1
दोमुँहा
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बजबजा रहे हैं-
दोमुँहे लोग
कल तक जिस मुख से
कुछ कह रहे थे
अब उस मुँह को सिल लिये हैं
दूसरी दिशा के श्रीमुख को
चालू कर लिये हैं
अंड बंड सण्ड कुछ बक रहै हैं
ये क्या कह रहे हैं
समझने की चेष्टा कर रहा हूँ क्योंकि
शब्द इनके बदल गए हैं
पहले तो ये हाथ में झंडा लिए
जोर जोर से कह रहे थे
लाल सलाम लाल सलाम
कोरस में मिलकर गा रहे थे-
हम होंगे कामयाब एक दिन
अब शायद कह रहे हैं
जय श्रीराम जय श्रीराम
हिंदुस्तान में रहना होगा
बन्दे मातरम कहना होगा
तब भी शायद कुछ पाने की आस में हीं
झंडा को थामें होंगे
अब उन्हें लगता है कि
कारवां में कहीं पीछे न छूट न जायें
इसलिये बहुत तेजी से रेंग रहे हैं
मेरुदंड नहीं न हैं इनके
बीच बीच में ये उछल कूद भी कर रहे हैं
मंच के पास तेजी से पहुँचने के प्रयास में
सुना है वहाँ प्रधान के उप मुख्य के अनुचर के सहायक
पुरस्कार और पद का वितरण कर रहे हैं
आसन्न देवासुर संग्राम को देखते हुए
लोभ लाभ की आशा में ये यहाँ भी
निष्ठा और लगन केे साथ
दोहरा रहे हैं
शपथ की पंक्तियां
भौचक्क मत होइये
इन दो मुँहों को देखकर
नशेड़ी हैं
सत्ता के नशा के बिना ये एक पल भी नहीं रह सकते
सत्ता में सेंघमारी की कला में
पारंगत हैं
भोज के आगे हमेशा यही आपको मिलेंगे!
- राज्यवर्द्धन
5.6.2018
(चित्र:श्यामल दत्ता राय,सभार गूगल)
2
झूठा सच
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वह झूठ को
इस कदर पेश करता है कि
लोगो को सच प्रतीत होता है
फिर उसे इतनी बार दोहराता कि
सत्य
विस्थापित हो जाता है
और जब वह सच बोलेगा
तो कोई भी नहीं पतियायेगा
एक दिन
गड़ेरिया के लड़के की तरह
ईशप की कहानियों का शेर
उसे खा जायेगा
और तब
गांव से बचाने
कोई भी नही आएगा।
राज्यवर्द्धन
3जून'2015
(चित्र:पिकासो,गूगल सभार)
3
बाजार
बाजार शत्रुओं को निबटना जनता है
बाजार सत्ता के साथ मिलकर विरोधियों को
निबटा देता है
सत्ता डरती है तो सिर्फ संगठित जनता से
क्योंकि सत्ता को तब
अपनी सत्ता खोने का भय सताता है
विकास
मायावी बाजार का मायाजाल है
सत्ता का ढोल है
मानवता विरोधी विकास
मुट्ठी भर लोगों के काम का है
यदि बाजार को हराना है तो
संगठित होना होगा जन को
समझना होगा कि
धर्म,जाति,भाषा, प्रांतियता के नाम पर
जो करता है गोलबंद
वह मानवता विरोधी है
हमें एक -दूसरे से लड़ाकर
अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं
जागो
पहचानो अपने दोस्त को
अपने दुश्मन को
बाजार ने तो चुन लिया है
अपना दोस्त
अपना दुश्मन।
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राज्यवर्द्धन
3.6.2016
4
गाय पर मास्टर जी का निबंध
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#बचपन में मास्टर जी ने
गाय पर निबंध लिखने को कहा था
और बताया था कि
गाय एक पालतु चौपाया जानवर है
जिसकी दो आँख ,दो कान और एक पूंछ होती है
गाय दूध देती है
दूध से दही ,छेना ,खोवा और
तरह-तरह की मिठाइयाँ बनती है
गाय गोबर देती है
जिससे खाद बनता है
गोबर की खाद से फसल अच्छी होती है
मास्टर जी ने यह भी बताया था कि
गाय एक परोपकारी जानवर है
जो मरकर भी लोगों को लाभ पहुंचाती है
मारे हुए गाय की खाल से
चमड़ा बनता है
जिससे जूते और चप्पल बनाए जाते हैं
मास्टर जी की बताई बातों को
निबंध में लिखने के बाद
पता नहीं क्यों हमलोग कक्षा में
कोरस में गाते थे-
“गाय हमारी माता है
हमको कुछ नहीं आता है
बैल हमारा बाप है
नंबर देना पाप है!”
और खूब तालियाँ बजाते थे
हँसते थे
गाय पर निबंध लिखाकर मास्टर जी ने
निबंध सिखाने की शुरुआत किए थे
पर पता नहीं क्यों
फिर मास्टर जी ने किसी पालतू जानवर –
भेड़,बकरी या सूअर पर
निबंध लिखने को नहीं कहा
अब देखता हूँ कि
मास्टर जी की सीधी-साधी गाय
चौपाया जानवर से
धीरे-धीरे ताकतवर पशु में तब्दील हो गयी है
पालतू से संसदीय हो गयी है
राजनेता बता रहे है कि
गाय हमारी संस्कृति है
गाय की रक्षा करना
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करना है
गौ-मांस को खाने वाले
भारतीय संस्कृति के दुश्मन है
गाय अब भी दूध देती है
गाय की दूध से अब भी मिठाइयाँ बनती है
पर उन मिठाइयों से ज्यादा
गौ-माँस की चर्चा होती है
गौ-माँस खाने के शक में
किसी की हत्या हो सकती है
गौ-माँस से बने व्यंजन बेचने के जुर्म में पुलिस
किसी भी रेस्त्रां या होटल की तलाशी ले सकती है
गौ-माँस की दावत देकर कोई भी छुटभैया नेता
अपने विरोधी दल को चिढ़ा सकता है
अपनी सियासत चमका सकता है
गौ-माँस खाकर कोई भी अपने को
प्रगतिशील साबित कर सकता है
गौ-माँस
सत्ता और विपक्ष
दोनों के हाथों का हथियार बन गयी है
मेरे देशवासियों !
गाय अब वोट बैंक बन गयी है
मास्टर जी को शायद उस समय पता नहीं था
कि गाय भविष्य में एक राजनीतिक पशु बनने वाली है
नहीं तो जरूर संकेत करते
हो सकता है कि आने वाले दिनों में
शेर के बदले
गाय को राष्ट्रीय-पशु घोषित कर दिया जाय
-राज्यवर्धन