Wednesday 29 September 2021

सम्राट का इकलौता बदला: प्रेम कुमार

सम्राट का इकलौता बदला.

सम्राट शुद्ध रंगदार थे और उनमें बस रंगदारी के लिए ही एक जबरदस्त पैशन था वो किसी अन्याय और दमन से मजबूर हो कर इस लाईन में नहीं आए थे.
सो इस मामले में वो बिल्कुल ईमानदार थे इसी वजह से उन्होंने छुटभैय्यों वाले अपराध की जगह हमेशा उस समय की प्रचलित लीक से हट कर बड़ा सोचा.

इसलिए वो कभी बदला,इंतकाम जैसी बकवाद भी नहीं करते थे उन्होंने अपनी बैठकी में भी इस बारे में कई बार खुल कर कहा था कि शुद्ध बदले की भावना से तो मैंने बस एक ही खून किया चंद्रेश्वर सिंह का.

लेकिन उनके बदले की भावना कितनी इंटेंस थी ये बस इसी से समझा जा सकता है कि साल भर से अपने पास मौजूद ए के 47 का पहली बार प्रयोग उन्होंने खुलकर इसी में किया और ये बिहार पुलिस के फाइलों में इतिहास बन कर दर्ज हो गया क्योंकि ये तत्कालीन लगभग पूरे उत्तर भारत में पहली बार किसी क्रिमिनल एक्टिविटी में 47 का प्रयोग था नहीं तो इसके पहले तक आतंकवादी घटनाओं में ही इस हथियार के प्रयोग किए जाने के समाचार थे.

मुजफ्फरपुर में अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध मे बेगूसराय के रंगदारों का स्वर्ण काल था.
मिनी नरेश एल एस कॉलेज के पी जी ब्वॉयज हॉस्टल पाँच(न्यू हॉस्टल)से अपने रंगदारी का साम्राज्य चलाते थे. चूंकि उनके पहले मोंछू नरेश का जलवा था इसलिए उनके बाद आए नरेश को मिनी नरेश कहा जाने लगा था. 
मिनी नरेश बेगूसराय के रहाटपुर गांव के थे और जबरदस्त रोबीले व्यक्तित्व के धनी आदमी थे. 
हँसी आती है,कई जगह स्वनामधन्य पत्रकारों द्वारा सम्राट को मिनी नरेश का आका कहते या लिखते देखा है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था.
सम्राट उस समय बेगूसराय से उभरे बिहार के सबसे बड़े डॉन जरुर थे लेकिन मिनी नरेश से उनका रिश्ता 'भैय्यारी' वाला था.
ये शब्द हमारे बेगूसराय में तकरीबन एक उम्र के भाईयों के बीच याराने जैसे रिश्ते के लिए प्रयोग किया जाता है.

सम्राट ने जब मुखिया से दुश्मनी के बाद कुछ समय के लिए बेगूसराय छोड़ा था तो उस दौर में मिनी नरेश के साथ मुजफ्फरपुर के एल एस कॉलेज न्यू हॉस्टल में ही ज्यादातर रहते थे और फिर तो वह हमेशा उनका पसंदीदा अड्डा रहा जो मिनी नरेश की हत्या के बाद ही उखड़ा.

बेगूसराय वालों की रंगदारी के साम्राज्य के विरोध में समानांतर मुजफ्फरपुर के स्थानीय रंगदारों को मोतिहारी से मुजफ्फरपुर के छाता चौक पर आ कर बसे चँद्रेश्वर सिंह ने अपने झंडे के नीचे जमा किया था जिसमें छोटन शुक्ला भी थे.
छोटन,भुटकुन और मुन्ना शुक्ला तीन भाई थे जिनमें अब मुन्ना ही बचे हैं.

न्यू हॉस्टल में तब मिनी नरेश की सरपरस्ती में जबरदस्त सरस्वती पूजा होती थी सो उसी की गहमागहमी का फायदा उठा कर चंद्रेश्वर सिंह ने पूरे दलबल और तैयारी के साथ बमों से जबरदस्त हमला किया और ऐन सरस्वती पूजा के दिन 1989 में मिनी नरेश की हत्या कर दी.

मिनी नरेश का शव बेगूसराय के उनके गांव लाया गया था और सिमरिया में उनका दाह संस्कार हुआ जिसमें सम्राट भी मौजूद थे. सम्राट का उसके बाद भी उनके जिंदा रहने तक मिनी नरेश के परिवार से प्रगाढ़ संबंध बना रहा.

कहते हैं मिनी नरेश की हत्या के एक डेढ़ महीने बाद सम्राट न्यू हॉस्टल गए थे और उनके ही कमरे में चार पांच दिन रुके भी. बताते हैं कि उस समय लड़कों के बीच बैठकियों में वो बार बार दुहराते थे 

'साल पुरयत पुरयत मायर तै देबय'
(साल पूरा होते होते मार तो दूँगा ही)

ठीक 364 दिन बाद शाम को सम्राट मुजफ्फरपुर के छाता चौक स्थित काजीमोहम्मदपुर थाने के बिल्कुल उल्टी  तरफ सौ डेढ़ सौ मीटर दूर मारुति वैन में कारबाईन लेकर बैठे थे और उनके सामने ही थाने के बगल स्थित अपने घर से निकल चँद्रेश्वर सिंह सड़क पर आए भी लेकिन सम्राट बिना गोली चलाए वापस न्यू हॉस्टल चले आए और पूछे जाने पर पहले तो कहा कारबाइन जाम हो गया था सो गोली नहीं चली. 
लेकिन रात की बैठकी में कहा कल सरस्वती पूजा है कल एक साल पूरा होगा सो कल ज्यादे 'धूमधाम' सै मारबय.

अगले रोज 1990 की सरस्वती पूजा के दिन छाता चौक पर फिर उसी जगह सम्राट मारुति वैन में बैठे पर  इस बार ए के 47 लेकर.
बताते हैं उस दिन झुटपुटा सा अँधेरा घिरने तक चँद्रेश्वर सिंह नहीं निकले और सम्राट इंतजार में,अचानक किसी ने वैन के शीशे पर दस्तक दी 'निकललौ' बोलता हुआ आगे बढ़ गया. 
चंद्रेश्वर सिंह ने शायद सिगरेट जलाई थी जिसकी रोशनी में उनका चेहरा चमका और अगले ही पल 47 की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका थर्रा गया. 
डर से हड़कंप में काजीमोहम्मदपुर थाने के स्टाफ ने अपने आपको अंदर बंद कर लिया जो सब शांत होने के आधे घंटे बाद बाहर आए.

चँद्रेश्वर सिंह गोलियों से छलनी पड़े थे पोस्टमार्टम में बताया गया लगभग तीस के करीब गोलियां उन्हें मारी गई थीं.
ए के 47 के स्टैंडर्ड मैगजीन में तीस गोलियां ही आतीं हैं मतलब एक बर्स्ट में एक मैगजीन खाली की गई थी.
सरस्वती पूजा की धूम और ए के 47 की धाम में सम्राट का बदला पूरा हुआ.

इसके साथ ही बिहार पुलिस की फाईलों में बिहार में ए के 47 से पहली हत्या भी दर्ज हो गई थी.

क्रमशः
#सम्राटकथा4

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