सम्राट इश्क से शादी तक.
अशोक शर्मा से सम्राट बनने के सफर में उनका पारिवारिक जीवन जैसा जो भी कुछ था वो करीब करीब पूरी तरह खत्म सा ही हो गया था,परिवार से नाममात्र का संपर्क रहता था.
सम्राट के लिए रंगदारी पैशन थी सो उनके सहयोगियों और मित्रों के बीच ही उनके उस जीवन का पूरा समय गुजरता था.
उन्हें किसी भी चीज के बारे में इतमीनान से पूरी तफसील से योजना बनाने और फ्रंट से लीड कर के बिल्कुल टू द प्वाइंट उसे क्रियान्वित करने का जुनून सा था.
सम्राट बिल्कुल आधुनिक वेशभूषा रखने वाले अपने समय के बड़े सजीले से नौजवान थे,कहते हैं उनसे मिलने और बात करनेवाले को कतई यकीन नहीं होता था कि वही उस समय के बिहार के सबसे बड़े डॉन थे.
मेरे बचपन का जिगरी दोस्त जो मुजफ्फरपुर में रहता था और उन्हें बहुत प्रिय था के साथ मैं जब पहली बार 92-93 के लगभग एल एस कॉलेज के न्यू हॉस्टल में उनसे मिला था तो उन्होंने सीधे पूछा
'काहे भेंट करयले चाहय रहीं हमरा सै'
मेरे थोड़ा झिझकने पर उन्होंने जो कहा उसका लब्बोलुआब यही था कि बढ़िया घर से हो बाहर पढ़ते हो जाओ पढ़ो लिखो इन सबसे जितना दूर रहोगे उतना ही बेहतर जीवन होगा.
इस आधे घंटे की मुलाकात में पहली और आखिरी बार ए के 47 को हाथ में लेकर देखने के रोमांच के साथ उनका सजीलापन आज भी मेरी आँखों में जीवंत है एक पल के लिए भी लगा ही नहीं कि वो इतने बड़े क्रिमिनल थे.
1992-93 के आसपास ही कहते हैं सम्राट को प्यार हुआ चूंकि वो सामान्य सी जिंदगी तो जीते नहीं थे सो इस बहुत सामान्य सी चीज के बारे में भी बड़ी असामान्य सी थ्योरियाँ कही सुनी जाने लगी थीं.
जबकि बात बस इतनी सी थी कि तत्कालीन पटना के श्रीकृष्णापुरी मुहल्ले में रहने वाले किसी विभाग के एक्जक्यूटिव इंंजीनियर साहब के यहाँ उनका ठेकों के सिलसिले में अक्सर आना जाना था.
इंंजीनियर साहब की पटना वीमेंस कॉलेज में पढ़ रही बेटी की नजरें सम्राट से मिलीं और वो दिल हार बैठीं.
जाहिर है इंजीनियर साहब विरोध में थे और कहते हैं सम्राट ने भी टालने की भरसक कोशिश की लेकिन कन्या उनपर बुरी तरह रीझ गई थीं.
इंजीनियर साहब मूलतः मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी प्रखंड के चन्द्रहट्टी कमतौल गांव के रहनेवाले थे.कुढ़नी विधानसभा से ही सम्राट ने शादी के बाद 1995 का इलेक्शन भी लड़ा था.
बहरहाल 1994 के शायद फरवरी मार्च के आसपास सम्राट ने उस लड़की (दिव्या) से शादी कर ली.
शादी कुछ बेहद करीबी लोगों के बीच सादे तरीके से हुई और बदले में एक भव्य रिसेप्शन का आयोजन उनके पार्टनर और मित्र रतनसिंह के बेगूसराय तिलरथ स्थित आवास पर हुआ था.
मैं अपने जिगरी दोस्त के साथ वहाँ भी गया था.
उनके रिसेप्शन में मैंनें तत्कालीन बिहार की राजनीति में उनके प्रभाव को साफ साफ महसूस किया था.
तिलरथ में रतनसिंह के घर के सामने वाली सड़क पर बरौनी ब्लॉक की तरफ जाने वाली दिशा में लालबत्ती लगी सफेद एंबेसडर कार जो उस समय सत्ता की प्रतीक हुआ करती थी की लाइन लगी थी जो करीब करीब डेढ दो किलोमीटर तक चली गई थी,वैसे ही बेगूसराय शहर की तरफ आने वाली दिशा में वर्तमान जुबिली पंप तक गाड़ियों की वैसी ही रेलपेल थी.
सम्राट लकदक सफेद सूट में सजे रतनसिंह की घर के सबसे उपरी छत पर सामने पोर्टिको वाले हिस्से के उपर रेलिंग के पीछे चार पांच हथियारबंद सहयोगियों से घिरे हाथ हिलाते हुए खड़े थे.
नीचे मेनगेट से घुसते ही उपर खड़े होकर वेव करते सम्राट पर नजर जाती थी लोग कृतार्थ महसूस करते हुए सामने मजबूत रॉड की घेरेबंदी के पीछे बने मंच पर बैठी दुल्हन के सम्मुख पँहुचते रॉड के बीच से हाथ घुसा कर बड़े से टेबल पर नजराने रखते और दाहिनी तरफ बने विशाल पंडाल के अंदर भीड़ में गुम हो जाते.
उस दिन तत्कालीन बिहार और बेगूसराय के राजनीति और प्रशासन के न जाने कितने ही अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को मैंने सम्राट के हाथों की जुंबिश मात्र से कृतकृत महसूस करते हुए भीड़ में गुम हो कर आम हो जाते देखा था.
पार्टी और विचारधारा की सारी बंदिशें टूट गई थीं लोग बस उनकी एक नजर पड़ जाने को ही उपलब्धि मान बाकी के रस्म रिवाज निभा लौट रहे थे.
ऐसा करीब चार पाँच घंटों तक तो मैंनें देखा था,अगर कागज कलम ले नोट करने पर आ जाता तो उस दिन तत्कालीन बिहार के VVIP's की who's who की लिस्ट बन जानी थी.
ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि तत्कालीन बेगूसराय, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, खगड़िया, लखीसराय से लेकर अन्य ढ़ेर सारे जिलों में इलेक्शन को वो गहरे तक प्रभावित करने की कुव्वत रखते थे.
सनद रहे की ये लालूजी के उठान का दौर था.
शादी उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई क्योंकि इसके बाद ही उन्होंने एकाएक खुलकर राजनीति में आने का फैसला किया जो उन्हें तो नहीं फला लेकिन उसके बाद अनगिनत लोगों ने क्राइम से पॉलिटिक्स का सफर धूमधाम से तय किया,इस मामले में भी वो ट्रेंडसेटर ही थे.
क्रमशः
#सम्राटकथा5
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