Monday, 10 September 2018

कविता कादंबरी की कविताएँ

            1

इस शोर से भरी दुनिया में
मैं ओठों से तुम्हारी देह पर चुप्पियाँ बो रही हूँ
और तुम्हें शब्दों की कमी टीसती है!

शssss
चुप रहो न
करवट बदलो
और सुनो चुप्पी की आवाज़

तुम अनुभव करोगे
कि शब्द अर्थ भ्रष्ट हो चुके हैं
सुंदर कोमल शब्दों को
भीतर से चाट गए हैं दीमक
जिनमें अगर कुछ है, तो बस
खोखलेपन का उथला शोर है

तुम अनुभव करोगे चुप्पी का शुद्ध व्याकरण और भाव गाम्भीर्य का विस्तार

तुम अनुभव करोगे
कि चुप्पियों ने बचा रखी है भाव और भाषा की गहराई और माधुर्य

तुम अनुभव करोगे
कि बेमानी है बोलना

और एक दिन तुम अनुभव करोगे मिट्टी होना,धरती होना और होना आकाश भी
कि तुम्हारी देह पर बोई गई चुप्पियों में उतनी ही चुप्पी से उग आएंगे सतरंगी फूल
जिनकी बेलें धरती से आकाश तक फैल रही होंगी
और अनहद हो रही होगी जिनकी सुगंध की अलिखित भाषा

No comments:

Post a Comment

Featured post

कविता वो खुश नहीं है - अरमान आनंद

वो खुश नहीं है ---------------------- उसने कहा है वो खुश नहीं है ब्याह के बाद प्रेमी से हुई पहली मुलाकात में उदास चेहरे के साथ मिली किसी बाज़...