दुनिया से मेरे जाने की बात
सामने आ रही है
ठंडी सादगी से

यह सब इसलिए
कि शरीर मेरा थोड़ा हिल गया है
मैं तैयार तो कतई नहीं हूँ
अभी मेरी उम्र ही क्या है!

इस उम्र में तो लोग
घोड़ों की सवारी सीखते हैं
तैर कर नदी पार करते हैं
पानी से भरा मशक
खींच लेते हैं कुएँ से बाहर!

इस उम्र में तो लोग
किसी नेक और कोमल स्त्री
के पीछे-पीछे रुसवाई उठाते हैं
फूलों से भरी डाल
झकझोर डालते हैं
उसके ऊपर!

3

शृंगार

तुम भीगी रेत पर
इस तरह चलती हो
अपनी पिंडलियों से ऊपर
साड़ी उठाकर
जैसे पानी में चल रही हो!

क्या तुम जान बूझ कर ऐसा
कर रही हो
क्या तुम शृंगार को
फिर से बसाना चाहती हो?

4

चौक

उन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहा
जिन्होंने मुझे चौक पार करना सिखाया !

मेरे मोहल्ले की थीं वे
हर सुबह काम पर जाती थीं
मेरा स्कूल उनके रास्ते में पड़ता था
माँ मुझे उनके हवाले कर देती थी
छुट्टी होने पर मैं उनका इंतज़ार करता था
उन्होंने मुझे इंतज़ार करना सिखाया।

क़स्बे के स्कूल में
मैंने पहली बार ही दाखिला लिया था
कुछ दिनों बाद मैं
ख़ुद ही जाने लगा
और उसके भी कुछ दिनों बाद
कई लड़के मेरे दोस्त बन गये
तब हम साथ-साथ कई दूसरे रास्तों
से भी स्कूल आने-जाने लगे

लेकिन अब भी
उन थोड़े से दिनों के कई दशकों बाद भी
जब कभी मैं किसी बड़े शहर के

बेतरतीब चौक से गुज़रता हूँ
उन स्त्रियों की याद आती है
और मैं अपना दायाँ हाथ उनकी ओर
बढ़ा देता हूँ और
बायें हाथ से उस स्लेट को सँभालता हूँ
जिसे मैं छोड़ आया था
बीस वर्षों के अख़बारों के पीछे !

No comments:

Post a Comment

Featured post

कथाचोर का इकबालिया बयान: अखिलेश सिंह

कथाचोर का इकबालिया बयान _________ कहानियों की चोरी पकड़ी जाने पर लेखिका ने सार्वजनिक अपील की :  जब मैं कहानियां चुराती थी तो मैं अवसाद में थ...