Tuesday 19 June 2018

युवा कवयित्री ज्योति साह की छः कविताएँ


1.
माँ
मुझे नहीं जाना स्कूल 
जंगल के रास्ते होते हैं सुनसान, 
युवा कवयित्री ज्योति साह
माँ 
मुझे मत ले जा हाट-बाजार
नहीं खरीदना मुझे लाल-पीले रिबन
नहीं खाना चाट-पापड़ी
घूरते हैं लोग
चाक-चौराहे पर बेहिसाब, 
माँ
सहम जाती हूँ उस वक्त 
जब बकरी को लाते हुऐ 
पीछे किसी को नहीं पाती
दौड़ती हूँ, गिरती हूँ 
द्वार पर आकर
दम भर सांस लेती हूँ,
माँ
सुबह तुम और बप्पा
जब खेत जाते हो
घर की चार दीवारी भी
डराती है मुझे 
एकटक देखती हूँ चारोओर
कौन किधर से आकर नोंच खाये
घबरा जाती हूँ मैं, 
माँ
मत जाया करो
सात कोस दूर पहाड़ चढ़ पानी लाने
प्यास बुझाकर भी घुट जाती हूँ मैं, 
माँ
नहीं पढ़ना / नहीं  बढ़ना
ना ही पंख चाहिए 
ना खुला आसमान, 
माँ
मार दिया होता कोख में ही मुझे 
तकलीफ ना होती इतनी
घुट-घुट कर होती है जितनी,
बप्पा
कब तक स्कूल पहुँचाओगे
छुट्टी में भी लेने आओगे
मजदूरी कटती है तुम्हरी
भरपेट ऱोटी मिलना होता मुश्किल, 
माँ 
तुम कहती ब्याह दो इसे
जाने फिर घरवाला इसका
अब ना हमसे सँभलेगी
नौ बरस अभी हुआ है  मेरा,
माँ 
सच ही तो कहती हो तुम
कर दो ब्याह 
ले लो आज़ादी
फिर मैं उस जानुं या करम ही जाने
क्या होगा ये धरम ही जाने???

2.
एक समय
जब माँऐं रातों में 
बार-बार उठकर
देखे बेटी को, 
जब पिता 
बार-बार
पूछे पत्नी से
गुड़िया घर पर ही है ना
घर पर ही रखना, 
जब माँऐं
खुद ही
लगाने लगे पहरे 
बेटियों पर,
शाम होते ही
वापस लौट आने की
देने लगे नसीहत, 
हर कदम पर 
साथ रहने की सोचे,
जब पिता लाडली को 
स्कूटी से आना-जाना 
बंद करवा दे, 
भाई खुले बालों से ऐतराज़ करे, 
जब लड़कियाँ 
देव-स्थलों में भी
मूर्तियों के सामने
रौंदी जाये
और देवता
असहाय.. अपाहिज हो जाये,
जब लड़कियाँ
स्कूल-कॉलेज
दोस्तों के बीच
असुरक्षित-सी रहने लगे,
अपनों के साथ भी 
असहज महसूस करे
ममत्व भरे स्पर्श से
कतराने लगे,
जब बेटियाँ 
सहमी-सहमी-सी
बंद कमरे में 
सिसकने लगे,
तो समझो
कठिन समय से
गुजर रही है लड़कियाँ... |
चुप रहना.....।।
ये कैसी आज़ादी..?
ना बोलने की..
ना लिखने की..
ना जीने की..
है ये कैसी आज़ादी..?
निरंकुश शासक बैठा है वहाँ..
देखो बस चुप रहना..
कलम को रख दो किनारे
लिखना अब जायज नहीं
पहले फिरंगी थे
अब अपने हैं
मुँह के अंदर 
अनेकों दाँत छिपाये
थोड़ा सावधान रहना
हो सके तो विदेश घूम आओ
परंतु देश में चुप रहना..।।
*पत्रकारिता पर

4.

