Friday 15 June 2018

युवा कवि रोहित ठाकुर की छः कविताएँ

      1
  टेराकोटा 

 जैसे साईकिल की उतर जाती है चेन
रोहित ठाकुर
ठीक उसी तरह  धरती की चेन क्यों नहीं उतर जाती है
हर बलात्कार के बाद
सभी लड़कियाँ  लड़ रही हैं विश्वयुद्ध
अपने शरीर और आत्मा के बीच
किसी घुसपैठिया के खिलाफ़
हम सब से तुम कोई उम्मीद मत रखना
हम सब टेराकोटा की टूटी हुई मूर्तियाँ हैं   ।।

                  2
अप्रैल तुम फिर कभी मत आना 

अपने कालेज के दिनों में मार्च के बाद
गाँव से पटना आने पर
बस से उतरते ही गला सूखने लगता था
मैंने अप्रैल को कभी पसंद नहीं किया
मैंने यही नापसंदगी कई राहगीरों के चेहरे पर देखा 
मैं अप्रैल से बाहर निकल नहीं सका
अप्रैल मुझे डराता रहा है अब तक
मेरा गला अब भी सूखता है इस महीने में 
अप्रैल कितना अभागा है इस बरस
तुम्हारा हर एक दिन
बर्बरता का नया प्रयोग है हमारी बेटियों पर
एक दिन अप्रैल तुम मरोगे अपने ही यातना गृह में    ।।
             3
          कीलें
मेरी चप्पलों में ठुकी हुई हैं कीलें
मैं कीलों के साथ इस धरती का चक्कर लगा रहा हूँ
मेरी गर्दन में एक झोला टंगा है
मुझे हर जगह दिखाई दे रही है कीलें
बित्ते भर की जगह खाली नहीं है
मैं एक कील चाँद पर ठोक दूंगा
मैं अपना झोला चाँद पर टांग दूंगा 
चाँद की यात्रा पर मेरे साथ होगी कीलें
मैं कीलों को मानता हूँ नियति
मेरे जैसे लोगों के भीतर जो लोहा है
उससे कोई कीलें ही बनायेगा
इस नुकीले समय में
मैं यही उम्मीद करता हूँ   ।।
          4
       संसद 
 संसद कितना असंवेदनशील है
संसद की दीवार कितनी मोटी है
संसद एक उड़नतश्तरी है
मेरे जैसे लोगों के लिए 
एक भूखा आदमी
 समय को चक्रवात के रूप में परिभाषित करता है
एक आदमी अपनी जमीन बेच कर आया है
उसे लगता है कि भूकंप का केंद्र उसके पांव के नीचे है 
सुबह से शाम तक एक आदमी लाइटर बेचता है
एक आदमी बेचता है हवा मिठाई
मैं उन दोनों से आँख मिलाने से बचता हूँ
उनके जीवन में आग और हवा का समीकरण
लगभग चूक गया है  
एक आदमी कहता है की अब क्रांति नहीं होगी
आगे लिखा है कि रास्ता बंद है
एक आदमी पेशाब करते हुए अपने गुस्से को थूक देता है
फिर वह नब्बे के दशक का कोई गाना गुनगुनाता है  
इस संक्रमण काल में जब खतरा बना रहता है
सीटी की आवाज सायरन की तरह सुनाई देती है
बच्चों की टोली हँस रही है
उन्होंने अपने सपने में बहते देखा है भात की नदी को   ।।
         5
        पेड़ 
पेड़ तुम कितने भले हो
तुम्हारी छाँव में बैठते हैं
औरत और मरद जात
गाय - गोरू
बच्चा लोग खेलता है
बारात पार्टी  सुस्ताता है
यह सब देखकर
बहुत अच्छा लगता है 
पेड़ तुम कितने
बुरे लगते हो
जब तुम पर झुलती है
किसी लड़की की लाश
तुम्हारे डाल से लटक कर
किसान आत्महत्या करता है
तुम्हारे डाल से लटका देता है
सबल निर्बल को मारकर 
तुम्हारी जड़ों से होकर
पाताल लोक तक जाता है
मनुष्य का रक्त       ।।
           6
          बसें 
कितनी बसें हैं जो छूटती है
इस देश में
कितने लोग इन बसों में चढ़ कर
अपने स्थान को छोड़ जाते हैं
हवा भी इन बसों के अंदर पसीने में बदल जाती है
इन बसों में चढ़ कर जाते लोग
जेल से रिहा हुए लोगों की तरह भाग्यशाली नहीं होते
ये लोग मनुष्य की तरह नहीं सामान की तरह यात्रा में हैं
ये लोग एक जैसे होते हैं
मामूली से चेहरे / कपड़े / उम्मीद के साथ
जिस शहर में ये लोग जाते हैं
वह शहर इनका नाम नहीं पुकारता
भरी हुई बसों में सफर करता सर्वहारा
नाम के लिए नहीं मामूली सी नौकरी के लिए शहर आता है
ये बसें यंत्रवत चलती है
जिसके अंदर बैठे हुए लोगों के भीतर कुछ भींगता रहता है
कुछ दरकता सा रहता है  ।।
रोहित ठाकुर
परिचय:
नाम  रोहित ठाकुर 
जन्म तिथि - 06/12/ 1978
शैक्षणिक योग्यता  -   परा-स्नातक राजनीति विज्ञान
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित
विभिन्न कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ 
वृत्ति  -   सिविल सेवा परीक्षा हेतु शिक्षण  
रूचि : - हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन 
पत्राचार :- जयंती- प्रकाश बिल्डिंग, काली मंदिर रोड,
संजय गांधी नगर, कंकड़बाग , पटना-800020, बिहार 
मोबाइल नंबर-  7549191353
ई-मेल पता- rrtpatna1@gmail.com 

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