मैं हंसूंगी तुम्हारे ऊपर
लगाउंगी अट्टहास
आज होगी मौत मेरे हाथों
तुम्हारी बनायी हुई औरत की
और हो जाउंगी आजाद
बेख़ौफ़
मैं आजाद स्त्री हूँ
मेरे बाल खुले हैं
सिन्दूर धुले हैं
मैंने स्तनों को कपड़ों में नहीं बाँधा
पांव में पायल नहीं पहने
मेरे वस्त्र लहरा रहे है।
तुम मुझे डायन कहोगे
कहोगे मेरे पाँव उलटे है
हाँ मेरे पाँव तेरे बनाये गलियों से उलट चलते हैं
मेरे हाथ लम्बे हैं
मैं छू सकती हूँ आसमान
मैं निकलूंगी अंधियारी रात में
बेख़ौफ़
तेरे चाँद को कहीं नाले में गोंत कर
और तेरे चेहरे पर ढेर सारी कालिख पोत कर
Friday 1 June 2018
अरमान आनंद की कविता डायन
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