Thursday, 6 September 2018

अरुण शीतांश की कविताएँ

देखना तो ऐसे देखना

मेरी बच्ची सुबह सुबह उठना
लेकिन कसाई का मुँह मत देखना

देखना तो कसाई की बेटी को देखना
खून न देखना

मेरी बच्ची उस ठेहे को बिल्कुल मत देखना
बेहोश मत होना

लाईन में लगे उन जीवों पर दया करना
जैसे एक चिड़िया अपने बच्चे को समय से चोंच में दाना भर उड़ जाती है

तुम कुछ भी मत देखना
जिससे तुम्हारे गर्भ में पल रहे बच्चे पर
असर हो

एक पिता होने के नाते तुम्हें कह रहा हूँ

लेकिन तुम कसाई के भूख को जरुर जानना

जिसके बच्चे देश के भविष्य हैं ...

रात: २ बजे
५ सितम्बर १६

फूल के पौधे

मेरे पास दो फूल है
तीसरा फूल तुम हो

दरअसल फूल के पौधे
जगमग करते
गमकते हुए
जंगल से
मेरे आँगन में हैं आज

तुम पृथ्वी में समेटे बीज
हो
चाँदनी की रौशनी में
सोने की ताबीज

मेरे दोनो कंधे और
दोनो पैर में बल अतिरिक्त आ चुका है

रंग और स्वर
ताल और नाद
समय और सोपान के बीच नहीं
पुरी शक्ति हो

आओ !
बाँहो में भर जावो
मेरी गुस्सैल प्रेमिका

नदी के छोर को छोड़ दो
और बाँह पकड़ लो
पार कर
हँसेगे जोर से
जैसे बच्चे हँसते हैं
जी भर

कैमरा मैन
.............

कितना अच्छा था
कुछ भी ले जाने का
झंझट नही था

कितना अच्छा था

अब घर से पहनकर जाओ
तब खिंचो या खिचवाओ

सेल्फी है अब
रिश्ते बदल गए

अब कोट पहनो तब जाओ
जूते पॉलिस करो
पाउडर लगाओ

पहले सबकुछ वहाँ मिल जाता रहा
कंघी ऐनक मुस्कुराहट

कैमरा मैन!!!

अब सबकुछ होते हुए
कुछ नहीं मिलता

लड़की चुपके से आ जाती बैठ जाती धीरे से
कैमरा मैन दोनो का बाँह पकड़कर डाल देता गले में
पसिना होकर भी
धड़कन बढने पर भी
चुपचाप लौट जाते घर
और तकिए के नीचे फोटू छूपा रोते पूरजोर

अब हमारा कोई नहीं  कैमरा मैन

न वैसी कुर्सी
न वैसा जीवन
न वैसा गुलदस्ता
न स्टुल
न वैसा बस्ता

न वैसा विचार
न वैसा घर
न वैसा क्रोध
एक फोटो देखकर सोच रहा हूँ
मुक्तिबोध..

  ०६ ०९.२०१४ (आरा)

दोनों

फूल पर बारिश हुई।
कुछ बचा
कुछ गिरा
अब दोनो सुख रहे हैं
फूल झड़ रहा है

बूँदें हवा में समा गईं

वहाँ एक बच्चा हँस रहा
एक बच्ची रो रही है!

आज फिर बारिश होनेवाली है।...

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