पिता...
हाँ पिता हूँ मैं
सख्त हैं हाथ मेरे
पसीने से नहाया
खुद से बुदबुदाता
उलझा-उलझा सा रहता
पिता हूँ मैं,
रसोई की नमक
तुम्हारी किताबें
माँ की दवाई
बाबूजी के फटे जूते
पत्नी से रोजमर्रा की पर्ची लेकर
रोज सुबह घर से निकलता
पिता हूँ मैं,
घर - बाहर
हर बात की परेशानी से लड़ता
धूप-धुआँ-बारिश से जूझता
शाम ढले
झोले में राशन खरीद
पुरिये में लेमनचूस लिये
घर लौटता
पिता ही हूँ मैं,
अधपके बालों से लैश
खुद के बारे में जो कभी सोचता नहीं
पीछे खड़े होकर
बच्चों की कामयाबी पर मुस्कुराता है बस
पत्नी के शरमाने पर बच्चा बन जाता जो
दसवीं पास करने पर
बाबूजी के दिये घड़ी को पहना हुआ
हाँ पिता हूँ मैं,
रोज सुबह अखबार पढ़ता
नीम के पेड़ को देखता 
माँ-बाबूजी की तबियत पूछता
बच्चों को नसीहतें देता
हाँ पिता ही तो हूँ मैं||


5.

स्त्रियां
दिख रही है मुझे
आत्मविश्वास से लबरेज स्त्रियां
देहरी लांघ
घूँघट से निकल
हर क्षेत्र में पहचान बनाती स्त्रियां
तवे पर रोटी सेंकती
और सेंसेक्स का ज्ञान रखती स्त्रियां
बच्चे को कंधे पे लाद
घर-आँगन-द्वार
हर जगह उपस्थिति दर्ज कराती स्त्रियां
घर संभालती
बच्चे पालती
वक्त निकालकर खुद भी पढ़ती
और टॉप टेन में आती स्त्रियां
बडें-बुढ़े,आस-पड़ोंस
सबका ख्याल करती
और फिर एकांत में
काव्य रचना करती स्त्रियां,
हर मसालें का स्वाद पहचानती
स्वादिष्ट खाना पकाती
रिश्तों में जान डालती स्त्रियां,
माँ का घर छोड़
पति के घर जाती
नये घर में सामांजस्य बैठाती
दिन-रात खुद को सेवा में लगाती
हरैक के खुशी का ख्याल रखती
और फिर....
"पूरे दिन क्या करती हो?"
का तमगा पाती है स्त्रियां,
बैंको में नोट गिनती
पैप्सीको की CEO बनती
रसोई से संसद तक पहुंचती स्त्रियां,
कहानी लिखती
उपन्यास लिखती
गद्य-पद्य-छंद में
घुल-मिल जाती स्त्रियां,
रसोई में बेलन संग डोलती
फिर स्टेज पर पहुंच
वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाती स्त्रियां,
दिख रही है मुझे
आत्मविश्वास से लवरेज स्त्रियां।।
#ज्योति साहू
हिन्दी प्राध्यापिका
बिहार\झारखंड।।
6.

गली से NH 33
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ये जो संकरी गली से
चलकर कुछ दूर
रास्ता निकलता है
NH 33 का
ले जाता है
किशोर से ज़वानी
के बीच के देहातियों को
उड़न खटोले पे बैठा
उस छोर पे
जहाँ की दूधिया/चिकमिक रोशनी
भौचक्क आँखें
ये चकाचक दुनिया
जहाँ सब मिलता/दिखता है
अरे बाप रे!!
लड़कियों की तो पूछो ही मत
आँखें फटी-की-फटी
एक मारता कुहनी
क्या देखता है बे....
दूसरा शरमाता 
जैसे लुगाई 
और बेफिक्र लड़कियाँ
ऊँची हील से 
ठक-ठक किये
निकल जातीं है
बहुत दूर
बेचारा ठगा-सा
गली से NH 33
हाय.......!!
ज्योति साह

पता -ज्योति साह
हिंदी अध्यापिका 
रानीगंज, अररिया
बिहार 854334
8252613779

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