बेगूसराय के सम्राट ने गंगा के पानी पर खींची थी अपने साम्राज्य की लकीर.
नब्बे का आधा दशक अशोक सम्राट के जलवे का चरम था.सम्राट शुरु से ही बेगूसराय को अपने लिए अभेद्य दुर्ग के तौर पर बरतते रहे थे और इसी से उन्होंने बेगूसराय के प्राइड को भी जोड़ लिया था.
कहते हैं एक बार अपनी बैठकी में उन्होंने कहा था बेगूसराय मतलब गंगा के उपर बने राजेंद्र पुल से समस्तीपुर जिले के पहले स्थित बेगूसराय के आखिरी गांव रसीदपुर तक,यानि इस बीच के पूरे इलाके पर किसी भी बाहरी के पैर जमाने की तो बात दूर रही हस्तक्षेप भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा मतलब बेगूसराय बेगूसराय वालों के लिए.
इसी लाइन पर चलते हुए सम्राट का आमना सामना मोकामा के सूरजभान सिंह से हुआ.
अस्सी के दशक में मोकामा में छोटे मोटे अपराध से उभरे सूरजभान सिंह ने सबसे पहले अनंत सिंह के बड़े भाई कांग्रेस नेता दिलीप सिंह की सरपरस्ती हासिल की फिर अपनी महत्वाकांक्षा के वशीभूत श्याम सुंदर सिंह धीरज के पाले में चले गए.
सूरजभान सिंह से सम्राट के टकराने के कई पुष्ट अपुष्ट कारण बताए जाते हैं.
जैसे मोकामा में हुई सूरजभान सिंह के भाई मोती सिंह की हत्या में सम्राट की सहमति का होना, तत्कालीन बेगूसराय के कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े शूटर और जेलकांड के नामजद अभियुक्त मनोज सिंह से सूरजभान सिंह के नजदीकी रिश्ते.
जबकि टकराव की जड़ में सूरजभान सिंह की अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने की स्वाभाविक इच्छा और दुर्भाग्य से सामने सम्राट जैसे दुर्दम्य व्यक्ति का होना ही था.
तत्कालीन उत्तर बिहार में रिफाइनरी से लेकर रेलवे तक काम करने वाली दो बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनियां बेगूसराय की ही थी.
पहली रीता कंस्ट्रक्शन जो भाजपा नेता बीहट के राम लखन सिंह की थी और दूसरी कमला कंस्ट्रक्शन जो तिलरथ के रतनसिंह की थी.
सारे भीमकाय ठेकों में इन्हीं दोनों कंपनियों का टकराव होता था.
रतनसिंह के साथ अशोक सम्राट थे सो जाहिर है कमला कंस्ट्रक्शन का डंका बज रहा था ऐसे में रीता कंस्ट्रक्शन वाले रामलखनसिंह ने सूरजभान सिंह को साथ खींचा वहीं सूरजभान भी अपनी उड़ान के लिए मोकामा से ज्यादा बड़ा आकाश ताक रहे थे सो वो भी साथ आए.
बस यहीं से तलवारें खिंचीं जो सम्राट के जीते जी सूरजभान सिंह पर भारी ही पड़ती रही.
सम्राट ने साफ कर दिया कि बेगूसराय में बाहर से रंगदार आ कर कुछ कर ले जाएँ ये उनके रहते संभव नहीं.
इसी बीच कुछ गुणा गणित बिठाने के चक्कर में बेगूसराय के मधुरापुर गांव में रामी सिंह की हत्या हुई नाम उछला सूरजभान सिंह और सहयोगियों का.
इसके पहले तक सम्राट ने सूरजभान सिंह को छोटे मोटे झटके दे कर ही गंगा के उस पार तक बाँध रखा था अब उन्होंने निर्णायक चोट करने की योजना बनाई.
सम्राट मेरे जानने में विरले ऐसे रंगदार थे जिन्होंने सबसे ज्यादा अपने हाथों पर ही भरोसा किया था और अधिकाँशतः किसी शूटर का सहारा नहीं लिया क्योंकि वो खुद बेहतरीन शूटर थे.
कहते हैं मोकामा के अपने गांव में भी सूरजभान सिंह सम्राट की वजह से काफी चौकन्ने रहते थे और इस बार तो बात खुली ही थी सो वो भी खूब एहतियात बरत रहे थे.
जबरदस्त रेकी के बाद स्थिर किया गया कि एक नियत समय के आसपास रोज सूरजभान सिंह अपने गांव के सड़क किनारे स्थित एक चाय दुकान पर अमले खसले के साथ जरुर आते हैं,स्थान वही तय हुआ.
कहते हैं सम्राट खुद वेश बदल कर जगह देखने गए और चाय दुकान से ढ़ाई तीन सौ मीटर दूर एक उजाड़ सी झोपड़ी को अपने लिए तय किया चूंकि ए के 47 की इफेक्टिव रेंज तीन से चार सौ मीटर की दूरी तक होती है.
नियत दिन से एक रात पहले सम्राट उस झोपड़ी में छिपकर पोजीशन ले पड़ गए.
ऐसा स्नाइपर मूवीज में देखने को मिलता है और वो अपने समय से ज्यादा स्मार्ट तो थे ही वजह वही खुद पढ़ा लिखा होना और हॉस्टल की सोहबत.
उनके साथ एक व्यक्ति शायद और था या उसे कुछ और दूर लगाया गया था.
नियत दिन जिस समय सूरजभान सिंह अपने अमलों खसलों के साथ चाय दुकान पर आए,कहते हैं शुरुआती पहला फायर सम्राट ने ए के 47 को सेमी ऑटोमेटिक मोड पर रख कर सिर्फ और सिर्फ सूरजभान सिंह पर किया लेकिन गोली उनसे छूती हुई गच्चा देकर निकल गई और हड़कंप मच गया उधर से भी फायरिंग शुरु हो गई.
तब सम्राट ने ए के 47 को बर्स्ट मोड पर डालकर गोलियों की बारिश कर दी जब गोलियों का गुबार थमा तो सूरजभान सिंह के पैर में गोली लगी पाई गई उनके चचेरे भाई अजय और बेगूसराय के मनोज सिंह गोलियों से छलनी पड़े थे और एक गाय भी गोलियों से छलनी पड़ी थी कहते हैं इसी गाय के बीच में आ जाने की वजह से सूरजभान सिंह बच गए.
हमेशा की तरह सम्राट सही सलामत गंगा पार बेगूसराय पँहुच गए लेकिन उनकी दहशत जरुर पीछे छूट गई.
जबतक सम्राट जिंदा रहे सूरजभान सिंह को मोकामा से बेगूसराय की तरफ बढ़ने नहीं दिया.
विधि का विधान देखिए सम्राट के मरने के बाद वही सूरजभान सिंह भूमिहार होने के नाम पर बेगूसराय के बलिया से इलेक्शन लड़े और जीते क्योंकि तब तक बेगूसराय प्राइड हवा हो चुका था और जातीय प्राइड में सब मुक्ति तलाश रहे थे.
क्रमशः
(बेगूसराय के दुलारपुर गांव के एक धानुक जाति के व्यक्ति जो सम्राट के लंबे समय तक नजदीकी रहे थे और मेरा दिवंगत दोस्त सब उनसे ही जाना,सुना और जिया)
#सम्राटकथा3
No comments:
Post a Comment